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योगी सरकार में पत्रकारों का बढ़ता उत्पीड़न, दलित पत्रकार को हिरासत में लेकर यातना दी

स्वतंत्र पत्रकार सत्य प्रकाश भारती ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और प्रशासनिक सुधार और लोक शिक़ायत विभाग को ईमेल भेजकर आईपीएस अधिकारी समेत थाने की पुलिस क्राइम टीम द्वारा खुद को अवैध रूप से हिरासत में रखकर मानसिक और शारीरिक यातना देने के संदर्भ में शिक़ायत दर्ज़ करवाया है। साथ ही उन्होंने सामाजिक न्याय और अनुसूचित जाति कल्याण विभाग में भी इस मामले की शिक़ायत की है।

इस मामले में अभी तक एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का कोई बयान नहीं है। लेकिन तमाम पत्रकार साथियों ने सत्य प्रकाश भारती मामले में एकजुटता जताते हुए अपने अपने तरीके से मामले को लेकर आवाज़ उठाई है।

लखनऊ निवासी सत्य प्रकाश भारती दलित समाज से आते हैं और पेशे से पत्रकार हैं। वो ‘ द मूकनायक ‘ और ‘ 4 पीएम न्यूज नेटवर्क ’ और ‘ तरुण मित्र ’ ग्रुप आदि के लिए रिपोर्टिंग का काम कर चुके हैं। फिलहाल वो स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं।

योगी सरकार में यूपी पुलिस को मिली अक़ूत क़ानूनी शक्तियों, और उनके द्वारा किए गये एनकाउंटर और पुलिस हिरासत में हुई मौतों के आंकड़े यूपी पुलिस का ख़ौफ़नाक़ चेहरा पेश करते हैं। जो लोग पुलिस हिरासत में मर गये या मार दिए गए वो तो अपनी यातना की कहानी बताने नहीं आ सकते हैं। लेकिन दर्दनाक यातना झेलकर ज़िंदा बचे जीवट पत्रकार सत्य प्रकाश भारती पुलिस यातना की जो कहानी सुना रहे हैं उसे सुनकर हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि तमाम हिरसती मौतों और एनकाउंटर कैसे हुए होंगे।

क्या है मामला

पत्रकार सत्य प्रकाश भारती लखनऊ गोमतीनगर में 31 जुलाई को हुए बैड टच कांड में पुलिस द्वारा बेक़सूर लोगों के फंसाने जाने को लेकर ‘न्यूजलॉड्री’ वेबपोर्टल के लिए एक खोजी रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। इसी सिलसिले में वो पुलिस का पक्ष जानने के लिए 17 अगस्त 2024 को गोमतीनगर थाने में डीसीपी से मिलने पहुँचे थे।

आगे की बात ख़ुद सत्य प्रकाश भारती की ज़ुबानी- जिस पवन यादव का नाम खुद मुख्यमंत्री ने यूपी विधानसभा में आरोपित के तौर पर लिया था उसने जमानत पर छूटने के बाद दावा किया कि वह बेगुनाह है और सिर्फ़ यादव होने के कारण पुलिस ने उसे उठाकर फ़र्ज़ी तरीके से मामले में फँसा दिया। इसी सिलसिले में सत्य प्रकाश भारती ने अन्य युवको से मुलाक़ात की। उनमे से कई युवको का दावा था कि पुलिस ने उन्हें बेवजह जेल भेज दिया। इसके बाद पुलिस अधिकारी का पक्ष लेने के लिए वो डीसीपी ऑफिस गये थे। इस केस में कुछ युवकों की उस दिन पेशी भी थी।

