दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस किस तरह सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को फंसा रही है और उन्हें दुर्दांत अपराधियों की तरह प्रस्तुत कर रही है,इसकी बानगी “पिंजरा तोड़” अभियान से जुड़ी देवांगना कालिता की जमानत अर्जी पर हुई बहस और उस पर दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणियों में देखी जा सकती है.
देवांगना कालिता की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता एस.वी. राजू ने दिल्ली दंगों में कितने लोग मारे गए,कितने घायल हुए,कितनी गोलियां चली आदि सारे आंकड़े प्रस्तुत कर डाले,जिन्हें देख कर ऐसा प्रतीत होता है,जैसे कि इन सबकी जिम्मेदार देवांगना ही हो. देवांगना को जमानत न दिये जाने के कारणों में अपर महाधिवक्ता ने कहा कि वे असम की रहने वाली हैं और उनके पति यूनाइटेड किंगडम के निवासी ! “पिंजरा तोड़” ग्रुप के सदस्य होने का उल्लेख भी जमानत न दिये जाने के कारणों के तौर पर किया गया ! कहा गया कि यह ग्रुप जांच एजेंसियों के खिलाफ सोशल मीडिया और न्यूज़ पोर्टल्स पर अभियान चलाये हुए है.
तो क्या देवांगना कालिता उतनी ही खतरनाक है,जितना कि अदालत में सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अपर महाधिवक्ता ने बताया ?
जी नहीं ! देवांगना जे.एन.यू. में पी.एच.डी की छात्रा हैं. लड़कियों की हॉस्टल बंदी के खिलाफ वे शांतिपूर्ण तरीके से अभियान चलाती रही हैं. उन्होंने ब्रिटेन की ससेक्स विश्वविद्यालय से उत्कृष्ट श्रेणी में जेंडर और विकास विषय में एम.ए. किया है. वहाँ वे स्टूडेंट एम्बैसडर भी रही हैं. वे एक बेहतरीन अकादमिक करियर धारक हैं.
जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने भी देवांगना की अकादमिक योग्यता को स्वीकार किया. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने कहा कि सील बंद लिफाफे में प्रस्तुत केस डायरी और पेन ड्राइव में प्रस्तुत सामग्री उन्होंने देखी. उसमें देवांगना सी.ए.ए.- एन.आर.सी विरोधी शांति पूर्ण प्रदर्शन में दिख रही हैं पर कोई ऐसी सामग्री नहीं है,जो यह सिद्ध करे कि देवांगना ने भड़काऊ भाषण दिया,जिससे हिंसा भड़की,किसी की जान गयी और संपत्ति को नुक्सान पहुंचा. शांतिपूर्ण प्रदर्शन के संदर्भ में न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने टिप्पणी की कि यह संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार है.
दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने जमानत देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने जांच में सहयोग किया और यहाँ तक कि गिरफ्तारी से बचने की कोई कोशिश तक नहीं की. सबूत नष्ट करने की आशंका के संदर्भ में न्यायालय ने कहा कि सारे सबूत जांच एजेंसी के पास हैं और याचिकाकर्ता के पास कोई अन्य सबूत नहीं हैं. गवाहों को प्रभावित करने के मामले में न्यायालय ने कहा कि सारे गवाह लोकसेवक/पुलिस अधिकारी हैं. याचिकाकर्ता तो एफ.आई.आर. दर्ज करने के तीन महीने के बाद गिरफ्तार की गयी.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने कहा कि याचिकाकर्ता को राहत देने से जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वह (याचिकाकर्ता) अनावश्यक उत्पीड़न,अपमान और न्याय विरुद्ध बंदी से बचेगी. दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अपर महाधिवक्ता की दलीलों को खारिज कर दिया .
देवांगना को जमानत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 यानि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार,सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है और जमानत न देना उस मौलिक अधिकार पर पाबंदी है. साथ ही आपराधिक दंड प्रक्रिया के उस आधारभूत सिद्धान्त की याद भी एकल पीठ ने दिलाई,जो कहता है कि जब तक दोषसिद्ध नहीं हो जाता,तब तक व्यक्ति निर्दोष है.उच्चतम न्यायालय को उद्धरित करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि जमानत नियम है और बंदी रखना अपवाद.
कायदे से नियम तो दंगाइयों को बंदी रखने का होना चाहिए था पर हुकूमत उनकी समर्थक है, इसलिए जनता के हक में संघर्ष करने वाले बंदी बनाए जा रहे हैं !