रांची में हुई हिंसा और पुलिस व प्रशासन के विफलता का महासभा कड़ी निंदा करता है
10 जून 2022 को रांची के में रोड पर भाजपा नेता नुपुर शर्मा व नवीन जिंदल के बयान के विरोध प्रदर्शन में हुए हिंसा की महासभा निंदा करता है. हालाँकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में हिंसा किस प्रकार शुरू हुई. लेकिन, इस पूरे मसले ने पुलिस व प्रशासन की विफलता को उजागर किया है.
पुलिस को इस बात की जानकारी थी कि डेली मार्केट के मुसलमान दुकानदारों ने बयान के विरोध में 10 जून को अपनी दुकानें बंद रखने का निर्णय लिया था. यह भी सूचना थी कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा विरोध प्रदर्शन की भी संभावना थी. इसके बावज़ूद क्षेत्र में पर्याप्त विधि व्यवस्था कायम नहीं की गई.
हालाँकि हिंसा की शुरुआत के कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन के कुछ देर बाद पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया और क्षेत्र में पत्थरबाज़ी शुरू हुई. भीड़ के अन्दर से पत्थर फेंकना शुरू हुआ या भीड़ के बाहर से, किसने पहले भीड़ पर पत्थर फेंका, यह अभी स्पष्ट नहीं है. लेकिन यह हैरानी की बात है कि इसके जवाब में पुलिस ने सीधा गोली चलाया. गोली से अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है और एक तीसरे व्यक्ति गंभीर हालत में हैं. यह भी सूचना है कि अनेक लोग गोली से घायल हुए हैं. इस पूरी घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं जैसे अगर पुलिस व प्रशासन को विरोध कार्यक्रमों (दुकान बंद करना आदि) की सूचना थी, तो क्षेत्र में उचित विधि व्यवस्था क्यों नहीं कायम की गयी? अगर प्रशासन को इसकी सूचना थी, तो क्यों उचित समय पर शांति सभाओं, सामुदायिक नेताओं आदि के साथ बैठक कर प्रदर्शन सम्बंधित समन्वय स्थापित नहीं किया गया? शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बीच से पत्थर फेंकना कैसे शुरू हुआ और किन लोगों ने शुरू किया? पुलिस ने पत्थरबाज़ी के खिलाफ सीधा गोली क्यों चलाया और अन्य भीड़-नियंत्रण तकनीक जैसे आंसू गैस, पानी कैनन, रबर गोली आदि क्यों नहीं इस्तेमाल किया?
महासभा का मानना है कि रांची की घटना देश में पिछले कुछ सालों से बढ़ रहे धार्मिक बहुसंख्यकवाद और मुसलमानों पर विभिन्न प्रकार से हिंसा और उनके विरुद्ध नफरत फ़ैलाने का एक नतीज़ा मात्र है. हिन्दू राष्ट्र की संकीर्ण अवधारणा के तहत अल्पसंख्यकों, आदिवासी, दलित को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है.भाजपा समेत आरएसएस परिवार द्वारा लगातार समाज, देश व लोकतान्त्रिक संस्थाओं में धार्मिक नफरत फैलाया जा रहा है. रोज़ संविधान व देश के लोकतान्त्रिक संस्थओं का भी भगवाकरण दिख रहा है. झारखंड समेत अन्य कई राज्यों में अनेक हाल की घटनाओं में पुलिस व प्रशासन का अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध एक-तरफ़ा रवैया दिखा है.
महासभा का मानना है कि इस मुश्किल परिस्थिति में अल्पसंख्यक समुदाय व अन्य सभी लोकतंत्र व संविधान में विश्वास रखने वाले समूह व लोगों को संयम के साथ अहिंसक प्रतिरोध की नीति में विश्वास रखना होगा. वर्तमान परिस्थिति में झारखंड जनाधिकार महासभा ने रांची समेत राज्य के सभी नागरिकों व समुदायों से शान्ति, अमन व संयम बनाए रखने की अपील की है. किसी भी प्रकार की अफ़वाह से विचलित न हो. भाजपा नेताओं द्वारा दिए जा रहे सद्भावना विरोधी उत्तेजक और सांप्रदायिक बयानों को पूर्ण रूप से ख़ारिज करें. साथ ही, महासभा ने हेमंत सोरेन सरकार से मांग की कि- सरकार तुरंत एक स्वतंत्र जांच दल बनाकर प्रदर्शन में हुए हिंसा की जाँच करें. पत्थर फेंकने वालों व भीड़ को भड़काने वालीं की पहचान कर न्यायसंगत कार्यवाई करें, पुलिस द्वारा गोली चलाने के लिए ज़िम्मेदार पदाधिकारियों पर सख्त कार्यवाई करें, प्रशासनिक चूक के लिए ज़िम्मेदार पदाधिकारियों पर कार्यवाई करें.
इस संभावना से नाकारा नहीं जा सकता है कि अब पुलिस द्वारा दोषियों के अलावा निर्दोष मुसलमानों पर प्राथमिकी दर्ज कर गिरफ्तार किया जाएगा. सरकार द्वारा यह सुनिश्चित की जाए कि निर्दोष लोगों पर कार्यवाई न हो.
एक तरफ हेमंत सोरेन सरकार संविधान और धर्मनिरपेक्षता की बात करती है और दूसरी ओर उनके पुलिस व प्रशासनिक तंत्र की कार्यशैली कानून व संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है. यह सुनिश्चित किया जाए कि पुलिस व प्रशासन द्वारा संवैधानिक मूल्यों व कानून का पूर्ण पालन करते हुए किसी भी प्रकार के धार्मिक उन्माद और हिंसा के विरुद्ध सख्त कार्यवाई की जाएगी.
सरकार राज्य को धार्मिक उन्माद और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की प्रयोगशाला न बनने दे.
(फीचर्ड फोटो क्रेडिट: सैयद रमीज़, फ़ोटो पत्रकार)