राम पुनियानी
पिछले दिनों (27 नवंबर 2020) उत्तर प्रदेश सरकार ने “उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020” लागू किया. उसके बाद मध्यप्रदेश और हरियाणा सहित कई अन्य भाजपा-शासित प्रदेशों ने भी इसी तर्ज पर कानून बनाए. इस बीच अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले दम्पत्तियों की प्रताड़ना का सिलसिला भी शुरू हो गया और कुछ मुस्लिम पुरूषों को जेलों में डाल दिया गया. इस नए कानून के पीछे साम्प्रदायिक सोच है. यह इससे साफ है कि अवैधानिक धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानून पहले से ही हमारे देश में हैं. नए कानूनों का उद्धेश्य संदिग्ध है और इनका दुरूपयोग होने की गंभीर आशंका है.
उत्तरप्रदेश के अध्यादेश में ‘लव जिहाद’ शब्द का प्रयोग कहीं नहीं किया गया है परंतु हिन्दू राष्ट्रवादी समूहों के कार्यकर्तागण इस कानून के नाम पर ऐसे अंतर्धार्मिक दम्पत्तियों को परेशान कर रहे हैं जिनमें पति मुसलमान और पत्नि हिन्दू है. विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों में इस तरह के दम्पत्तियों को प्रताड़ित करने और उनके खिलाफ हिंसा की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. सबसे दुःखद यह है कि कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है और वे समाज की फिज़ा में साम्प्रदायिक रंग घोलने के अपने कुत्सित लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं. उनकी हिम्मत बढ़ती जा रही है. वे समाज को बांट रहे हैं और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को पीछे धकेलकर उसका हाशियाकरण करने का प्रयास कर रहे हैं.
इसके साथ ही वे हिन्दू महिलाओं की स्वतंत्रता को भी गंभीर रूप से बाधित कर रहे हैं. हिन्दू धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपनाने के लिए हिन्दू महिलाओं के मुस्लिम पुरूषों से संबंधों को जिम्मेदार बताया जा रहा है. किसी भी ऐसे बहुधार्मिक समाज में जिसमें लोग एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं, अलग-अलग धर्मों के लोगों का दूसरे से प्रेम हो जाना एवं विवाह कर लेना अत्यंत स्वाभाविक व सामान्य है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सार्वजनिक रूप से स्पष्ट कर चुके हैं कि वे अंतर्धार्मिक विवाहों के खिलाफ हैं. इलाहबाद उच्च न्यायालय के एक हालिया निर्णय, जिसमें यह कहा गया था कि केवल विवाह करने के लिए धर्मपरिवर्तन करना उचित नहीं है, का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि “लव जिहाद करने वालों को सुधर जाना चाहिए अन्यथा उनका राम नाम सत्य हो जाएगा”. उत्तरप्रदेश सरकार की माता-पिता से भी यह अपेक्षा है कि वे अपनी लड़कियों पर ‘नजर’ रखें.
उत्तरप्रदेश सरकार के अध्यादेश को अदालत में चुनौती दिए जाने की जरूरत है क्योंकि वह संविधान में हम सबको अपने धर्म में आस्था रखने, उसका आचरण करने और उसका प्रचार करने के मूल अधिकार का उल्लंघन है. देश में हर व्यक्ति को अपनी पसंद से अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार भी है. उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश और इसी तरह के अन्य कानूनों में यह निहित है कि हिन्दू संस्कृति खतरे में है, हिन्दू महिलाएं इतनी मूर्ख हैं कि वे अपना हित-अहित नहीं समझ सकतीं और इसलिए उन्हें हिन्दू पुरूषों के संरक्षण की आवश्यकता है. स्पष्टतः इन कानूनों के निशाने पर अंतर्धार्मिक विवाह हैं विशेषकर ऐसे विवाह जिनमें पति मुसलमान और पत्नि हिन्दू हो. आरोप यह है कि मुसलमान पुरूषों से विवाह करने वाली हिन्दू महिलाओं को अपने धर्म का पालन नहीं करने दिया जाता और उन्हें इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर किया जाता है.
