जन-अधिकार पदयात्रा और महासम्मेलन में बड़ी संख्या में संस्कृति कर्मियों ने भागीदारी की
भाकपा-माले की ओर से संचालित जन-अधिकार पदयात्राओं और गांधी मैदान में 1 मई, मजदूर दिवस को आयोजित महासम्मेलन ने साहित्य-संस्कृति की दुनिया को भी नई ऊर्जा, उत्साह और आवेग देने का काम किया। माले के इस अभियान का केंद्रीय नारा था- भाजपा भगाओ बिहार बचाओ, लोकतंत्र बचाओ देश बचाओ।
आम तौर पर साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी इतने डाइरेक्ट नारे के पक्ष में खड़े नहीं होते, लेकिन केंद्र से लेकर कई राज्य सरकारों में भाजपा-आरएसएस के सत्तानशीन होने के बाद समाज में जिस तरह की सांप्रदायिक-जातिवादी नृशंसताएं बढ़ी हैं, तर्क, विवेक और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमले बढ़े हैं, डाॅ. नरेंद्र दाभोलकर, का. गोविंद पानसरे, प्रो. एमएम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्याएं हुई हैं, उन्होंने हर संवेदनशील शख्स को झकझोर कर रख दिया है।
Публикувахте от Sudhir Suman в Понеделник, 30 април 2018 г.
शोषण-उत्पीड़न और हर तरह की गैरबराबरी से मुक्त समाज और दुनिया के ख्बाब देखने वाले साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी बेहद बेचैन हैं। उन्हें अपने ख्वाबों को हकीकत में तामीर करने वाले जनसमूह की बेसब्री से तलाश है। लेकिन अपनी यथास्थिति में रहकर किसी आंदोलनकारी जनसमूह की महज प्रतीक्षा या उनके साथ सेल्फी ले लेने की प्रवृत्ति से स्थितियां नहीं बदलेंगी, इसका अहसास भी उन्हें हैं। तभी तो जसम के राष्ट्रीय पार्षद जनकवि कृष्ण कुमार निर्मोही भाजपा सरकार के फासीवादी मंसूबों को अपने जनगीतों के जरिए चुनौती देते हुए भोजपुर और पटना जिले के पदयात्रियों के जत्थे में शामिल होकर उनके साथ ही पटना पहुंचे।
हिरावल की संस्कृतिकर्मी प्रीति प्रभा ने भी पदयात्रियों के साथ लगभग अस्सी किलोमीटर का सफर तय किया और पूरे सफर में जगह-जगह जनगीत प्रस्तुत किए। जसम, जहानाबाद के रविरंजन और औरंगाबाद की पुकार टीम के कामता यादव मगध क्षेत्र में गया से निकले पदयात्रियों के जत्थे के साथ थे। हिलसा की एक पुरानी गायन मंडली के साथी जितेंद्र और रामाधीन चैहान भी पदयात्रियों के साथ थे। बेतिया में सर्फुदीन कौव्वाल, वैशाली में अनिल महाराज सरीखे कई जनगायकों ने अपने गीतों के जरिए पदयात्रियों का उत्साह बढ़ाया।
इस तरह के जनराजनीतिक अभियान और आंदोलन सांस्कृृतिक सृजनात्मकता को भी नया आवेग देते हैं। पदयात्राओं में शामिल महिलाओं और किसान-मजदूरों के समूह-गान इसी की बानगी थे।
ऐसा ही एक उदाहरण हिलसा और भोजपुर में नजर आया, जहां पदयात्रा में शामिल महिलाओं ने सामूहिक रूप से गीत गए। ‘ ‘ समूहगान में सिर्फ आवाज ही नहीं, साज भी थे, लेकिन दोनों प्रचलित से बिल्कुल अलग थे। थाली, लोटा और गिलास झांझ और मृदंग की तरह बज रहे थे। दिन-दोपहर में किसी बगीचे में सुस्ताते और दिन भर की थकन के बाद रात को निंदाते हुए भी लोगों द्वारा गाए जा रहे गीत इस जनअधिकार यात्रा को एक सांस्कृतिक यात्रा का भी रूप दे रहे थे। राह चलते न केवल गीत गाये जा रहे थे, बल्कि रचे और बनाये भी जा रहे थे।’’
हिरावल के संतोष झा, संतोष सहर और परवेज इस पूरे अभियान से संबंधित खबरों को वैकल्पिक मीडिया के जरिए प्रसारित-प्रचारित करने की जिम्मेवारी में लगे हुए थे। उन्होंने पूरे अभियान के कई न्यूज बुलेटिन बनाकर सोशल मीडिया पर जारी किए। तो इस तरह संस्कृतिकर्मी सीधे जनाधिकार पदयात्रा में शामिल हुए और वैकल्पिक मीडिया की कमान संभाली। पदयात्री पटना के बेली रोड से गुजर रहे थे तो जन संस्कृति मंच, पटना के संयोजक राजेश कमल और कवि शशांक मुकुट शेखर ने उन्हें सत्तू-पानी पिलाने की कमान संभाल ली। शशांक मुकुट शेखर ने अपने कैमरे से पदयात्रियों और महासम्मेलन की कई यादगार तस्वीरें भी लीं और वीडियो भी बनाए।
हिलेला झकझोर दुनिया:( बारिश हो रही थी. सब भींग रहे थे.)
Публикувахте от Shashank Mukut Shekhar в Вторник, 1 май 2018 г.
महासम्मेलन का समय दोपहर 12 बजे था, लेकिन जन संस्कृति मंच के राज्य सचिव सुधीर सुमन के संचालन में महासम्मेलन के सांस्कृतिक सत्र की शुरुआत सुबह दस बजे ही हो चुकी थी, जो पूरे दो घंटे तक चला।
इस सत्र में कैमूर से आए अनिल कुमार ने ऐलान किया- नहीं जान देंगे, ना एहसान लेंगे/ हम लड़ के अपना सम्मान लेंगे।’
नौबतपुर के कमलेश कुमार ने संघर्ष की वजह का इजहार करते हुए कहा- जुल्म के पर्वतों को हम हटाना चाहते। पटना जिले के धनराज क्रांतिकारी ने गीत और भाषण के बीच की दीवार को गिराते हुए प्रधानमंत्री पर कई सवाल दाग डाले।
जहानाबाद के रविरंजन ने भोजपुरी में इस जनाधिकार अभियान के मकसद को जाहिर किया- भाजपा के भगावे खातिर बिगुल फुंकाइल बा/ देख गांवे-शहर लोग गोलियाइल बा। औरंगाबाद की ‘ पुकार ’ टीम के गायक कामता यादव ने नीतीश कुमार को निशाना बनाते हुई कहा कि जनता उनकी वास्तविकता जान गई है, अब कोई भ्रम नहीं बचा है।
प्रीति प्रभा, राशिदा खातुन और चिंटू कुमारी ने भोजपुर आंदोलन के जनगीतकार विजेंद्र अनिल के चर्चित गीत ‘ बदलीं जा देशवा के खाका, बलम लेके ललका पताका हो ’ को गाया।
बेगूसराय के नन्हकू पासवान ने मशहूर जनकवि और स्वतंत्रता सेनानी रमाकांत द्विवेदी रमता के गीत ‘रोटी की महिमा’ को गाकर सुनाया। कवि राम श्रेष्ठ दीवाना ने अपने गीत में देश के मौजूदा हालात का वर्णन करते हुए सवाल किए-
कब तक भूखे मरोगे भाई/ दिल्ली पर अब करो चढ़ाई
घोटालों का राज यहां है/ डकैतों के सिर पर ताज यहां है
कुर्सी ऊंची उनको मिलती/ जो बेईमानों का सिरताज यहां है…
कैसा अंधेरा छाया देश में/ हर घड़ी मानवती मरती
राजा लगता बड़ा कसाई/ कब तक भूखे मरोगे भाई ?
