बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर की जयंती पर जन संस्कृति मंच (जसम) के द्वारा एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन भाकपा माले के सांसद सुदामा प्रसाद के दिल्ली आवास पर आयोजित किया गया। आयोजन में सुश्री रौशनी ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया और उसके पश्चात हिंदी के कवियों ने अपनी-अपनी कविताएँ पढ़ीं। काव्य-गोष्ठी में वरिष्ठ कवयित्री सपना चमडि़या, युवा दलित लेखक टेकचंद, युवा कवि रमेश प्रजापति और पंकज चौधरी मुख्य रूप से शामिल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि देवी प्रसाद मिश्र ने की, जबकि धन्यवाद ज्ञापन युवा कवयित्री अनुपम सिंह ने किया।
वरिष्ठ कवयित्री सपना चमडि़या ने कई महत्वपूर्ण कविताओं का पाठ किया, जिसमें ‘कौशल्या जी’, ‘रहमत खान’, ‘ओ मेरे मांझी’, ‘भाषा’ आदि मुख्य रूप से शामिल थीं। सपना जी के गरिमामयी पाठ ने कार्यक्रम में एक आत्मीयता का अहसास कराया। उनकी कविताएं विवेक और दायित्व बोध का अहसास कराते हुए शिल्प की एक नई प्रविधि पेश करती हैं। उनकी ‘ओ मेरे मांझी’ जैसी कविता एक सूझ-सी देती प्रतीत होती है कि किस तरह का पुरुष स्त्रियों को चाहिए।
युवा दलित कहानीकार-उपन्यासकार टेकचंद इधर कविताएँ लिख रहे हैं और उन्होंने गोष्ठी में ताजा कविताओं का पाठ किया। टेकचंद ने ‘बेटियां किताबें बचा रही हैं’, ‘शरबत जेहाद’, ‘बिसात’, ‘प्रार्थना’, ‘दिल मणिपुर दिल फिलिस्तीन’ जैसी ज्वलंत कविताओं का पाठ किया, जिनसे मौजूदा शासन व्यवस्था की खामियां उजागर होती हैं और देश को पुनरुत्थान के दौर में ढकेलने का दृश्य सामने प्रकट होता है। टेकचंद के पाठ ने लोगों का ध्यान खिंचा।
महत्वपूर्ण युवा कवि रमेश प्रजापति ने अपनी कई चर्चित कविताओं का पाठ किया। उन्होंने ‘आप हमारे यौद्धा हैं’, ‘गिरगिट’, ‘विकास का बाज’, ‘नदी का बोसा’ ‘हमारे पास रहने दो’ आदि कविताओं से प्रकृति के मानवीकरण की झलक पेश की। रमेश की कविताएं यह अहसास कराने में सफल रहीं कि प्रकृति से छेड़छाड़ आखिरकार हमारा ही नुकसान करेगा।
पंकज चौधरी ने अपनी 5 कविताओं का पाठ किया, जो बताती हैं कि इस सिस्टम को ‘जाति’ किस तरह संचालित और नियंत्रित करती हैं। उनकी कविताएँ यह बताने में सफल रहीं कि जाति का सवाल बड़े सवालों में एक है और जिसके तार लगभग सभी सवालों से जुड़े हैं। पंकज चौधरी की कविताएँ कास्ट डिस्कोर्स को जोरदार तरीके से पटल पर रखती हैं। उन्होंने ‘कोरोना और दिहाड़ी मजदूर’, ‘कोरोना वायरस ऊर्फ अह्म ब्रहा्मिस्म’, साहित्य में आरक्षण, ‘अमर प्रेम’ और ‘इंडिया मिन्स कास्ट’ कविताओं का पाठ किया।
काव्य-गोष्ठी में अभिषेक ने ‘मच्छर’ शीर्षक से अपनी एक व्यंग्यात्मक कविता पढ़ी, वहीं आमिर ने अपनी ‘घर’ का पाठ किया।
वरिष्ठ कवि देवी प्रसाद मिश्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कविताओं पर अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि आंबेडकर इस समय हमारे लिए एक आइकॉन हैं। हम उनके मूल्यों को लेकर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सपना जी की कविताएँ एक विवेक बोध, दायित्व बोध और नई संरचना की झलक पेश करती हैं। इनकी ‘ओ मेरे मांझी’ एक सूझ-सी देती है कि किस तरह का पुरुष स्त्रियों को चाहिए। उन्होंने कहा, इस छोटी-सी आत्मीय गोष्ठी में सपना जी का पाठ उसे और आत्मीय बनाता है।
देवी प्रसाद मिश्र ने टेकचंद की ‘दिल मणिपुर और दिल फिलिस्तीन’ को एक जरूरी कविता बताया। उन्होंने कहा, पंकज चौधरी ने भारतीय समाज की जाति पर आधारित गतिविधियों पर जिस बेबाकी से बात की वह हमें झंकृत करती है। उन्होंने रमेश प्रजापति की आखिरी कविता ‘हमारे पास रहने दो’ को एक घोषणापत्र या मांगपत्र बताया कि आप दाएँ चलिए हमको बाएँ चलने दीजिए। अंत में देवी प्रसाद मिश्र ने बताया कि जिस तरह से कलावाद को हर जगह मंच मिल रहा है, उसके बरक्स इस तरह की छोटी संगोष्ठियां ज़रूरी हैं।
कार्यक्रम में प्रसिद्ध आलोचक और ‘आलोचना’ के संपादक आशुतोष ने कहा, ‘‘अभी जो दलित कविता आ रही है वह कथन और अनुभव के बीच से आ रही है। यह काफी अच्छी बात है जो एक नया रास्ता बना रही है और जो दोनों किनारों से चलती है।’’
कार्यक्रम में लेखक-प्रोफेसर गोपाल प्रधान, नाटककार राजेश कुमार, युवा कवि रवि प्रकाश, आलोचक रामायण राम जैसे प्रमुख लोग उपस्थित रहे।