हमारे देश में वैसे भी अंतर्धार्मिक विवाह बहुत कम संख्या में होते हैं. अन्य प्रजातांत्रिक और स्वतंत्र देशों में ऐसे विवाहों की संख्या कहीं अधिक होती है. इनमें भी मुस्लिम महिलाओं और हिन्दू पुरूषों के बीच और कम विवाह होते हैं. कई मामलों में ऐसे संबंध रखने वाले या विवाह करने वाले हिन्दू पुरूषों को भी परेशानियां भुगतनी पड़ती हैं (अंकित सक्सेना). तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां को एक हिन्दू से विवाह करने पर जमकर ट्रोल किया गया था. परंतु कुल मिलाकर अधिकांश मामलों में मुस्लिम पुरूष ही निशाने पर रहते हैं.
महाराष्ट्र में हिन्दू रक्षक समिति नामक एक संस्था को ऐसे विवाह तोड़ने में खासी विशेषज्ञता हासिल है जिनमें पति मुसलमान और पत्नी हिन्दू हो. लव जिहाद पर मराठी में प्रकाशित एक पुस्तिका के मुखपृष्ठ पर जो चित्र प्रकाशित किया गया है उसमें एक मुस्लिम लड़के को एक हिन्दू महिला को पीछे बैठाकर बाईक चलाते हुए दिखाया गया है.अगर कोई मुस्लिम महिला, हिन्दू पुरूष से शादी करती है तो उससे हिन्दू धर्म के स्वनियुक्त रक्षकों को कोई आपत्ति नहीं होती. वे इसे घरवापसी मानते हैं. पुलिस की कई जांचों से यह जाहिर हुआ है कि लव जिहाद जैसी कोई चीज नहीं है. परंतु इस मुद्दे पर इतना शोर मचाया गया है कि लोग यह मानने लगे हैं कि देश में सचमुच लव जिहाद हो रहा है.
आखिर अंतर्धार्मिक विवाहों का इतना विरोध क्यों होता है? क्या यह सही है कि मुस्लिम युवक योजनाबद्ध तरीके से हिन्दू महिलाओं को अपने प्रेमजाल में फंसाकर मात्र इसलिए उनसे विवाह करते हैं ताकि उन्हें मुसलमान बनाया जा सके? दरअसल यह सफेद झूठ है.लोग यह भूल जाते हैं कि जब वे यह कहते हैं कि मुसलमान युवक हिन्दू युवतियों को बहला-फुसलाकर उनसे विवाह कर लेते हैं तो वे न केवल हिन्दू महिलाओं की अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता समाप्त कर रहे होते हैं वरन् वे यह भी कह रहे होते हैं कि हिन्दू महिलाएं इतनी मूर्ख हैं कि वे किसी के भी जाल में फंस जाती हैं. मुस्लिम पुरूषों को हिन्दू धर्म के लिए खतरा बताया जाता है और हिन्दू युवतियों को बेअक्ल सिद्ध दिया जाता है. इसी सिलसिले में हिन्दू अभिभावकों को यह सलाह दी जाती है कि वे इस पर कड़ी नजर रखें कि उनकी लड़कियां कहां आ-जा रही हैं, किससे मिल रही हैं और किससे फोन पर बात कर रही हैं. कुल मिलाकर वे यह चाहते हैं कि हिन्दू महिलाओं का जीवन पूरी तरह से उनके अभिभावकों के नियंत्रण में हो.
सभी साम्प्रदायिक राष्ट्रवादी विचारधाराएं पितृसत्तात्मक होती हैं. उनकी यह मान्यता होती है कि महिलाएं पुरूषों की संपत्ति हैं और उन्हें पुरूषों के अधीन रहना चाहिए. वे सभी पितृसत्तात्मकता को राष्ट्रवाद के रैपर में लपेटकर प्रस्तुत करती हैं. भारत के स्वतंत्र होने और हमारे देश में संविधान लागू होने के बाद से महिलाओं को कई बंधनों से मुक्ति मिली है और वे देश के सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षणिक जीवन में महती भूमिका निभाने की ओर बढ़ रही हैं. यह उन लोगों को रास नहीं आ रहा है जो बात तो समानता की करते हैं परंतु दरअसल उन प्राचीन धर्मग्रंथों में श्रद्धा रखते हैं जो महिलाओं को पुरूषों के अधीन मानते हैं. हम केवल यह उम्मीद कर सकते हैं कि न्यायपालिका इन कानूनों को अमल में नहीं आने देगी. धार्मिक सद्भावना को हर हाल में बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है और अंतर्धार्मिक विवाह, साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने का औजार हैं.
(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया )
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)