उन्होंने ‘‘फांसी पर गणतंत्र’ नामक कविता के जरिए भी मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार किए।
जनकवि कृष्ण कुमार निर्मोही ने अपने गीत में निशानदेही की, कि ‘उन्मादी-उत्पतियन के बढ़ल अत्याचार/ जबसे देसवा में आइल फासीवादी सरकार।’ दूसरे गीत में राम-रहीम के नाम पर उन्माद और नफरत की खेती करने वाले भाजपा-आरएसएस को निशाना बनाया तो तीसरे गीत में उन्हें चेतावनी दी कि भाग भगवाधारी भुचाल आइल बा/ तोरा खेदे खातिर झंडा लाल आइल बा।’
उसके बाद कैमूर के जनगायक सिंगासन राम के साथ उनके द्वारा रचित गीत को गाते हुए आगे की लड़ाई लड़ने के जनसंकल्प का इजहार किया-
19 के चुनाव में जमके होई लड़ाई
देखल जाई केई हथवा मिलाई, देखल जाई
दंगा ना काम करी हिंदू-मुसलमान के
एक साथे नारा गूंजी मजदूर-किसान के
धरम के नाम प चाहे केतनो भड़काई
देखल जाई….
संघ परिवार के स्वीकार बा चुनौती
देश के संविधान ह, केहू के ना बपौती
जनता के फूंक से उड़ जइहें भाजपाई
देखल जाई…
भूमि सुधार अउरी रोजगार से
मजदूर किसान छात्र हो जा तइयार हो
बिना लड़ले ना हक आपन भेंटाई
देखल जाई…
जनगीत जारी थे और जत्थों का गांधी मैदान पहुंचने का सिलसिला भी जारी था। जैसे ही शाहाबाद से चले पदयात्रियों के विशाल जत्थे के साथ भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव और अन्य नेतागण सम्मेलन गांधी मैदान में पहुंचे, उनके स्वागत में लाल सलाम के नारे गूूंजने लगे।
महासम्मेलन की शुरुआत होने वाली ही थी कि बारिश की तेज बौछारें शुरू हो गईं। अफरा-तफरी न फैले इस मंशा से कार्यकर्ताओं ने मंच से नारों की आवाज तेज कर दी। बारिश और नारों के बीच मानो जंग छिड़ गई। महासम्मेलन में जो पंडाल लगाए गए थे, तेज बारिश ने उनको बेअसर कर दिया। जैसे कुदरत इम्तहान ले रही हो कि गर्मी को झेलते, पैदल इतनी लंबी यात्राएं करते पटना आ तो गए हो, अब जरा अपना आयोजन सफल करके दिखाओ। लेकिन लोग कोई छोटा-मोटा संकल्प लेकर तो आए नहीं थे। वे तो ‘भाजपा भगाओ बिहार बचाओ, लोकतंत्र बचाओ देश बचाओ’ का संकल्प लेकर पहुंचे थे। बारिश नेताओं और पदयात्रियों- सबको सराबोर करने लगी। अचानक मंच से रणनीति बदली और मौसम को संगी-साथी बना लिया गया।
संतोष झा ने हिरावल के राजन कुमार से कुछ कहा और राजन की भारी आवाज गूंजी- ‘रिमझिम बरसे रे बदरिया मोर चदरिया भींगी जाए।’ नारे गीत में तब्दील हो गए और कोरस में कई आवाजें शामिल हो गईं। लोग झूमने लगे। इसी बीच वे जिन कुर्सियों पर बैठे थे उनको ही पलटकर छतरी बना लिया। बारिश होती रही और फिर दूसरे गीत की शुरुआत हुई- ‘जनता के आवे पलटनिया हिलेले झकझोर दुनिया’। अब कहीं अस्त-व्यस्तता न थी। लोग पूरी तरह अनुशासित और समूहबद्ध खड़े थे। बारिश ने आखिरकार हार मान ली।
महासम्मेलन की विधिवत शुरुआत शहीदों के याद मेें हिरावल के कलाकारों द्वारा गाए गए गीत ‘लाखों शहीदों के खून से रंगा निसान/ हम हाथ में उठाए हुए हैं’ और संकल्प गीत के तौर पर मशहूर शायर फैज अहमद फैज के गीत ‘हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेगे, एक खेत नहीं, देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेगे’ से हुई। इसके बाद वक्ताओं का संबोधन शुरू हुआ।
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