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किसान आन्दोलनः आठ महीने का गतिपथ और उसका भविष्य-बाईस

जयप्रकाश नारायण 

किसान आंदोलन और स्वतंत्रता दिवसः किसानों के लिए आजाद भारत के मायने

 

स्वतंत्रता संघर्ष के प्रतीकों, ऐतिहासिक तारीखों एवं  आजादी के प्रतीक 26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे तारीखों को भारतीय नागरिक जोश-खरोश के साथ आयोजित करते हैं। और उसमें उत्साह पूर्वक शामिल होते हैं।

सरकारों की हमेशा से कोशिश रही है, कि आजादी के दिवस का सरकारी आयोजन सत्ता के सैन्यवादी, वर्चस्ववादी प्रदर्शन से ज्यादा कुछ न हो।

जनता सत्ता के चकाचौंध से इस तरह अभिभूत हो जाए कि वह उसकी क्रूरता,  अमानवीयता को भूलकर सरकार के जनविरोधी कार्यों का भागीदार  बन जाये। लेकिन आम नागरिक की आजादी की अपनी समझ है।

आजादी के बाद उसकी जिंदगी में आए बदलाव और जरूरतों के आधार पर स्वतंत्रता के प्रतीक दिवसों को अपने ढंग से आयोजित करते हैं, भाग लेते हैं और जन उत्सव में बदल देते हैं।

भारत के लोग  स्वतंत्रता दिवस को खुद की आजादी , स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीने और अपने भविष्य का खुद निर्णय लेने  के अवसर के रूप में देखने की उनकी परंपरा रही है।

इसलिए नागरिक समाज इस दिन  तिरंगा के साथ प्रभात फेरी, सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन और खेलकूद के साथ लोक कलाकारों के विभिन्न तरह के कलात्मक प्रदर्शनों द्वारा उत्सव के रूप में  आयोजित करते रहे हैं।

आरएसएस और भाजपा के नेता, उनकी संस्थाएं राष्ट्रीय आयोजन को भी  सांप्रदायिक विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए वर्षों से प्रयोग  करते रहे हैं ।

किसान आंदोलन ने मोदी सरकार के सभी विभाजक परियोजना को प्रारंभ से ही देखना-समझना शुरू कर दिया था और उसे निष्काम करने की कोशिश भी करता रहा है।

इसी क्रम में किसान आंदोलन ने 26 जनवरी 2021  के गणतंत्र दिवस को किसान परेड आयोजित करने की घोषणा की थी।

किसानों का कहना था, कि गणतंत्र दिवस उनका भी है और इस दिन वे  किसानों की गणतंत्र  दिवस परेड आयोजित करेंगे।

इस आवाहन में लाखों किसान दिल्ली की तरफ आए थे और उन्होंने 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस को इतिहास की तारीख का सबसे बड़ा जन उत्सव में बदल दिया था ।

मोदी और अमित शाह  की सरकार का चरित्र है, कि जनता के हर पहल, प्रयास और उसकी सक्रिय भागीदारी को देख कर डर जाती है।

इसीलिए किसान आंदोलन को अराजक बनाने, हिंसक बनाने और अंततोगत्वा किसान आंदोलन को बदनाम कर उस पर हमला करने की योजना बना ली।

अपने प्रशिक्षित एजेंटों, पुलिस के सहयोग के द्वारा किसानों की परेड को कुछ समय के लिए गलत दिशा में मोड़ कर विध्वंसक, हिंसक, अराजक बनाने का प्रयास किया। यह ऐसा दौर था जब मीडिया के धुआंधार प्रचार से ऐसा वातावरण बनाया गया, कि किसान आंदोलन आतंकवादियों, अपराधियों, तोड़फोड़ करने वालों का जमावड़ा है ।