सत्य प्रकाश बताते हैं कि मैंने नियमानुसार पर्ची लिखी, और अधिकारी के समक्ष भेजा। मैंने बुलाने तक अपनी बारी का इंतज़ार किया। कई लोगो को अंदर बुलाया गया जिसमें जनता और पत्रकार शामिल थे। मैं चुपचाप बैठा रहा और फिर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा। एक-एक कर सभी अपनी बात बताकर कमरे से बाहर निकल गए। केवल मैं और एक बुजुर्ग व्यक्ति और पीआरओ ही कमरे में रह गए। डीसीपी ने पहले मुझसे पूछा। मैंने परिचय दिया कि मैं एक संस्था के लिए रिपोर्ट तैयार कर रहा हूँ और फ्रीलांस हूँ। मैंने पूरा प्रकरण समझाया। मैंने उनसे पूछा आपने सीएमओ ऑफ़िस के दबाव में तो कार्रवाई नहीं की। क्योंकि कुछ युवकों का दावा है कि उन्हें निर्दोष होने पर ही जेल भेज दिया। इस पर आईपीएस शशांक ने कहा कभी कोई अपराधी कहता है कि मैंने ग़लती की है। मैंने इसका प्रमाण दिया कि पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति को पकड़ा जो वहां नहीं था सिर्फ़ उसकी बाईक लेकर कोई गया था। पुलिस ने निर्दोष होने के बावजूद उस युवक को देर रात तक थाने में बैठाया। जो व्यक्ति उसकी गाड़ी ले गया था उसे बुलाया गया, तब जाकर पुलिस ने गाड़ी मालिक को छोड़ा और गाड़ी सीज कर दी और गाड़ी ले जाने वाले को गिरफ्तार कर लिया। सभी युवक यही कह रहे थे उन्होंने लडक़ी पर पानी नहीं डाला। सत्य प्रकाश ने आगे कहा कि उन्होंने पवन यादव और अरबाज़ का नाम लिया। जिस पर वह भड़क गए। उन्होंने कहा तुम ख़बर का पोस्टमार्टम क्यों कर रहे हो। पुलिस की कार्रवाई पर सवाल क्यों उठा रहे हो, तुम एजेंडा चलाने वाले पत्रकार हो। तुम समाजवादी पार्टी के लिए काम करते हो। तुम्हे तो जेल भेजूंगा।

दरअसल स्वतंत्र पत्रकार सत्य प्रकाश भारती लखऩऊ पुलिस की एक हालिया संदिग्ध कार्रवाई को लेकर इस मामले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए उनका डीसीपी कार्यालय जाना पुलिस तंत्र को नाग़वार गुज़र गया।

सत्य प्रकाश आगे बताते हैं कि- लखनऊ ईस्ट डीएसपी शशांक सिंह ने उन्हें जातिसूचक गालियां देते हुए कहा- ”  तू एजेंडा चलाने वाला पत्रकार है, समाजवादी पार्टी का है, तुझे कुर्सी दे दी गई इसलिए सम्मान हज़म नही हो रहा है, तेरा तो एनकाउंटर कर दूंगा, 353 में जेल भेज दूंगा “।

अस्पताल में भर्ती सत्य प्रकाश भारती

लखनऊ पुलिस का पक्ष

वहीं लखनऊ पुलिस ने इस मामले में जो बयान ज़ारी किया है वह अपने आपमें न सिर्फ़ हास्यास्पद है बल्कि तर्क़ से परे है। पुलिस ने अपने बयान में कहा है- दिनांक 17 अगस्त 2024 को गोमती नगर थाना कार्यालय में जन सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति (सत्य प्रकाश भारती) चोरी चुपके से अपने मोबाईल से स्टिंग ऑपरेशन करते हुए बातचीत को अवैध तरीके से रिकॉर्ड कर रहा था। तभी वहाँ उपस्थित लोगों द्वारा इस पर आपत्ति प्रकट की गई तो अपने को पत्रकार बताते हुए आक्रामक होकर अनर्गल वार्तालाप करने लगा। जिससे पूछताछ की गई तो सत्य प्रकाश भारती द्वारा यह स्वीकार किया गया कि वर्तमान में वह पत्रकारिता नहीं कर रहा है। बल्कि रुपये की आवश्यकता के कारण एक षडयंत्र के तहत सनसनी फैलाने के लिए ग़लत तरीके से कार्यालय में गोपनीय तरीके से रिकॉर्डिंग (स्टिंग ऑपरेशन) कर रहा था। लगातार आक्रामक होने के कारण जन सुनवाई बाधित हो रही थी। तथा सरकारी कार्य प्रभावित हो रहा था। परिशान्ति भंग के निवारणार्थ व संज्ञेय अपराध कारित होने की आशंका के दृष्टिगत सत्य प्रकाश भारती को धारा 170/126/135 अंतर्गत बीएनएसएस की निरोधात्मक कार्यवाही की गई। अपनी सफाई में यूपी पुलिस ने आगे दावा किया है कि थाना कार्यालय परिसर सीसीटीवी से आच्छादित है। पुलिस के द्वारा विधिपूर्ण कार्यवाही विधिक दायरे में करने के अतिरिक्त किसी तरह की मारपीट, व गाली गलौज व कोई भी अमानवीय व्यवहार नहीं किया गया है।

