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एक होनहार आदिवासी अफसर की मौत पर खामोशी क्यों है ?

03 मई  2021 की शाम को साहेबगंज की थाना प्रभारी सुश्री रूपा तिर्की का शव उनके सरकारी आवास में फंदे से लटका मिला। थोड़ी ही देर में यह सूचना और सुश्री रूपा तिर्की की तस्वीर सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगी (आदिवासी संगठनों का सोशल मीडिया)। एक समूह से यह खबर मुझ तक पहुँची। शुरू – शुरू में मैंने इसे साधारण घटना के रूप में लिया। मगर यह खबर धीरे – धारे बड़ी होती गई। यह टिप्पणी घटना के नौवें दिन अर्थात 12 मई 2021 को लिखी जा रही है।

अब तक घटना से संबंधित कई बातें सामने आ चुकी हैं। जैसे – जैसे दिन बीतते गए वैसे नई बातें सामने आती गईं। आदिवासी समूहों के सोशल मीडिया की सक्रियता से जहाँ यह घटना आज भी ट्रेंड कर रही है, वहीं झारखंड के आदिवासी संगठनों ने मोर्चा और शांति मार्च निकाल कर झारखंड सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस घटना से सत्ता के गलियारे में मरघट सी शांति पसरी हुई है। सत्तापक्ष से कोई खुलकर नहीं बोल रहा। एक होनहार आदिवासी अफसर की मौत पर इस कदर की खामोशी हैरान करने वाली है। अपने ही अफसर की मौत पर सरकार का न बोलना संदेह पैदा करता है। चूंकि वह एक आदिवासी लड़की थी, तो तय है कि बात दूर तलक नहीं जाएगी। सूचना और परिजनों की तमाम मांगें शंक्वाकार होते हुए ब्रह्मांड में विलीन हो जाएंगी। वैसे भी सत्ता के तमाम शक्तिशाली लोग हाथ बांधे इस मामले के खामोश होने का इंतजार कर रहे हैं। हालाँकि रूपा के माता – पिता, परिजन और आदिवासी संगठन अब भी सीबीआई जॉच की माँग पर अड़े हुए हैं।

कौन थीं रूपा तिर्की ?  

रूपा तिर्की हातु की रहने वाली एक आदिवासी लड़की थी। हातु राँची से कोई दस बारह किमी दूरी पर स्थित है। उनके पिता देवानंद तिर्की हिमाचल प्रदेश में सीआरपीएफ में हेड कांस्टेबल की नौकरी पर तैनात हैं और पद्मावती उराईन गृहिणी हैं। रूपा तिर्की सन 2018 बैच की सब इंसपेक्टर थीं। वर्तमान में उनकी नियुक्ति साहेबगंज महिला थाना के प्रभारी के रूप में हुई थी। शिव कुमार कनौजिया भी सन 2018 बैच का सब इंसपेक्टर है। शिव को रूपा का प्रेमी बताया जा रहा है। पुलिस उसी पर संदेह करते हुए उसे जाँच के घेरे में लेना चाहती है। हो सकता है कि शिव और रूपा में प्रेम रहा हो। इसी आधार पर यह साबित करने का प्रयास शुरू हो गया है कि शिव के साथ उसके रिश्ते की जटिलता ने रूपा को आत्महत्या के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया। यह दावा सही भी हो सकता और गलत भी।

पुलिस द्वारा की जा रही इकहररी जाँच पर सवाल उठाया जा रहा है। माना जा रहा है कि रूपा एक कर्मठ और ईमानदार महिला थाना प्रभारी थीं। कुछ दिन पहले उसने एक रसूखदार बिचौलिए को गिरफ्तार किया था। बिचौलिए का तार कई आला अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों से है। बरी होने के बाद बिचौलिए ने रूपा को देख लेने की धमकी दी थी। पुलिस इस ऐंगल को नज़रअंदाज कर रही है। बिचौलिए वाले मुद्दे पर प्रशासन और सरकार भी चुप्पी नहीं तोड़ रही। कई लोग दबी जुबान कह रहे हैं कि बिचौलिए का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत खराब है। कहीं ऐसा तो नहीं कि फर्ज़ के प्रति ईमानदारी ही रूपा के जान की दुश्मन बन गई!

फिलहाल अभी यह मामला उलझा हुआ है। ईमानदार जाँच से ही सही खुलासा हो पाएगा। हो सकता है कि सही जाँच से झारखंड में गायब होती लड़कियों के राज का भी पर्दाफास हो पाए।  एक संभावना यह भी है कि हो सकता है कि इस एक मामले से कई दूसरे मामलों का भी खुलासा हो जाए। बहरहाल पुलिस प्रेम प्रसंग का आधार मानकर आगे बढ़ रही है –

सत्ता और मीडिया में बैठे लोग बहुत सर्जनशील होते हैं। घटना को कथा प्रवाह से जोड़ने में माहिर। किसी घटना को ऐसे – ऐसे कथानक से जोड़ते हैं कि सलीम-जावेद की पटकथाएं भी फीकी पड़ जाएं। सत्ता की ओर से संकेत पाते ही मीडिया ने शिव कुमार कनौजिया पर एक चमचमाती स्टोरी पेश कर दी। हो सकता है कि शिव इस मौत का अहम घटक हो, मगर जब तमाम सत्ताएं दूसरे ऐंगलों को छोड़ एक ही ऐंगल को प्रचारित करने लगती हैं, तो आश्चर्य भी होता है और संदेह भी।

