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क्या पत्थलगड़ी असंवैधानिक है ?

[author] [author_image timthumb=’on’]http://samkaleenjanmat.in/wp-content/uploads/2018/05/gladson-dungdung.jpg[/author_image] [author_info]ग्लैडसन डुंगडुंग [/author_info] [/author]

झारखंड के आदिवासी इलाकों में हो रही पत्थलगड़ी से सरकार की नींद हराम हो गई है. झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने रांची में बड़ा-बड़ा होर्डिंग लगवाकर और अखबारों में विज्ञापन के माध्यम से आदिवासियों को कड़ा संदेश देने की कोशिश की कि पत्थलगड़ी असंवैधानिक है और जो भी इसमें शामिल है उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी.

मैं इन दिनों झारखंड के खूंटी एवं पश्चिमी सिंहभूम जिले के ‘मुंडा’ एवं ‘हो’ आदिवासियों के इलाका में घुम रहा हूँ. यहां प्रत्येक गांव के ससनदिरी में पत्थलगड़ी का अदभुत दृश्य दिखाई पड़ता है, जो मृत्यु के बाद भी आदिवासी समाज का मूल आधार ‘सामुदायिकता’ का एहसास कराता है.  आदिवासी अपने पूर्वजों की स्मृति में पत्थलगड़ी करते हैं.  बंदगांव के कारिका गांव में मैंने देखा कि एक घर के ठीक दरवाजा के पास एक बड़ा सा पत्थर गाड़ा गया है.  गांव के रामसिंह मुंडा बताते हैं कि बाघ के हमले से उक्त परिवार के एक सदस्य की मृत्यु हो गई थी, जिसकी याद में वह पत्थर गाड़ा गया है.

इसी तरह कई गांवों में जिन व्यक्तियों की मृत्यु सांप के काटने या जंगली जानवरों के हमले से हुई है उनकी याद में भी घरों के सामने अलग से पत्थर गाड़ा गया है.  कई गांवों में बड़े-बड़े पत्थर गाड़कर उसपर ग्रामसभा की शक्तियों एवं अधिकारों को लिख दिया गया है.  इसी तरह कई गांवों में संवैधानिक अधिकारों को पत्थरों में लिखकर गाड़ा गया है.  मैंने यह भी देखा कि आदिवासी लोग औद्योगिक घरानों के लिए सरकार के द्वारा किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर लड़ाई जीतने की खुशी में भी पत्थलगड़ी किये हुए हैं.

पत्थलगड़ी का मामला सुर्खियों में तब आया जब खूंटी जिले के कई ग्रामसभाओं ने मिलकर पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों को यह कहते हुए बंधक बनाया था कि इन्होंने संविधान के पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन कर ग्रामसभा के आदेश के बगैर इन इलाकों में घुसपैठ की है क्योंकि यहां ग्रामसभा सर्वोंपरि है, जिसने अनुमति के बगैर बाहरी लोगों के इस इलाके में घुमने पर रोक लगाया है.

यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर इन ग्रासभाओं को ऐसे आदेश जारी करना क्यों पड़ा ? क्या इसमें सरकार दोषी नहीं है ? खूंटी के इलाकों में मुंडा आदिवासी लोग सरकार का क्यों बहिष्कार कर रहे हैं ? क्या झारखंड सरकार ने कभी हकीकत जानने की कोशिश की है ?

झारखंड के पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में पड़ने वाले इलाकों में लगातार गैर-आदिवासियों की घुसपैठ होती जा रही है. फलस्वरूप, आदिवासी अपनी जमीन, जंगल, पहांड़, जलस्रोत और खनिज सम्पदा को खोते जा रहे हैं. उनकी जनसंख्या घटती जा रही है और वे अपनी पहचान, भाषा, संस्कृति, परंपरा एवं रूढ़ि से भी बेदखल हो रहे हैं.

संविधान के अनुच्छेद 19 (5) एवं (6) में यह प्रावधान किया गया है कि सामान्य या आदिवासियों के अस्तित्व में आंच आने पर सरकार इन इलाकों में बाहरी जनसंख्या के अवागमन, जमीन खरीदने, रहने-बसने, नौकरी करने एवं व्यावसाय पर रोक लगा सकती है.  लेकिन केन्द्र एवं राज्य सरकार ने आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए अबतक कोई कदम नहीं उठाया है बल्कि ये सरकारें उनकी जमीन को पूँजीपतियों को देने के लिए भूमि सुरक्षा कानूनों में संशोधन कर रही हैं ।

सरकारों के इस रवैया के कारण ही आदिवासी लोग ग्रामसभा की शक्तियों एवं अधिकारों का प्रयोग कर अपनी रक्षा करने में जुटे हुए हैं.  यदि आदिवासी आज अपने इलाके में गैर-आदिवासियों को घुसने देना नहीं चाहते हैं तो इसका पूर्ण जिम्मेवार केन्द्र एवं राज्य सरकार है.

यहां मौलिक प्रश्न यह है कि क्या पत्थलगड़ी असंवैधानिक हैं ? झारखंड सरकार के अनुसार पत्थलगड़ी करना असंवैधानिक है इसलिए पत्थलगड़ी में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. यदि ऐसा होता है तो खूंटी एवं पश्चिमी सिंहभूम जिले के सभी मुंडा एवं हो आदिवासी लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी, वे लोग जेल जायेंगे और गांव का गांव खाली हो जायेगा.  क्या झारखंड के मुख्यमंत्री को पता भी है कि मुंडा एवं हो आदिवासियों के लिए पत्थलगड़ी का क्या अर्थ है ? क्या आदिवासियों की परंपरा और रूढ़ि के बारे में इन्हें जानकारी है ?

झारखंड सरकार को यह समझना चाहिए कि आदिवासी समाज में पत्थलगड़ी का महत्व खतियान से भी ज्यादा है. जब ब्रिटिश हुकूमत ने इस इलाके के मुंडाओं से कहा कि यह कैसे साबित कर सकते हो कि यह तुम्हारी जमीन है, तब मुंडाओं ने ससनदिरी के पत्थरों को दिखाते हुए जवाब दिया कि यही हमारे अस्तित्व के सबूत हैं. यही हमारा खतियान है. इस जमीन को हमारे पूर्वजों ने जोत-कोड़कर आबाद किया है, यह इसका प्रमाण है.

ब्रिटिश शासन के समय ससनदिरी के पत्थरों ने ही मुंडाओं को उनकी जमीन पर अधिकार दिलाया था. अंग्रेज आदिवासियों की संस्कृति, रूढ़ि एवं परंपरा का सम्मान करते थे , इसलिए उन्होंने पत्थलगड़ी को स्वीकारा.  पत्थलगड़ी कई आदिवासी समुदायों की संस्कृति, परंपरा एवं रूढ़ि है.  पत्थलगड़ी को पवित्र माना जाता है. आदिवासी लोग अपने पूर्वजों की याद, गांव का सीमांकन, बसाहट की सूचना देने इत्यादि के लिए पत्थलगड़ी करते हैं.

यदि हम भारत के संविधान को देखें तो अनुच्छेद – 13(3)(क) में रूढ़ि को विधि का बल माना गया है तथा पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के लिए रूढ़ि ही विधि का बल है। आदिवासी समाज रूढ़ि, प्रथा एवं परंपरा से चलता है तथा पत्थलगड़ी आदिवासी समाज की परंपरा हैं इसलिए पत्थलगड़ी पूर्णतः संवैधानिक है. चूंकि झारखंड के 13 जिले पूर्णरूप से अनुसूचित क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं इसलिए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को इस इलाके की आदिवासी संस्कृति, परंपरा, रूढ़ि, संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए. क्या मुख्यमंत्री रघुवर दास के द्वारा पत्थलगड़ी को असंवैधानिक कहना संविधान पर हमला नहीं है ? क्या यह शर्मनाक नहीं है? क्या यह आदिवासी समुदाय पर सीधा हमला नहीं है ?

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जब 24 दिसंबर 1996 को भारतीय संसद ने पेसा कानून 1996 को पारित कर आदिवासियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को कानूनी जामा पहना दिया तब देश के अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों ने मांदर, नगाड़ा और ढ़ोल बजाकर खुशी मनाया था क्योंकि उन्हें लगा था कि अब उनको अपने गांव में शासन करने का अधिकार मिल गया है. पेसा कानून को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व आई.ए.एस. आॅफिसर बी.डी. शर्मा एवं पूर्व आई.पी.एस. आॅफिसर बंदी उरांव के नेतृत्व में गांव-गांव में पत्थलगड़ी कर उसमें ग्रामसभा की शक्तियां एवं अधिकारों को लिखा गया था.