सबूत मिटाने के लिए मोबाइल फॉर्मेट किया

सत्य प्रकाश भारती पुलिस के बयान पर कहते हैं कि डीसीपी ऑफ़िस में कैमरा लगा है ऐसे में लखनऊ पुलिस द्वारा स्टिंग की बात कहना मूर्खता से कम नहीं है। CCTV लगे होने के बावजूद कोई किसी का स्टिंग कैसे कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसम्बर 2020 को परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह के मामले में कहा था कोई भी व्यक्ति पुलिस का स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर सकता है। क्योंकि वह पब्लिक सर्वेंट है। रही काम बाधित होने की बात तो कमरे में केवल एक बुजुर्ग बैठे थे। उनसे डीसीपी ने कोई बात नहीं की। वह अपने काम से आये थे। कोई काम बाधित नहीं हुआ। वह सवाल उठाते हैं कि पुलिस ने मेरा फोन फॉर्मेट क्यों करवाया? आखिर वह जनसुनवाई में ऐसी कौन सी बात कर रहे थे जो रिकॉर्ड नहीं की जानी चाहिए थी।

पत्रकार सत्य प्रकाश भारती बताते हैं कि लखनऊ बारिश के बाद सड़क पर हुड़दंग मामले में पुलिस ने एकतरफ़ा कार्रवाई के सबूत उनके पास थे जिसे पुलिस ने उनका मोबाइल छीनकर फॉर्मेट कर दिया। बता दें कि लखनऊ पुलिस ने इस मामले में पहले 16 लड़कों को गिरफ्तार किया था बाद में ये संख्या बढ़कर 25 हो गई थी। इसमें कई बेगुनाह लड़के शामिल थे।

यातना से हालत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती किया

सत्य प्रकाश भारती लगाते हैं कि डीसीपी ने उनका मोबाईल PRO से लिया उसे फॉर्मेट करने को बोला। फिर उनका चश्मा निकाल लिया और पीटने को बोला गया लेकिन बुजुर्ग बैठे थे इसलिए वहां हाथ नहीं लगाया। पहले क्राइम टीम को बुलाया गया। जब वह नहीं आई तो थाना गोमतीनगर से पुलिस बुलाई गई। थानेदार राजेश त्रिपाठी ने उन्हें धक्के मारते हुए डीसीपी कार्यालय से बाहर लाये और गाड़ी में पीछे बैठाकर पेट,मुंह और जबड़े पर घूसा मारा। फिर रास्ते भर पीटते हुए थाने ले गए। इंस्पेक्टर के कमरे के पीछे एक कमरा बना है वहां ले जाकर मुझे पीटा गया। मुझसे जबरन बयान लिखवाया गया। मुझे पीटकर कहा गया-‘लिख की मैं चोरी से रिकार्डिंग कर रहा था।’- हत्या के डर के कारण उन्होंने जो कहा मैंने कर दिया। पीटने के बाद मुझे 6-7 घण्टे ज़मीन पर बैठाये रखा। सत्य प्रकाश भारती आगे बताते हैं  कि दो दिन से मैंने कुछ भी नहीं खाया था बस ख़बर पर फोकस कर रहा था। भूखे प्यासे मैं ज़मीन और बैठा था। मेरा नीचे का हिस्सा खून ज़मने के कारण सुन्न हो गया। मेरा पेट का हिस्सा बुरी तरह दर्द हो रहा था। मेरा बदन अँकड़ने लगा। मैं बेसुध हो गया,पुलिस यह देखकर घबरा गई, मुझे टांग कर बाहर लाया गया।

