जब संसद के भीतर अपने पहले ही भाषण में एक प्रधानमन्त्री 1200 साल की गुलामी से मुक्ति घोषणा कर रहा हो, चुनावों के समय डीएनए से लेकर शमशान-कब्रिस्तान की बात कर रहा हो, यदि वो हारा तो पाकिस्तान में दिवाली मनेगी कह रहा हो, जब प्रदेश का मुख्यमंत्री जो एक महंत हो, दंगे कराने के आरोप पर खुद को ही खुद से क्लीनचिट दे रहा हो और 70 साल से उपर के मुकदमे के वादी को झूठे आरोपों में जेल में डलवा रहा हो, जब गौ रक्षा के नाम पर गौ गुंडों की भीड़ जगह-जगह मुसलामानों-दलितों-आदिवासियों की हत्या करते घूम रही हो, जब बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक संकट सबका हल “जुनैद को मारो”(मदन कश्यप) में खोजने को कहा जा रहा हो तो भला अर्ध कुम्भ जैसे आस्था और संस्कृति के संगम को कैसे छोड़ा जा सकता था.
अर्ध कुम्भ को दिव्य-भव्य कुम्भ प्रचारित कर 4200 करोड़ का बजट आवंटन, सुख-सुविधा सुरक्षा के भारी प्रचार के तले यदि कोई कुचला जा रहा था तो वो सामान्य जन थे और थी उनकी निरीह आस्था.
इस जन की आस्था को ही अपने उग्र हिंदुत्व की विचारधारा के झंडे तले लाकर उसे एक अंधी भीड़ और वोट बैंक में तब्दील कर लेने का लक्ष्य है जिसे इस अर्ध कुम्भ को सरकार प्रायोजित इवेंट के जरिये साधने की कोशिश की जा रही है.
यह पहली बार ही है कि विहिप की धर्म संसद में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत कुम्भ में है. उ.प्र. की पूरी कैबिनेट बैठकें कर रही है. रोज ब रोज मंत्रियों, केन्द्रीय मंत्रियों का तांता लगा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो नेतृत्व ही कर रहे हैं. अखाड़े-अखाड़े, शिविर-शिविर घूमकर मंदिर निर्माण और 2019 के आसन्न चुनाव के मद्देनजर एक हिन्दू वोट बैंक संगठित करने की मंत्रणायें चल रही हैं, जिसकी बानगी 14 से 18 फरवरी तक आरएसएस द्वारा भाजपा समेत उसके सारे अनुषांगिक संगठन के समन्वयकों की होने वाली बैठक से भी मिलेगी
यहाँ भव्य अखाड़ों का शोर है. पांच सितारा होटलों जैसे सुविधाओं वाले टेंट सिटी का हल्ला है, विदेशियों और प्रवासियों की आमद का गुणगान है, मंदिर-मंदिर-मंदिर की चिल्लाहटें हैं और आगामी चुनाव में मोदी सरकार को लाने की कवायदें हैं. मिथकों को इतिहास बताने और इतिहास को गुलामी के दस्तावेज बताकर ढहा देने की कोशिशें हैं. और यह सारा कुछ लोगों के नाम पर, विकास के नाम पर किया जा रहा है.
जो नहीं है वो है इन आम लोगों के हितों की चिंता, इनकी तकलीफों और परेशानियों के प्रति संवेदनशीलता. 4200 करोड़ का बजट और सारा ताम-झाम अपने राजनैतिक हितों की पूर्ति का साधन है, आस्था नहीं विज्ञापन और बाज़ार का मेला है. ऐसे माहौल में शहर इलाहाबाद के नागरिकों ने अपने सिर ही यह जिम्मा उठा लिया कि आए हुए सामान्य जनों की जरूरत और तकलीफ के वक्त उनकी जिम्मेदारी है. आए हुए जन हमारे लोग हैं, हमारे मेहमान हैं.