रूपा तिर्की के माँ – बाप क्या चाहते हैं ?  रूपा के माता-पिता वही माँग कर रहे हैं, जो इस मामले के लिए जरूरी है और अक्सर किया जाता है, जिन्हें सरकारें प्राय: नकारती रहती हैं। उन्होंने पुलिस की कार्रवाई पर कुछ आरोप लगाए हैं, जो इस प्रकार हैं –

1- रूपा का शव घुटने के बल था। रस्सी और जमीन, कु्र्सी या टेबल के बीच में जरूरी अंतराल है ही नहीं। ऐसे में फाँसी कैसे लग सकती है?

2- गले में डबल निशान क्यों हैं ?

3 – रिकार्डिंग बिजली की रौशनी में न करके टार्च की लाइट में क्यों की गई ?

4 – शव को सबसे पहले किसने देखा?

5- घटना के बाद परिजनों को सूचित क्यों नहीं किया गया?

6- आत्महत्या के समय कमरा खुला था। क्या कमरा खोलकर कोई आत्महत्या करता है ?

7 – परिवार वालों की उपस्थिति में पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया ?

8- घटना के पहले रूपा ने अपनी माँ से फोन पर कहा था कि जो पानी पीया था, उससे दवा का स्वाद आ रहा है। रूपा ने कैसे पानी पीया था ?

9- मनीषा कुमारी, ज्योत्स्ना और पंकज मिश्र को जाँच के दायरे से बाहर क्यों रखा जा रहा है ?  रूपा के अभिभावक का मानना है कि ये दोनों लड़कियाँ रूपा की तरक्की से जलती थीं। आरक्षण को लेकर जलील करती थीं।

10 – मामले की सीबाआई जाँच की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है?

झारखंड सरकार और वहाँ पुलिस प्रशासन सारे सवालों पर खामोश है।

हो सकता है कि इन सवालों के उत्तर हम कभी न जान पाएं। इस बात की प्रबल संभावना है कि रूपा तिर्की की मौत प्रेम में हताश एक लड़की कहानी के रूप में गुम हो जाए। रूपा तिर्की एक आदिवासी लड़की थी। बड़ी मेहनत से वह एक अच्छे मुकाम पर पहुँची थी। उसे अभी बहुत दूर जाना था। बहुत सफल होना था उसे। उस जैसी हौसले से भरी ईमानदार पुलिस ऑफिसर की जरूरत थी। वह उस राज्य में नौकरी कर रही थी, जहाँ से हर साल हजारों लड़कियाँ महानगरों और चकलाघरों में बेच दी जाती हैं, वहाँ लड़कियों को खरीदने – बेचने का रैकेट काम करता है। अगर वह बची रहती तो अपनी तमाम बहनों को तबाह होने से रोक लेती। मगर अब वह कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि मुखर रूपा अब चुप हो गई है। उसका अंश धरती का हिस्सा बन चुका है।

क्या यह घटना अभिभावकों के लिए एक सबक की तरह है ?

देश के कई महानगरों में रहने के कारण यह अनुभव हुआ कि ऐसे मामले एक तरफा नहीं हुआ करते हैं। नौकरी और महानगर का जीवन जटिल है। रूपा जैसी तमाम प्रोफेशनल बेटियाँ कभी – कभी किन्ही कारणों से बहुत तनाम में आ जाती हैं। कभी – कभी उनके साथ बहुत गलत हो भी जाता है। ऐसे हालात में उनके जज्बात बेकाबू हो जाते हैं और वह किसी से दुख व अवसाद बांटना चाहती हैं, तब पाती हैं कि बांटना के लिए कोई है नहीं – सारे रिश्ते कुछ दूरी पर खड़े हैं, जहाँ तक वह पहुँच नहीं सकती हैं। अकेलापन अवसाद को जन्म देता है। इसका फायदा दोस्त से लेकर दुश्मन तक उठाते हैं। फलस्वरूप बेटियाँ (बेटे भी) अवसाद चक्र का शिकार हो जाती (जाते) हैँ। इसलिए माँ-बाप को कुछ पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए –

1 – बाहर रह रहे बच्चों को अकेला न छोड़ा जाए। उनके साथ माँ या परिवार का कोई रहे।

2- उनसे सहज और दोस्ताना संबंध रखा जाए।

3- मानसिक उलझने निशान छोड़ती हैं। उन निशानों और चेहरे के शिकन (उलझन) को समझने और जानने की कोशिश की जाए।

4- उनके दोस्तों की पूरी जानकारी रखें।

रूपा तिर्की जैसी तमाम बेटियों के हौसले पस्त हों या उन्हें अकेला समझकर कोई उन्हें परेशान करे, ऐसे मौकों को रोकने में अपने ही काम आ सकते हैं। जरूरत है सच्चे और अच्छे रिश्तों की ताकि रूपा जैसी बेटियाँ बचाई जा सकें। ऐसी बेटियाँ बची रहेंगी तभी दूसरी बेटियाँ महफूज रह पाएंगी।

 

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