दिल्ली, 11 दिसंबर,
ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, मोदी सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू किए जाने की कड़ी भर्त्सना करते हुए मांग करता है कि संविधान की आत्मा और उसके मूल ढांचे पर हमला कर उसे तहस नहस करने वाले इस काले कानून को तत्काल वापस लिया जाए.
एआईपीएफ राष्ट्रीय सचिवालय ने इस बात पर गहरी आपत्ति जाहिर की है कि संविधान की मूल धर्मनिरपेक्ष और समावेशी भावना को यह कानून पूरी तरह धार्मिक आधार पर मुसलमानों को बाहर रखकर बदल दिया है.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सबका साथ – सबका विकास के मुखौटे के साथ शासन कर रही मोदी सरकार पूरी बेशर्मी से संघ के ऐजेंडे को लागू करने में जुट गई है. असम में एनआरसी लागू करने के बाद 19 लाख लोगों के (बे वतन) बाहर हो जाने से फैली बैचेनी की आड़ में भाजपा – संघ ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे को साधने की कोशिश करते हुए इस तबाही में पूरे देश को शामिल कर दिया है.
मोदी सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि आज जिन झूठे तथ्यों के आधार पर वह नागरिकता संशोधन विधेयक और राष्ट्रीय नागरिकता विधेयक को लागू कर रहा है इससे सिर्फ मुसलमानों को बाहर रखने का एकमात्र कारण उसका सांप्रदायिक ऐजेंडा है.
नागरिकता संशोधन विधेयक की ज़रूरत पर बात करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर कांग्रेस ने देश का बँटवारा धर्म के आधार पर नहीं होने दिया होता तो विधेयक को लाने की जरूरत नहीं होती । अपने तर्कों के लिए इस तरह के सफ़ेद झूठों का सहारा इस देश के सरकार के प्रधानमंत्री सहित उनके विभिन्न मंत्री हमेशा ही बोलते रहे हैं. जबकि सच्चाई यह है कि यह झूठा तथ्य है और आजादी के इतिहास से इसका कोई सम्बंध नहीं है। इतिहास हमें बताता है कि हिंदू महासभा के सावरकर जो आज संघ – भाजपा के पूज्य विचारक-राजनेता हैं, ही तबाही फैलाने वाले ‘दो देशों के सिद्धान्त’ के अगवा थे। यही विचार आगे बढ़कर हमें विभाजन की भयानक त्रासदी तक ले गया। भारत विभाजन को तो नहीं रोक सका, पर उसने ‘दो देशों का सिद्धान्त’ को स्वीकार नहीं किया और बाबा साहब अम्बेडकर की अगुवाई में लिखे गए संविधान ने धार्मिक सीमाओं के परे सबके लिए बराबरी और भाईचारे का वादा किया।
बहुलता और समावेशी समाज भारत का स्थायी स्वभाव रहा है। 1893 में शिकागो में ऐतिहासिक वक्तव्य देते हुए विवेकानंद ने इस स्वभाव को इन शब्दों में व्यक्त किया था: “मैं उस मुल्क का नागरिक होने में गर्व महसूस करता हूँ जिसने दुनिया के सभी देशों और धर्मों के सताए गए और अप्रवासी लोगों को शरण दी है।“
नागरिकता संशोधन विधेयक इस भारतीय स्वभाव के बिलकुल उलट है। यह विधेयक हमारे संविधान, न्याय, आज़ादी, बराबरी और भाईचारे जैसे बुनियादी सिद्धांतों को ध्वस्त करता है। पड़ोसी देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के साथ खड़े होने के नाम पर यह विधेयक भारत के उस सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बेहद भौंडे क़िस्म का भेदभाव करता है और उसे हाशिए पर धकेल देता है जिसने आज़ादी की लड़ाई में और उसके बाद संवैधानिक गणराज्य के रूप में आज़ाद भारत की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए भारत को तबाही फैलाने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक व नागरिकता रजिस्टर को निरस्त करना ही होगा।
इसके लिए एआईपीएफ देश के संघर्षरत ताकतों के साथ लगातार संघर्ष करता रहेगा.
गिरिजा पाठक
संयोजक, एआईपीएफ
(एआईपीएफ केन्द्रीय सचिवालय की ओर से जारी)
●फीचर्ड इमेज गूगल से साभार ।