पूरे शहर में जगह जगह कैंप लगाकर नागरिक मुस्तैदी से खड़े रहते हैं. लोगों को रास्ता बताना, उनके लिए पूड़ी-सब्जी का इंतजाम, पानी का इंतजाम, चाय-बिस्किट का इंतजाम और कहीं-कहीं मेडिकल हेल्प भी. अपने सीमित संसाधनों में ये शहर के नागरिक ही हैं जिन्होंने इस मेले को संभालने की कोशिश की है. वो सिख हों, हिन्दू हों, या मुसलमान.
चौंकिएगा मत जिन मुसलामानों को योगी और मोदी जी पाकिस्तान भेजते नहीं थकते और मदरसों को आतंकवादियों की जन्म स्थली बताते रहते हैं, ये वही हैं, जिन्हें अपने मुल्क और अपने लोगों से प्यार है.
दारागंज में लगभग गंगा नदी के किनारे बना है मदरसा अरबिया कन्जुल उलूम. जिसके प्रबंधक हैं जनाब मोहम्मद सिराजुस्सालकीन और मुफ़्ती हैं मोहम्मद असद. मैंने देखा मुख्य स्नान मौनी अमावस्या की एक रात पहले से यानी 2 फरवरी से यह मदरसा श्रद्धालुओं के लिए खुला था. उनके सोने-बैठने के लिए. सारे विद्यार्थी मदरसे की प्रबंध समिति और मुफ़्ती लोगों के लिए वालेंटियर बने हुए थे. लगातार दो रात, तीन दिन लोगों का ख्याल रखना, उनके लिए चाय-पानी के प्रबंध में लगे रहना.
इसी तरह सिविल लाइन्स में “ईट आन” रेस्टोरेंट के मालिक नफीस भाई लोगों की आवभगत कर रहे थे. शिया-सुन्नी इत्तेहाद कमिटी, उम्मूल बनीन सोसाइटी, अंजुमन गुंचाये कसिम्य, आशिकाने हिन्द सोसाइटी और ऐसी कई तंजीमें करेली, खुल्दाबाद, खुसरोबाग, स्टेशन से नखास कोना वाले रोड पर भंडारा चला रही थीं.
लक्ष्मी चौराहा, कटरा पर नौजवान अरशद अली अपने दोस्तों के साथ मेले से लौटकर बस पकड़ने के लिए जाते यात्रियों को पूछ-पूछकर चाय पिलाते, बिस्किट खिलाते दिखे. प्रयाग स्टेशन रोड पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति स्व. बाबूराम सक्सेना की पौत्री नंदिता अदावल ने भी एक कैंप लोगों के खाने के लिए लगा रखा था, उसमें भी मुस्लिम नौजवान दिन-रात अनथक लगे रहे.
ऐसे जाने कितने लोग, कितनी संस्थाएं दिन-रात एक किए हुए हैं लेकिन जिन कार्पोरेट कम्पनियों, वर्तमान कमिश्नर की बीवी के एन जी ओ, बाबा रामदेव के पतंजलि सहित जिन्हें ढेरों ठेके दिए गये हैं उनका कोई सहायता/जलपान शिविर मुझे नहीं दिखा.
यह जानते हुए कि इस मेले में उग्र हिंदुत्व की तलवार भांजी जा रही है, उन्हें समवेत देशद्रोही, आतंकवादी ठहराया जा रहा है, लेकिन वो लगे हैं अपने लोगों, अपने भाइयों के लिए जिनको प्यास लगने पर इन हिंदुत्व के आकाओं के पास देने के लिए पानी भी नहीं है.
क्या इनका इस मुल्क पर कोई हक़ नहीं है, ये दीन-ए-इलाही का शहर है, इसका क्या करोगे योगी जी?
नीचे तस्वीरों में देखिए मुस्लिम समुदाय के लोग श्रद्धालुओं के लिए खाना-पानी इत्यादि की व्यवस्था में लगे हुए-
(अनिल सिद्धार्थ को आभार के साथ)
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