माले विधायकों ने लाॅकडाउन से प्रभावित मजदूरों के लिए एक-एक महीने का वेतन देने की घोषणा की
भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने आज ईमेल के जरिए बिहार के मुख्यमंत्री को आज ज्ञापन भेजकर मांग की कि लाॅकडाउन के कारण राज्य के अंदर और बाहर बड़ी संख्या में फंसे मजदूरों की सहायता के लिए राज्य सरकार विभिन्न राजनीतिक दलों-श्रमिक व स्वंय सहायता समूहों-संगठनों से काॅर्डिनेशन कायम करे.
उन्होंने कहा कि जरूरतमंदों को सही समय पर राहत दिया जाना जरूरी है लेकिन प्रशासन की ओर से ऐसी कोई भी पहलकदमी नहीं दिख रही है. यह बहुत ही चिंताजनक है.
उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने 6 सूत्री सुझाव सरकार के सामने रखे हैं और उम्मीद है कि सरकार इनका तत्काल सकारात्मक जवाब देगी.
इस बीच भाकपा-माले के तीनों विधायकों काॅमरेड महबूब आलम, सुदामा प्रसाद और सत्यदेव राम ने लाॅकडाउन से प्रभावित पीड़ितों के लिए अपने एक-एक महीने की राशि सहायता फंड में देने की घोषणा की है.
मुख्यमंत्री को भेजे गए ज्ञापन में कहा गया है कि कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए 21 दिवसीय राष्ट्रव्यापी लाॅक डाउन ने दूसरी अन्य गंभीर समस्यायें खड़ी कर दी हैं. प्रवासी मजदूरों और छात्रों को इसकी सर्वाधिक मार झेलनी पड़ रही है. देश के विभिन्न हिस्सों में सबसे ज्यादा अपने ही प्रदेश के मजदूर हैं. अचानक लाॅकडाउन के कारण वे जगह-जगह फंस गए हैं. कई जगह से रिपोर्टें आ रही हैं कि उनके पैसे खत्म हो गए हैं और उलटे पुलिस उनकी समस्याओं को हल करने की बजाए लाठियां चला रही हैं. बड़ी संख्या में बिहार के मजदूर दिल्ली, राजस्थान आदि जगहों से कंधों पर अपने बच्चों को लेकर पैदल ही बिहार की ओर चल दिए हैं. भूख-प्यास आदि के कारण ये किस प्रकार बिहार पहुंच पायेंगे, कहना मुश्किल है. राज्य के अंदर भी मजदूर जगह-जगह फंसे हुए हैं. जो प्रवासी मजदूर बाहर से अपने गांव पहुंच गए हैं, उनके लिए अभी तक किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं की गई है.
मीडिया में ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं कि डाॅक्टर कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी आवश्यक सामानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.अस्पतालों में आवश्यक सेवाएं अबतक उपलब्ध नहीं हो सकी हैं. जांच केंद्रों की भी संख्या महज एक ही है.
ऐसी विकट परिस्थिति में आवश्यकता इस बात की थी कि सरकार अन्य दूसरे राजनीतिक दलों, श्रमिक संगठनों और सामाजिक समूहों के साथ ऊपर से लेकर नीचे तक कोआॅर्डिनेशन बनाती, ताकि इन समस्याओं के तत्काल हल का कोई रास्ता निकाला जाता. सरकार अपनी ओर से पहलकदमी ले रही है, लेकिन वह अपर्याप्त है. अन्य समूहों का सहयोग लेने की बजाए प्रशासन का रवैया उन्हें घर में बंद कर देने वाला और घोर गैरलोकतांत्रिक है. हेल्प नंबर जारी किए जाने के बावजूद भी संपर्क स्थापित नहीं हो पा रहे हैं. इसका सीधे तौर पर नुकसान प्रवासी मजदूरो को उठाना पड़ सकता है और कोरोना के साथ-साथ गरीबों को अन्य दूसरी समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं.
इस आलोक में हम आपसे मांग करते हैं कि
- लाॅकडाउन की आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर सरकार को बड़े तथा और व्यापक पैमाने पर कदम उठाने चाहिए. इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों, श्रमिक संगठनों और स्वंय सहायता समूहों का व्यापक सहयोग लेना चाहिए ताकि प्रवासी मजदूरों को समय पर सहयोग प्रदान करने की दिशा में कदम उठाए जा सकें.
- विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, विधायकों व अन्य महत्वपूर्ण नेताओं को प्रशासन द्वारा पास जारी किए जाने चाहिए, ताकि वे बाहर से आने वाले मजदूरों के लिए अपने संगठन की ओर से भी पहलकदमी खोल सकें. प्रशासन और राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं में कोआॅर्डिनेशन कायम किया जाना चाहिए. इसे जिला स्तर पर भी लागू किया जाना चाहिए. पंचायत प्रतिनिधियों के जरिए सरकार सहायता के कार्यों को बेहतर तरीके से कर सकती है.
- लाॅकडाउन होने की वजह से बैंक एकाउंट में आने वाली पेंशन, सहायता व अन्य राशि अभी तत्काल कोई राहत प्रदान नहीं करने वाली है क्योंकि एक तो लोग बाहर निकल नहीं पा रहे हैं और यदि एटीएम की लाइन में लगते हैं तो संक्रमण फैलने की संभावना हो सकती है. इसलिए सरकार को तत्काल गरीबों, मजदूरों व अन्य जरूरतमदों के बीच अनाज बांटने की गारंटी करनी चाहिए, हो सके तो उनके लिए पके हुए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए. इस काम में राजनीतिक दलों, श्रमिक संगठनों व स्वंय सहायता समूहों की मदद ली जानी चाहिए और उन्हें परमिटेड किया जाना चाहिए.
- डाॅक्टरों की चिंताओं पर सरकार गंभीरता से विचार करे और उनके लिए आवश्यक मेडिकल के सामान तत्काल उपलब्ध करवाए. कई जगह से ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि डाॅक्टर के पास न्यूनतम मेडिकल सामान तक उपलब्ध नहीं है. एनएमसीएच के 83 डाॅक्टरों के कोराना से प्रभावित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है, इसलिए इस पर तत्काल सरकार को ध्यान देना चाहिए.
- कोरोना के टेस्ट की प्रक्रिया बहुत ही धीमी है. डब्लूएचओ ने आगाह किया है कि केवल लाॅकडाउन पर्याप्त नहीं है, बल्कि ज्यादा से ज्यादा टेस्ट पर ध्यान देना होगा. लेकिन हमारे राज्य में जांच केंद्रों की संख्या महज 1 है. इसे तत्काल विस्तार दिया जाए.
- प्रशासन का रवैया इस आपातकालीन दौर में भी बेहद अमानवीय बना हुआ है. लाॅकडाउन का गलत इस्तेमाल करके पुलिसिया बर्बरता बेलगाम व वहशी होती जा रही है. इसे तत्काल नियंत्रित करें अन्यथा जनता के सब्र की सीमा टूट सकती है और फिर बेहद ही मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी.