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गिरीश कर्नाड सांस्कृतिक प्रतिरोध के प्रतीक थे

लखनऊ में ‘स्मरण गिरीश कर्नाड’ का आयोजन

लखनऊ। प्रसिद्ध रंगकर्मी, नाटककार, निर्देशक, अभिनेता गिरीश कर्नाड की स्मृति में ‘स्मरण गिरीश कर्नाड’ कार्यक्रम का आयोजन 11 जून को इप्टा कार्यालय, लखनऊ में किया गया जिसमें शहर के लेखकों, कलाकारों और बु़िद्धजीवियों ने उन्हें याद किया, अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये तथा कहा कि वे हमारे समय के सांस्कृतिक प्रतिरोध के प्रतीक थे। 2014 हो या 2019 गिरीश कर्नाड उन कलाकारों में शामिल थे जिन्होंने मोदी सरकार को हटाने की जनता से अपील की थी। असहिष्णुता के खिलाफ चले आंदोलन में भी वे शरीक थे। उनकी यह भूमिका प्रेरित करने वाली है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक प्रो. रमेश दीक्षित ने तथा संचालन किया इप्टा के महासचिव राकेश ने की। संचालन करते हुए राकेश ने गरीश कर्नाड के जीवन और कला यात्रा की चर्चा के साथ उनके नाटक ययाति, तुगलक, हयबदन, नागमंडल तथा हिन्दी फिल्म ‘निशान्त’, ‘मंथन’ आदि में उनके यादगार अभिनय को याद किया। उनका कहना था कि गिरीश कर्नाड का व्यक्तित्व सामाजिक हस्पक्षेप का था।

‘स्मरण गिरीश कर्नाड’ कार्यक्रम में बोलते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रस्तोगी ने कहा कि उन्होंने अपने रंगकर्म की शुरुआत गिरीश कर्नाड के नाटक ‘हयबदन’ से की थी। वह उन्हें बेहद महत्वपूर्ण नाटककार के रूप में याद करते हैं।

जनवादी लेखक संघ के प्रदेश सचिव नलिन रंजन सिंह ने कहा कि गिरीश कर्नाड की मातृभाषा कोंकड़ी थी और उन्होंने उच्च शिक्षा अंग्रेजी में ग्रहण की थी। उनका कन्नड़ में लिखना उनके आंचलिक सरोकारों से जुड़ाव को प्रदर्शित करता है। कन्नड़ में उस समय पुनर्जागरण का दौर था और अंग्रेजी के तर्ज पर कुछ नया लिखे जाने की कोशिश हो रही थी उस समय गिरीश कर्नाड ने ‘ययाति’ और ‘तुगलक’ जैसे मिथकीय और ऐतिहासिक चरित्रों को लेकर नाटक लिखे। उनकी 2014 से 2019 तक की जनपक्षधरता को हमेशा याद किया जाएगा।

जन संस्कृति मंच के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने कहा कि गिरीश कर्नाड की छवि नाटक लेखन, मंचन, फिल्म, अभिनय आदि से एक बड़े कलाकार की है। इसके साथ ही उनकी जनपक्षधरता उन्हें अनन्तमूर्ति, कुलबर्गी, गौरी लंकेश से जोड़ती है। कई प्रसंग है जिसमें उन्होंने सत्ता और कट्टरपंथी ताकतों का विरोध किया। उन्हें जान से मारने तक की धमकी मिलती रही पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। 2014 से 2019 के बीच ‘मी टू नक्सल’ और ‘नॉट इन माय नेम’ जैसे आंदोलनों में अपनी सक्रिय भागीदारी के द्वारा उन्होंने बताया कि आज के दौर में लेखकों और कलाकारों की क्या भूमिका होनी चाहिए।

वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने बताया कि उनके पास शेक्सपियर और भारतेंदु समग्र के बाद सबसे ज्यादा नाटक गिरीश कर्नाड के हैं। उन्होंने उनके कन्नड़ में लिखने और अंग्रेजी में अनुवाद के बाद तमाम नाटकों के हिंदी में अनुवाद का संदर्भ दिया। राम गोपाल बजाज द्वारा अनुवादित उनके हिंदी नाटकों को लोकप्रिय होने को एक बड़ा कारण बताया और कहा गिरीश कर्नाड हिन्दुस्तान के चार बड़े नाटककारों में हैं जिनमें मोहन राकेश, विजय तेंदुलकर और बादल सरकार शामिल हैं। उन्होंने कलाकार के साथ एक नागरिक की भूमिका का भी निर्वाह किया।

वरिष्ठ रंगकर्मी विलायत जाफरी, रंगकर्मी मृदुला भारद्वाज और कवि भगवान स्वरूप कटियार ने भी गिरीश कर्नाड की जनपक्षधरता को याद किया। इप्टा के प्रादेशिक उपसचिव प्रदीप घोष बाहर थे। उन्होंने अपना संदेश भेजा था जिसे पढ़ा गया।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए रमेश दीक्षित ने कहा कि गिरीश कर्नाड ने जिस तरह से कन्नड़ में लिखना चुना उससे ही उनके सरोकारों का पता लगता है। उन्होंने यू आर अनंतमूर्ति, पी लंकेश कन्नड़ में और मराठी के कई लेखकों का संदर्भ देते हुए बताया कि कैसे भारतीय भाषाओं में तमाम लेखक अंग्रेजी के जानकार होते हुए भी भारतीय भाषाओं में लिखना अपना गौरव समझते हैं। हिंदी में वह चलन आना अभी बाकी है। उम्मीद करते हैं कि गिरीश कर्नाड को याद करते हुए हिंदी के लेखक भी उस परंपरा को बनाए रखने का प्रयास करेंगे।

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