वर्तमान भारतीय संस्कृति जितनी नागर है उतनी ही लोक भी है . समकालीन कला की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं है. यहां के अनेक कलाकारों की कलाकृतियों में लोक कला के तत्व अन्तर्गुम्फित मिलते हैं . कुछ कलाकार जिन्हें लोक कला से विशेष स्नेह होता है वे अपनी कलाकृतियों में बडी़ आत्मीयता से इन्हें शामिल करते हैं .
कला एवं शिल्प महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका और चर्चित कलाकार डॉ राखी कुमारी की कलाकृतियों में ये तत्व नये अर्थ ग्रहण करते हैं . आधुनिक जटिलताओं के भूलभुलैये में हमारे सृजनात्मक उद्वेग को परंपरा के ये तत्व ऊर्जा भी देते हैं और दिशा भी . चूंकि लोक कलाएं दरबारी कला के समनांतर खडी़ हुई लोकांक्षा की अभिव्यक्ति रही हैं इसलिए कारपोरेटीकरण के इस दौर में कलाकार यदि उस परंपरा से ऊर्जा ग्रहण करते हैं तो यह स्वभाविक भी है | एक लिहाज से यह जरुरी भी है क्योंकि जिन रुढि़यों को तोड़कर हम यहां तक आए हैं वे नये रंग व रुप में हमें जकड़ने के लिए आतुर हैं |
लोक परंपरा में अदम्य साहस और सृजन के ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हमें उपलब्ध सीमित संसाधनों से सृजनशीलता की प्रेरणा प्रदान करते हैं | इसे राखी कुमारी की कलाकृतियों में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है | डाॅ राखी कुमारी की कलाकृतियाँ एक स्त्री की रचनात्मक सौन्दर्य से हमारा साक्षात्कार कराती हैं |
श्री महावीर प्रसाद और श्रीमती लालती देवी की चौथी संतान राखी कुमारी का जन्म 08-12-1971 को हुआ | उनमें कलात्मक हुनर बचपन से ही मौजूद था | राखी के घर में उनके कलात्मक हुनर की कद्र थी | उच्चतर माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण करन के बाद उन्होंने माता पिता व बड़े भाई की प्रेरणा से कला एंव शिल्प महाविद्यालय में नामांकन कराया | वहां से 1995 में ललित कला में स्नातक की डिग्री हासिल की | स्नातक करने के दौरान उनकी रुचि काष्ठ छापा कला में जागृत हुई | वर्ष 1995 में ही उन्होंने पटना में एक एकल प्रदर्शनी की | जिसमें अधिकतर काम काष्ठ छापा कला के थे | इन कलाकृतियों की बहुत सरहाना हुई जिससे उन्हें छापाकला में आगे काम करने की प्रेरणा मिली | 1998 में उनकी शादी हो गई | शादी के बाद पति प्रवीण कुमार का भी पूरा सहयोग मिला फलतः 1999 में इन्दिरा संगीत एंव कला विश्वविद्यालय , खैरागढ़ से छापा कला में स्नातकोत्तर किया | फिर वहीं से शोध भी की |
अब राखी कुमारी छापाकला के विभिन्न तकनीक से पूरी तरह परिचित हो चुकी थी | उन्होंने भारत भवन भोपाल से जुड़कर कुछ समय तक छापा कला में काम किया | उन्होंने पटना , खैरागढ़ , भोपाल जैसे कला केन्द्रों से जुड़कर , छापा कला के विभिन्न तकनीक ( यथा – उभार सतह उत्कीर्ण प्रणाली , अंतः सतह उत्कीर्ण प्रणाली , सपाट सतह उत्कीर्ण प्रणाली , सेरीग्राफी आदि ) में महारत हासिल की | यह उनके जिज्ञासु प्रवृति , लगनशील मनोवृति और कठोर साधना का ही परिणाम था कि लैङ्गिक भेद भाव वाले सामज में रहने के बावजूद उन्होंने देश भर में घूम घूम कर तकनीकी महारत हासिल करने के साथ ही अपनी प्रतिभा को रचनात्मक ऊंचाई दी | राखी कुमारी बताती हैं कि इसमें मेरे परिवार का सकारात्मक सहयोग मिला | फिलहाल डॉ राखी कुमारी कला एवं शिल्प महाविद्यालय में छापाकला विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और कला जगत में सक्रिय हैं |
