समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

खुले बाजार के बड़े खिलाड़ियों के सामने किसान कैसे टिकेगा ?

बीते सितंबर माह में संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने खेती से जुड़े तीन विधेयक – कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य( संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक(सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन व सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020  पारित करवाये. इन विधेयकों को पारित करवाने के लिए मोदी सरकार ने राज्यसभा में तमाम संसदीय नियम-कायदों को ही ताक पर रख दिया.

इन विधेयकों के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा दावा कर रहे हैं कि ये किसानों की आजादी के विधेयक हैं. यह अलग बात है कि किसानों ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया है. पूरे देश में, खास तौर पर पंजाब और हरियाणा में किसान,इन तथाकथित आज़ादी के क़ानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. पंजाब में किसान आंदोलन के ताप के कारण ही मोदी सरकार में शामिल अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे जैसा कदम उठाना पड़ा और एनडीए के सबसे पुराने घटक अकाली दल ने स्वयं को गठबंधन से अलग कर लिया. हरियाणा में भी सत्ताधारी भाजपा से पूर्व विधायक समेत कई नेताओं के इस्तीफे की खबरें आ रही हैं.

इन विधेयकों के पक्ष में मोदी सरकार के तर्क बड़े रोचक हैं.  कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य( संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 के संदर्भ में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि अब किसान अपनी उपज को कहीं बेच सकता है. क्या इससे पहले उपज कहीं भी बेचने पर रोक थी ? मोदी सरकार के मंत्री और समर्थक दावा कर रहे हैं कि मंडी में किसानों को बिचौलिये ठगते थे और यह कानून इस ठगी को बंद कर देगा. केंद्र सरकार कहना क्या चाहती है ?  यह कि  सरकार की मंडियों में बिचौलिये किसानों को ठगते रहते थे, सरकार उन बिचौलियों को तो रोक नहीं सकती, इसलिए उसने सोचा कि क्यूँ न मंडियों के तंत्र को ही ध्वस्त कर दिया जाये ? यह तो सिर दर्द होने पर सिर काट देने जैसी मिसाल हो गयी !

इसी तरह के तर्क आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 के बारे में भी केंद्र सरकार द्वारा दिये जा रहे हैं. 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करते हुए अनाज,दाल,खाद्य तेल, तिलहन,आलू,प्याज जैसी वस्तुओं को इस अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया है . इस मामले में तर्क दिया गया  कि इनके असीमित भंडारण पर रोक होने के बावजूद भी इन वस्तुओं की कीमतों पर तो रोक नहीं लगाई जा सकी ! यह भी वैसा ही तर्क है कि कालाबाजारी रोकने के कानून के बावजूद कालाबाज़ारी तो रुकी नहीं तो क्यूँ न कालाबाजारी करने वालों को ही राहत दे दी जाये !

कृषक(सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन व सेवा पर करार विधेयक 2020 के बारे में कहा गया कि इस विधेयक के पारित होने के बाद किसान को उसके खेत में ही उसकी उपज का मूल्य मिलने लगेगा. खरीददार जाएगा और खेत में ही किसान से कौन सी फसल उगानी है और उस फसल का मूल्य तय कर आएगा.

क्या वाकई किसानों के “अच्छे दिन” आने वाले हैं ? क्या ऐसा होने वाला है कि किसान अपने खेत में राजा की तरह रहेगा और खरीददार से मोलभाव करके अपनी फसल बेचेगा ? इसका प्रयोगात्मक स्वरूप जानने के लिए हमें अमेरिका के अनुभव से रूबरू होना पड़ेगा. अमेरिकी किसानों का यह अनुभव खेत में किसान की उपज के बिकने की असलियत बताता है. अमेरिकी किसानों के इस अनुभव को देश में कृषि मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार पी. साईंनाथ के एक पुराने लेख के जरिये समझ सकते हैं. दिसंबर 2012 में अंग्रेजी अखबार- द हिंदू- में पी.साईंनाथ ने एक लेख लिखा,जिसका शीर्षक था – “Knowing your onions in New York.”

