भारत में प्रत्येक 5 साल बाद चुनाव से सरकार बनती है। जनता यह महसूस करती है कि उसने अपने मतों का इस्तेमाल कर सत्ता को बदल दिया है।
देश के नागरिक यह भ्रम पाले रहते हैं कि सत्ता की चाबी उनके हाथ में है। जब चाहेंगे सत्ता को बदल देंगे। यही नहीं हमारे जनप्रतिनिधि लगातार इस बात का शोर करते रहते हैं, कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। कुछ तो ढिठाई के साथ भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहते हैं। लेकिन पिछले दिनों दिनों अंबानी परिवार के लाडले अनंत अंबानी और राधिका मरचेंट के शादी की प्री वेडिंग तैयारी को देखकर लगता है, कि भारत क्रोनी कैपिटलिज़्म के उस दौर में पहुंच चुका है, जहां सत्ता की कमान मित्र पूंजीपतियों के हाथ में होती है।
अब यह सच्चाई समझ पाने में शक-सुबहा नहीं है कि मोदी जी जब प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए गांधीनगर से अदानी के चार्टर प्लेन में बैठकर दिल्ली के लिए उड़े थे तो यह महज एक संयोग था। 10 साल गुजरते गुजरते यह प्रतीकात्मक घटना यथार्थ में बदल चुकी है।
भाजपा और संघ की मोदी सरकार कॉर्पोरेट घरानों की उंगली पर नाचने वाली कारपोरेट के लिए कारपोरेट द्वारा और कारपोरेट की सरकार दिखने लगी है। अगर हम खुले शब्दों में कहें तो अडानी-अंबानी की, अडानी-अंबानी द्वारा और अडानी-अंबानी के लिए मोदी सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। प्रतिबद्ध ही नहीं है, मोदी उसके लिए किसी भी हद तक गुजर जाने के लिए तैयार है। जैसा हमने हिडेनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद देखा था।
हम जानते हैं, कि भारतीय राजनीति में कारपोरेट घरानों की किस हद तक पैठ है। यह तथ्य किसान आंदोलन के दौरान खुलकर सामने आया था, कि मोदी सरकार दो उद्योगपतियों के लिए नीतियां बनाने में लगी है। पहले कारपोरेट घरानों को खुला संदेश दे दिया जाता है, कि आप अनाज भंडारण के लिए बड़े-बड़े साईलो खड़े करें। ठेका पर खेती के लिए जमीन खरीदें। हम बाद में इसके लिए कानून बना कर वैधानिक स्वरूप दे देंगे। उस समय और आज भी किसान खुले तौर पर यह ऐलान किया करते हैं, कि इस देश को दो लोग बेच रहे हैं और दो लोग खरीद रहे हैं। बाद में तो यह कहा जाने लगा था, कि दो गुजराती बेच रहे हैं और दो गुजराती खरीद रहे हैं। आज इस पर चर्चा करने का कारण क्या है?