इस पत्थलगड़ी का उद्देश्य था गांव-गांव में ग्रामसभा के प्रभुत्व को स्थापित करना, अपना अस्तित्व का एहसास कराना एवं लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी देना. उस समय आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर पत्थलगड़ी किया गया लेकिन तब न केन्द्र सरकार को और न ही राज्य सरकार को इस पर कोई एतराज हुआ था. झारखंड राज्य के गठन के बाद भाजपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस पार्टी, झारखंड पार्टी, आजसू, जेडीयू एवं आरजेडी जैसी पार्टियां राज्य की सत्ता में हिस्सेदार रहीं  लेकिन किसी नेता ने पत्थलगड़ी पर कोई सवाल नहीं उठाया था. संभवतया वे जानते थे कि पत्थलगड़ी आदिवासियों की परंपरा है और उसे सत्ता को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन एक गैर-आदिवासी एवं गैर-झारखंडी रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनते ही यहां की साझा संस्कृति, स्थानीयता, सीएनटी/एसपीटी कानून, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनव्र्यवस्थापन कानून तथा पत्थलगड़ी पर हमला किया गया है. यह निश्चित तौर पर आदिवासियों के लिए चिंताजनक बात है. क्या रघुवर दास को आदिवासियों की संस्कृति, परंपरा एवं रूढ़ि का कोई ख्याल नहीं है ?

यहां मौलिक प्रश्न यह है कि पत्थलगड़ी आज अचानक असंवैधानिक कैसे हो गया ? पत्थलगड़ी से मुख्यमंत्री रघुवर दास क्यों घबरा गये हैं ? पत्थलगड़ी ने उन्हें सकते में क्यों डाल दिया है ? पत्थलगड़ी से क्यों डरती है झारखंड सरकार ?

असल बात यह है कि झारखंड सरकार ने राज्यभर के 21 लाख एकड़ तथाकथित गैर-मजरूआ जमीन को ‘ लैंड बैंक’ बनाकर उसमें डाल दिया है, जिसे औद्योगिक घरानों, निजी उद्यमियों एवं व्यापारियों को देना है। सरकार ने ‘ग्लोबल इंवेस्टर्स सम्मिट ’ में 210 एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर कर पूंजीपतियों के साथ 3.10 लाख करोड़ रूपये में झारखंड का सौदा किया है। इसलिए झारखंड की जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज सम्पदा को पूँजीपतियों को सौपना है। लेकिन पत्थलगड़ी कर आदिवासी लोग गांव-गांव में घोषणा कर रहे हैं कि उनके इलाकों में कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं घुस सकता है. इसका सीधा अर्थ है भूमि अधिग्रहण में रोड़ा पैदा करना. यदि झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों के सभी गांवों में पत्थलगड़ी किया जाता है तो सरकार को कहीं भी जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज सम्पदा नहीं मिलेगा.

पत्थलगड़ी सरकार के मुंह पर बहुत बड़ा तमाचा है और इसी डर से सरकार पत्थलगड़ी को असंवैधानिक बताकर पत्थलगड़ी में शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा कर उन्हें गिरफ्तार कर रही है. लेकिन पत्थलगड़ी को असंवैधानिक घोषित करना आदिवासी परंपरा, भारतीय संविधान एवं आदिवासी समुदाय पर हमला है.  झारखंड सरकार के द्वारा पत्थलगड़ी के खिलाफ दिये गये विज्ञापन में धरती आबा बिरसा मुंडा के तस्वीर का उपयोग बिरसा मुंडा का अपमान है क्योंकि बिरसा मुंडा उस मुंडा समाज से आते हैं, जहां पत्थलगड़ी एक परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है। पत्थलगड़ी संवैधानिक है, यह आदिवासियों की परंपरा है और ग्रामसभा को पत्थलगड़ी करने का अधिकार भी है.

[author] [author_image timthumb=’on’][/author_image] [author_info]ग्लैडसन डुंगडुंग आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता, शोधकर्ता एवं प्रखर वक्ता हैं. वे कई जनांदोलनों से जुड़े हुए हैं. उन्होंने आदिवासियों के मुद्दों पर हिन्दी एवं अंग्रेजी में कई पुस्तके लिखी हैं. [/author_info] [/author]

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