वो आगे कहते हैं कि मेरा बदन ठंडा पड़ा जा रहा था। थाने लाये गए अन्य आरोपी से पुलिस ने मेरे हाथ-पैर रगड़ने को कहा। मुझे एक कार में टांग कर लिटाया गया। पुलिस मुझे पत्रकार पुरम के नोवा अस्पताल ले गई। वहां डॉक्टर नहीं मौजूद थे। अस्टिटेंट डॉक्टर ने मुझे कोई दवा लगाई। मेरी हालत खराब होती जा रही थी। डॉक्टरो ने पुलिस को मुझे लोहिया अस्पताल ले जाने की सलाह दी। लेकिन लखनऊ पुलिस खुद को फँसता देख रही थी इसलिए मुझे सरकारी संस्थान न ले जाकर मिठाई वाला चौराहे के पास एम्बुलेंस के जरियर मेट्रो एन्ड ट्रामा सेंटर ले जाया गया। अस्पताल के आईसीयू में मुझे भर्ती कराया गया।

पत्रकार सत्य प्रकाश आगे बताते हैं कि मामला बिगड़ता देख पुलिसकर्मियों ने उनसे उनके परिवार वालो का नम्बर पूछा। उनकी स्थिति ठीक नहीं थी। सारे नम्बर मोबाईल में थे। दरोगा ने उनका मोबाईल मंगवाया, लेकिन पुलिस वालों ने सारा डाटा डिलीट कर दिया था और फोन पर अपना लॉक लगा दिया। जिसके चलते सत्य प्रकाश अपनी मोबाइल में एक्सेस नहीं कर पा रहे थे। सत्य प्रकाश भारती आगे बताते हैं कि मेरा दोस्त दूसरे जिले से मुझसे मिलने आया था वह लगातार फोन कर रहा था इसलिए उसका नम्बर डिस्प्ले पर दिख रहा था जिसे देखकर पुलिस ने उसे कॉल की और बुलाया। मेरे हाथ मे वीगो लगाकर दवाइयां चढाई गई। क्राइम टीम का एक सिपाही को मेरी इस हालत पर भी तरस नहीं आ रहा था। डॉक्टर से क्राइम टीम के सिपाही ने कहा यह साला नाटक कर रहा है। इस पर डॉक्टर ने कहा इन्हें मार्फिन (बेहोशी की दवा) की ओवरडोज दे दे ठीक हो जाएगा। सब उल्टी सीधी बात कर रहे थे। दरोगा ने फोन करके मेरे भाई को बुलाया। दवाई चढ़ने के बाद मेरी स्थिति कुछ ठीक हुई तो रात 11 बजे मुझे डाक्टरो ने डिस्चार्ज कर दिया। पुलिस मुझे फिर थाने लेकर आ गई। रात में 12 बजकर 2 मिनट पर जीडी पर मुझे दाख़िल किया गया। रात 2 बजे मुझे एसीपी विभूतिखंड के कार्यालय ले जाया गया। मैं ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। 18 तारीख (रविवार) का 2:30 बज रहा था। मेरी खराब हालत को देखकर पुलिस अधिकारियों ने छुट्टी के दिन कोर्ट बैठा दी और मुझे जमानत दे दी। मैं घर आ गया।