साईंनाथ के मूल अंग्रेजी लेख का लिंक : https://www.thehindu.com/opinion/columns/sainath/Knowing-your-onions-in-New-York/article12438011.ece

उक्त लेख में साईंनाथ, न्यू यॉर्क शहर से 60 मील दूर खेती करने वाले एक किसान क्रिस पावलेसकी की मुंह जुबानी बड़े रिटेल स्टोर्स को अपने प्याज बेचने की दास्तान का विवरण दिया है. साईंनाथ के लेख में दर्ज, क्रिस पावलेसकी के कथन के अनुसार वो बड़ा प्याज उगाने को विवश हैं क्यूंकि वालमार्ट, शॉप राइट्स जैसे चेन स्टोर,उन्हें बड़ा प्याज उगाने को कहते हैं. पावलेसकी कहते हैं कि चेन स्टोर दो इंच से लेकर ढाई इंच आकार का प्याज ही खरीदते हैं. इससे छोटा प्याज वे खरीदते ही नहीं हैं और मजबूरन वह प्याज फेंकना पड़ता है. साईंनाथ ने अपने लेख में खरीद के अभाव में फेंक दिये गए छोटे आकार के प्याज के ढेर का फोटो भी प्रकाशित किया.

पर बड़ा प्याज ही खरीदना है,ऐसा क्यूँ है ? इसका कारण उक्त लेख में पावलसकी बताते हैं. वे कहते हैं कि चेन स्टोर्स की यह रणनीति है कि उपभोक्ता बड़ा प्याज खरीदेगा तो उसका उपयोग कम और बर्बादी ज्यादा होगी. बड़े प्याज का एक अंश ही एक बार के खाने में इस्तेमाल होगा. आधे कटे हुए प्याज के अगली बार पकाए जाने तक खराब होने की संभावना अधिक रहेगी और उपभोक्ता पुनः प्याज खरीदने को मजबूर होंगे. बक़ौल पावलसकी, “जितना आप बर्बाद करेंगे,उतना अधिक खरीदेंगे. चेन स्टोर्स यह जानते हैं. इसलिए बर्बादी,सहायक उत्पाद नहीं,रणनीति है.”

 एक प्रश्न सहज ही उभरता है कि क्या इन चेन स्टोर्स को उनके मनमाफिक आकार का प्याज बेच कर किसानों को लाभ होता है. पावलसकी के हवाले से साईंनाथ बताते हैं कि चेन स्टोर्स अपने मनमाफिक आकार के प्याजों को 1.49 डॉलर से 1.89 डॉलर प्रति पाउंड की दर से बेचते हैं और किसान को मात्र 17 सेंट प्रति पाउंड ही मिलता है. किसान को मिलने वाली रकम इतनी कम है कि उसके लिए गुजर-बसर करना ही मुश्किल है.

क्या सामान्य तौर पर आप कल्पना कर सकते हैं कि किसान को एक निश्चित आकार का प्याज उगाने को कहा जाये ? आम तौर पर यह कल्पना से परे बात है. लेकिन अमेरिका में कृषि उपज के बाजार पर काबिज पूंजी के बड़े खिलाड़ी इस चमत्कार को मुमकिन कर रहे हैं और इसके जरिये किसान और उपभोक्ता दोनों को ठग रहे हैं.

भारत में जो कृषि को बाजार के हवाले करने को किसान को आज़ादी देना बता रहे हैं,उन्हें अमेरिका यह मॉडल बता रहा है कि किसान कितना और कैसा आज़ाद होगा ! निजी कंपनियाँ उपज ही नहीं उपज का आकार तक तय करेंगी !  पावलसकी ने साईंनाथ से कहा, “ छोटा किसान वालमार्ट से मोलभाव नहीं कर सकता.”  भारत के बारे में भी यही सच है. 68 प्रतिशत एक हेक्टेयर से कम कृषि जोत वाला किसान और 17 प्रतिशत दो हेक्टेयर से कम की कृषि जोत वाला किसान,खुले बाजार के बड़े खिलाड़ियों से कैसे मोलभाव करेगा और कैसे उनके सामने टिकेगा ?

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion