नई दिल्ली 31 अगस्त
असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) की फाइनल सूची प्रकाशित हो चुकी है.
19 लाख से ज्यादा लोग (कुल 19,06,657) इस सूची से बाहर हैं. चिन्ता की बात है कि इतनी बड़ी संख्या में बहिष्करण भारी मानवीय संकट का कारण बन सकता है. जो लोग एनआरसी से बहिष्कृत हुए हैं उन्हें 120 दिनों के भीतर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में आवेदन करना होगा.
यद्यपि असम सरकार ने इसके लिए कानूनी सहायता देने का वायदा किया है, और तमाम नागरिक संगठन भी इस दिशा में कानूनी एवं पैरा-लीगल सहायता में लगे हुए हैं, फिर भी यह प्रक्रिया सूची से बाहर रह गये अधिकांश लोगों के लिए काफी कष्टप्रद होगी.
अत: हम सभी वाम कार्यकर्ताओं और न्यायप्रिय नागरिकों से अपील करते हैं कि वे सूची से बाहर रह गये लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल और अदालतों में न्याय दिलाने के लिए अपने संसाधनों, सहायता और समर्थन से भरपूर मदद करें.
यह बेहद चिन्ता का विषय है कि करीब बीस लाख लोग जो नागरिकता से विहीन हो सकते हैं उनके लिए राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनों के पास कोई स्पष्ट योजना नहीं है. जब तक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया और सुनवाई चलती है तब तक एनआरसी से बाहर रह गये लोगों को सम्पूर्ण नागरिकता अधिकार मिलने चाहिए.
रिपोर्टों के अनुसार असम में बड़े स्तर पर डिटेन्शन कैम्पों का निर्माण किया जा रहा है. जो डिटेन्शन कैम्प पहले से ही हैं उनमें मानवाधिकारों का भयानक उल्लंघन हो रहा है और परिस्थितियां बिल्कुल अमानवीय हैं, हमारी मांग है कि पुराने डिटेन्शन कैम्पों को बंद किया जाय और नये निर्माण पर रोक लगे. किसी भी व्यक्ति को ‘संदेहास्पद मतदाता’ (डाउटफुल वोटर) बता कर अनिश्चित काल के लिए डिटेन्शन कैम्प में डाल देना अमानवीय भी है और असंवैधानिक भी.
हम सभी लोकतंत्र पसंद लोगों का आह्वान करते हैं कि वे सतर्क रहें और एनआरसी के नाम में टारगेटिंग और उत्पीड़न की हर कोशिश का करारा जवाब दें.
असम के लोगों ने इस उम्मीद में एनआरसी की दुरुह कवायद में हिस्सा लिया है ताकि वे सवाल जो लम्बे समय से राज्य का पीछा कर रहे थे उनसे अब छुटकारा मिल जायेगा, लेकिन भाजपा ने पहले से ही एनआरसी पर अपना साम्प्रदायिक और विभाजनकारी एजेण्डा आगे कर दिया है और अब, भाजपा की दिलचस्पी इसे साम्प्रदायिक मंशा से लाये गये नागरिकता कानून में संशोधन के प्रस्ताव से जोड़ कर पूरे देश में बहिष्करण और भेदभाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करने की है.
ऐसे मंसूबों को रोकने और खारिज करने के लिए सभी लोकतंत्र पसंद भारतीयों को एकजुट होना होगा.
— दीपंकर भट्टाचार्य
महासचिव, भाकपा(माले)