प्रसंग यह है कि मुकेश अंबानी के बेटे आकाश अंबानी की शादी राधिका मरचेंट से होने जा रही है। विवाह को अभी 4 महीने शेष हैं। (कृपया यहां परिवारवाद के बारे में चर्चा न करें!!) लेकिन शादी के पहले की प्री वेडिंग रस्म की शुरुआत हो चुकी है। इसके लिए गुजरात के जामनगर (जहां से धीरूभाई अंबानी ने अपना व्यापार शुरू किया था)को चुना गया है। जहां नियमों कानूनो को ठेंगा दिखाते हुए अंबानी परिवार का 300 एकड़ में फैला हुआ चिड़ियाघर है। जिसे बनतारा के नाम से जाना जाता है।
जामनगर एक सामान्य सा शहर है। जहां घरेलू उड़ानों के लिए एक हवाई अड्डा पहले से ही मौजूद है। जिसे 25 फरवरी से 10 मार्च तक के लिए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में तब्दील कर दिया गया है। क्योंकि अंबानी के बेटे के शादी की प्रारंभिक रश्म आयोजित होने वाली थी। यहां वायुसेना द्वारा हेलीकॉप्टर और अन्य सुविधाएं मुहैया करायी गयी।
जानकारी के अनुसार 28 फरवरी तक 400 से ज्यादा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट पहुंच चुकी थी। इस हवाई अड्डे पर मुश्किल से प्रतिदिन सात आठ विमान उतरा करते थे। वहां दो दिन में इतना बड़ा जमावड़ा हुआ। भारत सरकार ने गुजरात सरकार के साथ मिलकर देश के सभी कानूनों, नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लोकतंत्र को अंबानी के चरणों में समर्पित कर दिया।
भारत की भोली-भाली जनता जिन कलाकारों, खिलाड़ियों और राजनेताओं को अपना समझती है। प्यार-मोहब्बत देती है और जिनके खेल, फिल्म, कला, संगीत को देखकर मंत्रमुग्ध होती है। जिन्हें बार-बार राष्ट्रवादी मोड में देखकर भ्रमित हो जाती है और उनकी सफलताओं को देखकर गौरवान्वित होती है।
उस जनता को क्या पता होगा कि सेलिब्रिटीज कहे जाने वाले लोग किस-किस उद्योगपति और सत्ताधारी लोगों की उंगली पर नाचने के लिए तैयार हैं। यह किसकी सेवा में अपने को समर्पित कर देंगे और अपनी सेवाएं देकर खुद को धन्य समझेंगे।
यह यथार्थ अभी तक भारतीय जनता के समक्ष छिपा हुआ था। ये सेलिब्रिटीज कहे जाने वाले पैसे और ताकत वालों के गुलाम लोग हैं। कंपनियों का लोगो टांगे और कंपनियों के ब्रांड एंबेसडर के नाम पर अरबों रुपए लूटने वाले “देशभक्त लोग” जामनगर में इकट्ठा हुए। इनका अपना कोई न ईमान है, न कोई धर्म, न आत्मसम्मान और न कोई देश। इनमें न लोकतांत्रिक मूल्य बचा है, न नागरिक होने की गरिमा।
भारत के ये वही लोग हैं, जो जनता के बुनियादी सवालों पर उठने वाली आवाजों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों, संस्कृतिकर्मियों द्वारा जब महान कन्नड़ चिंतक, दार्शनिक प्रोफेसर एम एम कलबुर्गी और दादरी में एकलाख की माब लिंचिंग के बाद नफरत और हिंसा के खिलाफ पुरस्कार वापसी का अभियान चलाया था, तो यही कलाकार हैं, जो आज अडानी-अंबानी के वीभत्स धन प्रदर्शन में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे है, इन बुद्धजीवों कलाकारों के खिलाफ खड़े हो गए थे और उन्हें गैंग ऑफ बायकाट के नाम से बदनाम करने की कोशिश की थी।
ये सत्ता द्वारा चलाए जा रहे दंगाई और नफरती वायरस को फैलाने वाले कैरियर हैं। आश्चर्य है कि पूंजी के मालिकों के दरवाजे पर पहुंचते-पहुंचते धर्म, क्षेत्र, जाति देश की सभी सीमाएं विलीन हो जाती हैं।
ये वही लोग हैं जो जनता के दुख-दर्द, रोज़गार, मजदूरी, वेतन, खेती-किसानी, शिक्षा, स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जब भारत के नागरिक सड़कों पर उतरते हैं, जब हमारे लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों समानता स्वतंत्रता भाईचारा न्याय व नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं, तो ये सेलिब्रिटीज खुलकर के सत्ता और कंपनियों के मालिकों के साथ खड़े हो जाते हैं।
भारत के लोग जिन्हें अपना नायक मानते हैं, जिन्हें असीम सम्मान और प्यार देते हैं, वह कॉर्पोरेट घरानों के किस तरह के गुलाम हैं, यह बात अब सामने आ चुकी है। लेकिन अभी भी हजारों ऐसे लोग हैं, जिनका जमीर बाकी है। जो अडानी-अंबानी के पैसे पर बिकने के लिए तैयार नहीं है ।
उनके घरेलू आयोजनों में नाचने-गाने और ठुमके लगाने की इजाजत इनका जमीर इन्हें नहीं देता। ऐसे खुद्दार लोग इन्हीं लोगों द्वारा अपमानित और प्रताड़ित किए जाते है। ये बिके लोग सच्चे नागरिकों और देशभक्तों को देशद्रोही, भारत विरोधी, पाकिस्तान समर्थक तक कह देते हैं, लेकिन आश्चर्य है कि अंबानी के निजी घरेलू आयोजन में यह सभी ‘देशभक्त’ आज एक साथ तालियां बजाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
एक घटना याद आ रही है । अभी थोड़े दिनों पहले जब किसान आंदोलन चल रहा था। दुनिया की कई सिलेब्रिटीज ने भारत के किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था। उसमें अमेरिकी पॉप सिंगर रिहाना भी थी। ऐसी जानकारी आ रही है कि रिहान अंबानी के बेटे के प्री वेडिंग समारोह में भाग लेने के लिए बुलाई गई हैं ।
एक अखबार के अनुसार उन्हें 70 से 80 करोड़ रुपए दिए जाने हैं । लेकिन जब इसी रिहाना ने पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनवर्ग के साथ किसान आंदोलन का समर्थन किया था, तो यही सेलिब्रिटीज उसके ऊपर टूट पड़े थे।उसे भारत का शत्रु और भारत के खिलाफ काम करने वाले निहित स्वार्थी गैंग का सदस्य और इनके किसान आंदोलन को समर्थन देने को अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा बता दिया था और रेहाना की लानत-मनालत करने में लगे थे। रिहाना को अंतरराष्ट्रीय टूल किट का हिस्सा बता रहे थे।
आज यही सेलिब्रिटीज और ‘देशभक्त’ अखबार तथा चैनल रिहाना के कार्यक्रम को लेकर लहालोट हैं। नई – नई कहानियां छप रही है।उसकी प्रशंसा में कसीदे पढ़े जा रहे हैं। और अडानी के बेटे की शादी में रिहाना के शामिल होने को एक अंतरराष्ट्रीय घटना के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। जबकि रिहाना एक पेशेवर कलाकार है जो विश्व स्तर की पाॅप सिंगर हैं।
इन सेलिब्रिटीज को उस समय और आज भी पता है कि मोदी जी तीन कानून किसके लिए ले आए थे। उस समय इन्हें भारत के करोड़ों किसानों की चिंताएं नहीं थी। उस समय भी ये अडानी अंबानी के लिए अपनी सेवा देने के लिए तत्पर थे और आज तो खुलेआम समर्पित दिख ही रहे हैं। किसान आंदोलन देश के खिलाफ कोई षड्यंत्र है, इसको लेकर यह परेशान नहीं थे। यह परेशान थे कि किसान आंदोलन अडानी-अंबानी के स्वार्थ व मुनाफे की हवस के खिलाफ एक लौह दीवार बन कर खड़ा हो गया है। इनकी चिंता और प्रतिबद्धता कॉर्पोरेट लार्डों के मुनाफे के लिए थी, जहां से इन्हें भारी पैसा और सुविधा मिलती है।
कितना दोगलापन है भारत के उच्च मध्यवर्गीय समाज के अंदर। वस्तुत इनका कोई देश नहीं है।न भारत के 140 करोड़ जनगण के प्रति कोई संवेदना। न इनकी आस्था लोकतंत्र में है, न देश, समाज और किसी धर्म के प्रति है। ये समभाव से राम मंदिर के जश्न में भी शामिल होते है और भोंडे सांस्कृतिक समारोहों में भी।
सवाल यह नहीं है, कि अंबानी क्या कर रहे हैं।उनके बेटे के विवाह की रस्मों में कौन-कौन शामिल हो रहा है, कौन नहीं। यहां शामिल होने वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसका सम्मान किया जाना चाहिए। वह जहां चाहे, वहां जाए। वहां अपनी कला का प्रदर्शन करें। लेकिन जब ऐसे लोग सामाजिक सरोकारों और देश के नाम पर अपने वर्गीय चरित्र के दोगलेपन को छुपाने की कोशिश करते हैं, तब उसके प्रति घृणा पैदा होना स्वाभाविक है।
हम जानते हैं कि आज भारत में 81.5 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज मुफ्त में दिया जा रहा है, कि वह जिंदा रह सके। हम यह भी जानते हैं कि बेरोजगारी चरम पर है। भुखमरी का विस्तार हो रहा है। कुपोषण ने भारत में स्थायी जगह बना ली है । किसानों, मजदूरों, छात्रों, व्यापारियों के साथ सेना और अर्धसैनिक बलों तथा कर्मचारियों में आत्महत्या की दर बढ़ती जा रही है। लोकतांत्र के सभी पैरामीटर में भारत लगातार नीचे जा रहा है। देश की संपदा और पूंजी एक परसेंट लोगों के हाथ में जिस तेजी से पिछले 10 वर्षों में संकेंद्रित हुई है, वह कॉरपोरेट दुनिया के इतिहास की अपनी एक मिसाल है।अदानी ने विश्व कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे तेज गति से आर्थिक वृद्धि की है। उस दौर में भारत में अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जब भारत में दरिद्रीकरण, बेरोजगारी, महंगाई, आत्महत्या का विस्तार विश्व रिकॉर्ड बना रहा है।
ऐसे समय में वितृष्णा पैदा करने वाले आयोजन को देखकर किसी भी नागरिक में भारतीय शासक वर्ग के प्रति घृणा पैदा होना चाहिए। आश्चर्य तो तब होता है जब मोदी सरकार एक कॉरपोरेट के निजी आयोजन को सरकारी आयोजन में बदल देती है। रक्षा, विदेश, गृह व रेल मंत्रालय से लेकर ऊड्यन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय नियमों को ताक पर रख कर अंबानी और मर्चेंट के बेटे-बेटी की शादी की प्रारंभिक रस्म को सफल बनाने में जुट जाएं। इस आयोजन के लिए रेलवे ने वह कर दिखाया जो किसी राजशाही के दौर में भी संभव नहीं होता।ऐसे समय में भारत के तथाकथित सेलिब्रिटीज राजनेता और राजनीतिक पार्टियों का मुह न खोलना निश्चय ही देश के भविष्य के बुरे संकेत हैं। लोकतंत्र के लिए सरकार और कारपोरेट का एकीकरण देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
देश के सम्मानित और प्रभावशाली नागरिकों को जिन्हें समाज ने सम्मान दिया है। इज्जत दी है । उनसे इतना तो उम्मीद करते ही हैं कि वह सरकार के कॉर्पोरेट गुलामी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराएंगे। खैर कॉर्पोरेट-हिंदुत्व गठजोड़ की मोदी सरकार का अंबानी और अडानी के समक्ष समर्पण कोई नई परिघटना नहीं है। लेकिन अंबानी के बेटे की शादी में इस गठजोड़ का नग्न प्रदर्शन देख कर के हमें अवश्य ही सचेत हो जाना चाहिए। जनता को भारतीय शासको के चरित्र को समझ लेने के लिए अब कुछ और नहीं बचा है कि हिंदू राष्ट्र के झंडाबरदार किस तरह से पूंजीपतियों के लिए अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं । यह भारतीय लोकतंत्र के विद्रूप त्रासदी का एक और खुलासा है!
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