अपनी कला यात्रा में डॉ राखी कुमारी ने अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं | विनाले कैंप , नेशनल कैंप , नेशनल स्कॉलरशिप , अनेक अखिल भारतीय और राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में भागीदारी की है , विभिन्न शहर में एकल प्रदर्शनी , ललित कला अकादमी पटना , एबीसी आर्ट गैलरी वाराणसी सहित अनेक जगह निजी संग्रह में उनकी कलाकृतियां संग्रहीत हैं. उन्हें कई सम्मान मिले हैं. प्रोफेसर श्याम शर्मा , विनय कुमार , अवधेश अमन आदि जैसे सिद्ध कला समीक्षकों द्वारा समय-समय पर उन पर लेख लिखा है. यद्यपि ये तमाम उपलब्धियां बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन उनकी कलात्मक प्रतिभा की ऊंचाई इससे भी अधिक है |
एक स्त्री की दुश्वारी और कला की दुनिया
कला की दुनिया निरंतर संघर्ष की दुनिया है और एक स्त्री का जीवन भी संघर्ष का जीवन है | घरेलू जिम्मेवारियां , कला की दुनिया का संघर्ष और निरंतर चल रहे सामाजिक संघर्ष का सामना एक स्त्री कलाकार को चाहे अनचाहे करना ही पड़ता है | कला को समय और सयंम चाहिए और परिवार को भी समय और संयम चाहिए | दोनों के बीच तारतम्य बैठाना कठिन काम है | एक स्त्री कलाकार को यह करना पड़ता है |
स्त्री कोमल भावनाओं की एक प्रतीक भी है . वह दोनों हाथ में फूल लेकर समय के समर में निकलती है , जहां चांद है , सितारे हैं तो तरह तरह के मायाजाल भी है , जिसमें फंस जाना कोई बड़ी बात नहीं है. पृष्ठभूमि में एक दिशा में चल रही अनेक आकृतियां भी है . यह दुनिया अभी ऐसी ही है. इसी दुनिया में जीना है मरना है और जीने मरने के बीच , जाल और महाजाल से बंच कर जो कुछ पा सके पाना है. एक स्त्री की इन दुश्वारियों की अभिव्यक्ति राखी कुमारी की कलाकृतियों में होती है. राखी कुमारी मूलतः आकृति मूलक काम करती हैं. उनकी कलाकृतियों में मानव आकृति के साथ ही मछली , सांप , फूल , पशु , पक्षी आदि की आकृतियां लयात्मक रुप में प्रयुक्त होती हैं. इन आकृतियों में बहुत ही लयात्मक डिजाइन का प्रयोग वे करती हैं जिसकी प्रेरणा उन्हें मधुबनी कला से मिलती है. ऐसा लगता है मधुबनी कला से उन्हें विशेष लगाव है . साज व श्रृंगार से सुसज्जित गतिशील आकृतियां कलाकार के स्त्री मन की आकांक्षाओं को व्यक्त करती है. सामाजिक बंधन से मोह भी है और उसकी रुढ़िवादी जकड़न से आजादी की आधुनिक आकांक्षा भी. परंपरा के खुबसुरत अलंकरण से युक्त आकृतियां आजादी के आधुनिक आसमान में सितारों को छुना चाहती हैं. यह एक स्त्री का द्वंद है जिसे महसूस करने लिए संवेदना की जरुरत है.
कार्पोरेटीकरण के दौर में आज किसी भी दौर से अधिक संवेदना , करुणा , मानवीयता की जरुरत है . राखी कुमारी की कलाकृतियाँ प्रेक्षकों से संवेदना की अपेक्षा करती हैं . स्त्री व पुरुष को वे पशु और मछली की आकृतियों में मिलाकर एक नई आकृति गढ़ती हैं , जो उनकी अपनी आकृति होती है . आधुनिक कला के इतिहास में अनेक कलाकारों ने इस तरह का प्रयोग किया है लेकिन राखी कुमारी की साज श्रृंगार से सुसज्जित लोक कला के फॉर्म में रची गई. ये आकृतियां कलाकार को एक पहचान देती हैं. इस अर्थ में देखें तो डॉ राखी कुमारी की यह एक बड़ी रचनात्मक उपलब्धि है.
तकनीक व माध्यम की धरातल पर देखें तो राखी की पहचान छापा कला के लिए है . इसके लिए उन्हें अनेक प्रतिष्ठित सम्मान व पुरस्कार मिलें हैं . छापा कला एक कठिन माध्यम है और उसके लिए विशेष स्थान , समय व संसाधन की जरुरत होती है. हां उसका अपना फायदा भी है कि एक छापे से अनेक प्रतिकृति निकाली जा सकती है . बहरहाल अनेक तकनीक पर उनका अधिकार है मगर काष्ठ छापा उन्हें अधिक प्रिय है. काष्ठ के ‘ टेक्श्चर ‘ के इस्तेमाल से मनचाहा प्रभाव हासिल किया जा सकता है | ‘ टेक्श्चर ‘ के साथ वे रंग की हल्की और गहरी छटाओं का कल्पनाशील इस्तेमाल करती हैं.
उनकी काष्ठ छापा की खासियत है कि वे अनेक आकृतियों व डिजाइन का इस्तेमाल करती हैं जो कि तकनीक के लिहाज से काफी श्रमसाध्य काम है. जिसे राखी कुमारी बड़ी कुशलता से अंजाम देती हैं. छापा कला की अपनी तकनीकी सीमाएं हैं जिसे राखी कुमारी अपनी कल्पनाशीलता से एक खुबसूरत विस्तार देती हैं. इस विस्तार को उनकी छापाकृति , ‘ सृष्टि ‘, ‘ फ्रीडम ‘ , ‘ वूम्ब ‘ , ‘ होप ‘ आदि में बड़ी गहराई से महसूस किया जा सकता है. छापाकला में रंगों की विविध छटाओं का प्रभाव उत्पन्न करने के लिए या तो वे एक रंग के कुछ हिस्से पर दूसरे रंग की छाप लेती हैं या उसमें गतिशील मोटे पतले रेखाओं का इस्तेमाल करती है . ये रेखाएं छटाओं में वैविध्य भी उत्पन्न करती हैं और कलाकृतियों में गति भी देती हैं. आकृतियों की वाह्य रेखाएं कभी एकहरी होती है कभी दूहरी तो कभी कभी वे अपनी खुबसूरत रेखाओं को गहराई में ले जा कर विलीन भी करती हैं.
कागद बनै धरा है मसी मा बहै प्रेम
छापा कला के अतिरिक्त डॉ राखी कुमारी बहुत ही अच्छी ड्रॉइंग भी करती हैं जो काबिले गौर है | इंक पेन और ऐक्रेलिक से
कागज व कैनवास दोनों पर कल्पनाशील ड्रॉइंग उनके रचनाशीलता का एक दूसरा आयाम हैं . चूँकि यहां तकनीकी सीमाएं उनकी कल्पनाशीलता के आडे़ नहीं आती शायद इसलिए उनकी रेखाएं एकदम लय में आ जाती हैं | ड्रॉइंग करते समय वह अमूमन पृष्ठभूमि को सपाट छोड़ती हैं | ( चित्रकार पृष्ठभूमि को शायद ही सपाट छोड़ते हैं , पृष्ठभूमि को न छेड़ना मूर्तिकारों की लाक्षणिक विशेषता है )
कभी कभी राखी की रचनात्मकता जब पृष्ठभूमि को छूती हैं परत दर परत दृष्टि क्रम का एक खुबसुरत वितान रचती हैं | उनकी आकृतियों की लयात्मक और कलात्मक गढ़न दर्शकों को जैसे बरबस बांध लेती हैं | स्याही और ऐक्रेलिक से बने ड्राइंग ऐसे लगते हैं जैसे कागज एक दुनिया है और कलम से राखी उस दुनिया को अपने ख्वाबों से सजा रही है | उनके खुबसूरत ड्रॉइंग हमारे समय के एक हिस्से का कलात्मक प्रस्तुतिकरण है , जो हमारे कोमल भावनाओं को स्पर्श करता है |
नये नये रचनात्मक प्रयोग के दौर में भी कैनवास की अपनी महत्ता है | इस दौर में रचे जा रहे आकृति मूलक कामों के बीच राखी की कलाकृतियां महत्वपूर्ण हैं | यद्यपि किसी भी कलाकार का मुल्यांकन सच्चे अर्थों में समय करता है फिर भी यदि एक कलाकार और प्रेक्षक के नजरिये से देखा जाए तो छापाकला और ड्रॉइंग दोनों विधाओं में राखी बेहतर काम कर रहीं हैं | डॉ राखी कुमारी की कलाकृतियों को देखना एक सुखद एहसास से गुजरना है |