हाथरस बलात्कार केस में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रशासनिक और पुलिस अफसरों की भूमिका बेहद संदेहास्पद है. हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार के मृतक युवती के परिजनों के धमकाते वीडियो सार्वजनिक हो चुके हैं. पीड़ित परिजनों ने जिलाधिकारी पर मारपीट और केस बदलने की धमकी देने के आरोप लगाए हैं. जहां प्रशासन धारा 144 लगी होने का हवाला दे कर पीड़ित परिवार से किसी को नहीं मिलने दे रहा था,वहीं आरोपियों के पक्ष में सवर्णों की पंचायत,बलात्कार की जगह से 500 मीटर की दूरी पर हुई,सैकड़ों लोग जमा हुए,लेकिन किसी ने बलात्कार के आरोपियों के लिए “इंसाफ की मांग” करने वाली इस पंचायत को रोकने की कोई कोशिश नहीं की. आरोपियों के पक्ष में खुलेआम पंचायत हो और पीड़ित पक्ष सहमा-सहमा रहे,यह दर्शाता है कि योगी आदित्यनाथ के राज में पलड़ा किसका भारी है और जातीय पूर्वाग्रह तो इसमें शामिल है ही.
पीड़ित परिजनों का यह भी कहना है कि हाथरस के जिलाधिकारी ने उनसे कहा कि वे कहें कि लड़की रात में घास काटने गयी थी,पत्थर पर पैर फिसलने से गिर गयी,गिरने की वजह से ही उसकी जीभ कटी और कमर की हड्डी टूट गयी.ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरा ज़ोर यह स्थापित करने पर लगाया हुआ है कि इस मामले में बलात्कार नहीं हुआ. आनन-फानन में लड़की का शव जला देने के के बाद उत्तर प्रदेश के एडीजी प्रशांत कुमार ने एक बयान में मृतका की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट और फोरेंसिक साइन्स लैबोरेटरी(एफ़एसएल) की रिपोर्ट के आधार पर दावा किया कि युवती के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं और उसकी मृत्यु गले में लगी चोट की वजह से हुई.
बीते वर्ष कांवड़ियों पर हेलीकाप्टर से फूल बरसाने के लिए सुर्खियां बटोरने वाले एडीजी प्रशांत कुमार ने बलात्कार की बात को उत्तर प्रदेश में जातीय हिंसा भड़काने की साजिश करार दिया. बलात्कार नहीं हुआ, इस बात को स्थापित करने के लिए एडीजी प्रशांत कुमार ने एफ़एसएल की उस रिपोर्ट का हवाला दिया,जिसके अनुसार युवती के शरीर में वीर्य नहीं पाया गया.
लेकिन अब सामने आए कानूनी पहलू और नए तथ्य,यह बयान कर रहे हैं कि एडीजी प्रशांत कुमार का दावा नितांत खोखला है.
कानून के जानकार और लाइव लॉं के मैनिजिंग एडिटर मनु सेब्स्टियन ने लाइव लॉं पोर्टल पर लिखे एक लेख ( https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/hathras-case-presence-of-sperm-not-necessary-to-prove-rape-up-police-claim-contrary-to-law-163872 ) में विभिन्न उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के हवाले से बताया कि बलात्कार सिद्ध करने के लिए पीड़िता के शरीर में वीर्य का पाया जाना आवश्यक नहीं है. मनु लिखते हैं, “उत्तर प्रदेश राज्य बनाम बाबूनाथ में (1994) 6 SCC 29, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “… बलात्कार के अपराध का गठन करने के लिए यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है कि पुरुष अंग का पूर्ण प्रवेश हो, वीर्य का उत्सर्जन हो और हाईमन टूटे. पुरुष अंग का लेबिअ मजोर, वल्व या पुडेंडा में पुरुष अंग का आंशिक या थोड़ा प्रवेश, वीर्य उत्सर्जन के साथ या बिना, या यहां तक कि पीड़िता के निजी अंग में प्रवेश का प्रयास आईपीसी की धारा 375 और 376 के उद्देश्य के लिए पर्याप्त होगा। ऐसा इसलिए है कि जननांगों पर घाव लगने या वीर्य के दाग छोड़े बिना भी बलात्कार का अपराध करना संभव है.”
उन्होने लिखा कि “ बलात्कार के अपराध में आईपीसी में 2013 के संशोधन के बाद भारी बदलाव आया है, जिसमें अपराध के दायरे का विस्तार किया गया था, जिसमें लिंग-योनि प्रवेश के अलावा अन्य मामले शामिल किए गए थे। नई परिभाषा के अनुसार, किसी भी हद तक प्रवेश बलात्कार का गठन करेगा.” अपने लेख में मनु सेब्स्टियन लिखते हैं कि मृतका के शरीर में वीर्य न मिलने के आधार पर बलात्कार न होने का उत्तर प्रदेश पुलिस का दावा कानून के विपरीत है.
कानूनी स्थिति तो अपनी जगह है ही. लेकिन तथ्य भी हाथरस केस में बलात्कार से इंकार की उत्तर प्रदेश पुलिस की थ्योरी की धज्जियां उड़ाते प्रतीत होते हैं. न्यूज़ पोर्टल- द वायर- में छपी एक रिपोर्ट ( https://thewire.in/women/aligarh-jnmch-hathras-victim-mlc-report-up-police-rape ) के अनुसार अलीगढ़ के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल द्वारा तैयार की गयी मेडिको लीगल इग्जामिनेश्न (एमएलसी) रिपोर्ट के अनुसार मृतका के शरीर में लिंग के जबरन प्रवेश के स्पष्ट लक्षण हैं.
इस्मत अरा द्वारा द वायर में लिखी गयी उक्त रिपोर्ट के अनुसार 54 पृष्ठों की एमएलसी रिपोर्ट में युवती के शरीर में जबरन लिंग के प्रवेश और दुपट्टे से गला घोंटे जाने समेत उसके साथ तमाम ज़ोर जबरदस्तियों और उनके फलस्वरूप शरीर को पहुंचे नुकसान को दर्ज किया गया है. घटना के वक्त युवती के बेहोश होने की बात भी रिपोर्ट में दर्ज है.
द वायर के अनुसार एफ़एसएल की जिस रिपोर्ट के आधार पर एडीजी प्रशांत कुमार ने युवती के साथ बलात्कार न होने की बात कही, उसके लिए सैंपल ही घटना के 11 दिन के बाद लिया गया, इसलिए उसमें शरीर में वीर्य पाया जाना असंभव था.
द वायर की रिपोर्ट कहती है कि एडीजे प्रशांत कुमार ने इस संदर्भ में कहा कि वे केवल एफ़एसएल रिपोर्ट संबंधी तथ्य बयान कर रहे थे,किसी को क्लीन चिट नहीं दे रहे थे. लेकिन एडीजे प्रशांत कुमार ने जब बलात्कार न होने संबंधी बयान दिया तो उस वीडियो में वे साफ तौर पर कह रहे हैं कि बलात्कार की बात झूठ और उत्तर प्रदेश में जातीय हिंसा भड़काने की साजिश है. वायर की रिपोर्ट के अनुसार तो जब प्रशांत कुमार ने एफ़एसएल रिपोर्ट के हवाले से बलात्कार न होने का दावा किया तो उन्हें एमएलसी रिपोर्ट की जानकारी थी. इस रिपोर्ट में हाथरस के एस पी पद से हाल में निलंबित किए गए विक्रांत वीर का बयान भी है,जो उन्होंने एमएलसी रिपोर्ट के संदर्भ में दिया है.
कानूनी स्थिति और एमएलसी रिपोर्ट तो हाथरस मामले में बलात्कार की पुष्टि करते हैं. फिर योगी आदित्यनाथ की पुलिस बलात्कार से इंकार करके किसको बचाना चाहती है ? एडीजी प्रशांत कुमार बलात्कार की बात को जातीय हिंसा भड़काने की साजिश करार दे रहे थे,लेकिन तथ्य तो उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस के जातीय पूर्वाग्रह की ओर इशारा कर रहे हैं.