लेकिन लाखों की तादाद में ट्रैक्टर पर बैठे किसान  उल्लास के साथ गणतंत्र दिवस समारोह को दुनिया का सबसे बड़ा जन लोकतांत्रिक उत्सव में बदल दिये था। उससे मोदी सरकार घबरा गई। उसे किसानों पर संभावित हमलावर कार्रवाई से पीछे हटना पड़ा।

किसान आंदोलन के पास 26 जनवरी के किसान परेड का समृद्ध अनुभव था। इसलिए जब हरियाणा सहित अन्य राज्यों में बीजेपी की सरकारों और बीजेपी संगठन ने तिरंगा यात्रा आयोजित करने का फैसला किया तो किसान संगठनों ने यह निर्णय लिया कि हम इस यात्रा का विरोध नहीं करेंगे। हम तिरंगे को अपना और अपने देश के सम्मान का प्रतीक मानते हैं। लेकिन आजादी के इस पर्व पर किसान तिरंगे झंडे को लेकर जहां संभव होगा गांव, शहर, कस्बे, ब्लॉक, तहसील जिला मुख्यालयों पर यात्रा निकालेंगे ।

इसे लोकतंत्र बचाने और तीन कृषि कानून हटाने के आंदोलन के अभिन्न अंग के रूप में आयोजित करेंगे। जो खबरें पूरे देश से आ रही हैं कि भारत का शायद ही कोई कोना हो जहां किसानों ने गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन न किया हो।

उस परेड में किसानों के तरफ से नए  किस्म के वैचारिक संकल्प लिए गए। जिसमें संविधान की मूल भावना, स्वतंत्रता, समानता, सार्वभौमिकता, बंधुता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी गणतंत्र के रूप में भारत की परिकल्पना को मजबूती से लागू करने और मोदी सरकार द्वारा संघात्मक भारत पर हो रहे हमले से बचाने का संकल्प लिया गया।

किसानों की संकल्प सभाओं ने भाजपा और मोदी सरकार द्वारा आयोजित  तिरंगा यात्रा और उसके अंदर छिपे हुए पाखंड को तार-तार कर दिया ।

यह पहला अवसर है, जब कोई जन आंदोलन सत्ता के द्वारा आयोजित पाखंडी, विभाजक राष्ट्रवाद के खिलाफ जन राष्ट्रवाद का परचम लेकर  आगे बढ़ रहा है।

अपने आंदोलन और एजेंडे को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दिला  पाने में सफल हुआ है। 135 करोड़ जनगण और उसकी सक्रिय शक्तिशाली भागीदारी भाजपा के सांप्रदायिक फासीवादी राष्ट्रवाद के सामने एक गंभीर चुनौती बन कर खड़ी हो गई है ।

15 अगस्त 2021 का आयोजन भारत के स्वतंत्रता दिवस के इतिहास का एक नया अध्याय है और भारत के किसान आंदोलन के एजेंडे को उन्नत करके आगे ले जाने का एक ठोस प्रयास है।

लाल किले से प्रधानमंत्री के द्वारा दिए गए निहायत ही सतही, भ्रामक और आधारहीन घोषणाओं, योजनाओं और छोटे किसानों के लिए  प्रधानमंत्री द्वारा दिखावटी दर्द एक प्रहसन बन के रह गया।

क्योंकि 15 अगस्त के पहले 14 अगस्त की संध्या पर प्रधानमंत्री ने खुद ही भारत के  सबसे पुराने विभाजनकारी एजेंडे को आगे कर दिया था।

भारत विभाजन के दर्द के नाम पर उन्होंने विभाजन की क्रूरतम दर्दभरी स्मृतियों को फिर से  नफरत की दिशा में मोड़ने और देश के अंदर एक बार फिर सांप्रदायिक उन्माद और तनाव पैदा करने का अपराधिक कृत्य किया है।

किसान आंदोलन ने उनकी पूरी परियोजना को गंभीर चुनौती दी है और आगे आंदोलन के रास्ते में एक कदम बढ़ा कर नयी ऊंचाई हासिल कर ली है।

(अगली कड़ी में जारी)

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