लोकसभा सांसद चंद्रशेख़र आज़ाद ने आरोपी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग करते हुए इस मामले पर कहा है कि – मात्र सवाल पूछने पर लखनऊ पुलिस द्वारा शोषित वंचित समाज के पत्रकार को प्रताड़ित करने, अवैध हिरासत में रखकर पिटाई करने, मोबाइल फॉर्मेट करने और तबीअत खऱाब होने पर शांतिभंग काचालान कर छोड़ने की घटना अफ़सरों की तानाशाही बताती है और साथ ही ये भी बताती है कि सरकार दलित विरोधी है।

क्या है बैड टच कांड

31 जुलाई को दोपहर के वक़्त लखनऊ में 2 घंटे में 55.7 मिलीमीटर बारिश हुई। जिससे अंबेडकर पार्क और ताज होटल के पास मरीन ड्राइव पर पानी भर गया। पानी में कई दर्जन लड़के हुड़दंग कर रहे थे और सड़क से गुज़रने वाले लोगों को परेशान कर रहे थे। इसी दौरान एक बाइक वहां से गुज़री जिस पर युवा कपल बैठे थे। लफंगों ने लड़की को देखते ही उस पर पानी उलीचा फिर उसे घेरकर बदसलूक़ी की।घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद योगी सरकार की जमकर फ़ज़ीहत हुई। राजधानी के वीआईपी इलाके में दिनदहाड़े हुई घटना के बाद सरकार ने दो आईपीएस अफ़सर डीसीपी पूर्वी प्रबल प्रताप सिंह और एसीडीपी अमित कुमावत और एसीपी अंशु जैन को तत्काल प्रभाव से हटा दिया था। एसएचओ गोमती नगर दीपक पांडेय और चौकी प्रभारी समेत पूरी चौकी को सस्पेंड कर दिया गया था।

मामला अगले दिन यानि एक अगस्त को विधानसभा में उठा। जहाँ 16 आरोपियों में से केवल पवन यादव और मोहम्मद अरबाज़ का नाम लेते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़े तल्ख लहज़े में कहा था कि इस घटना के अपराधियों के लिए सद्भवाना ट्रेन नहीं बल्कि बुलेट ट्रेन चलेगी।

इस मामले में पवन यादव ने ज़मानत मिलने के बाद पिछले सप्ताह सपा कार्यालय जाकर अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। जिसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रेस कान्फ्रेस में कहा कि जिन अधिकारियों ने अपना रुतबा बनाने के लिए और सरकार की छवि चमकाने के लिए पवन यादव को थाने में ले जाकर हाथ जोड़कर जो तस्वीर छापी है। मैं इनसे कहूँगा उनको मत भूलना और हम भी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नाम तो और भी पढ़े जाने थे और नाम क्यों नहीं पढ़े गए?

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी इस मामले में सिर्फ़ एक यादव और एक मुस्लिम लड़के का नाम विधानसभा में मुख्यमंत्री द्वारा लेने पर सवाल उठाते हुए उन 14 लड़कों के नाम लिखे जो गिरफ्तार किए गये लेकतिन उनका नाम मुख्यमंत्री द्वारा नहीं लिया गया। क्योंकि ये ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया जाति के लड़के थे।

वहीं ज़मानत के बाद आज तक से बात करते हुए पवन यादव ने कहा कि वह मौके पर मौज़ूद नहीं था। बल्कि चौराहे पर चाय पी रहा था, तभी पुलिस पकड़ ले गई। वह घटना के वीडियों में भी नहीं है, शायद यादव बिरादरी का होने के चलते उसे मामले में फँसाया गया है।

बता दें कि सबसे पहले जिन 16 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था उनके नाम हैं- पवन यादव, सुनील कुमार, मोहम्मद अरबाज़, विराज साहू, अर्जुन अग्रहरि, रतन गुप्ता, अमन गुप्ता, अनिल कुमार, प्रियांशु शर्मा, आशीष सिंह, विकास भंडारी, मनोज कुमार, अभिषेक तिवारी, कृष्णकांत गुप्ता, जय किशन, अभिषेक साहू। लेकिन योगी ने सिर्फ़ पवन यादव और मोहम्मद अऱबाज़ का नाम लिया।

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