समकालीन जनमत
पुस्तक

कितने बहानों के बीच देश काल: अरुणाभ सौरभ का काव्य संग्रह ‘किसी और बहाने से’

रोमिशा 


जाने कितने बहानों से कवि अपने ईर्द -गिर्द के समाज, देश, काल में क्या सब देख लेता है और उसी देखने के क्रम में अपनी संवेदनशीलता के आधार पर अपनी तीक्ष्ण दृष्टि और भाव बोध के कारण ‘किसी और बहाने से’ जैसी कविता संग्रह पाठको तक पहुँचाने में सफल हो जाता है। ऐसे ही कवि हैं अरुणाभ सौरभ जिनका यह कविता संग्रह अपने समय को पहचानते हुए उसके राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को मनुष्यता की कसौटी पर परखते हुए सघन यथार्थ को उतारने की कोशिश है। इस कोशिश में विचारों के तीव्रता के आवेग में वे भटकते नहीं वरन सर्वथा सहज सरल भाषा में अपनी संवेदना और चिंता को शब्द देने मे सफल होते हैं।

उनकी कविताओं में सहज ही समाज में पूँजीवादी व्यवस्था के नकारात्मक संक्रमण, धर्म के छद्म पाखंड पर आक्रमण, कृषि प्रधान राष्ट्र में किसान की दुर्दशा, प्रकृति, प्रेम और मानवीय मूल्यों की बात आती है। वहाँ बाजारवाद, उपभोक्तावाद, विज्ञापन संस्कृति के प्रसार के प्रति चिंता है। उत्तर आधुनिक परिदृश्य मे भारतीय समाज की राजनीति और अर्थनीति को बाजार ही तय कर रही है यह हम इनकी कविता ‘बदलती दुनिया का भाष्य’ में समझ सकते हैं –

“किसी साजिश के तहत सिल जाए ज़ुबान
किसी अपराध के नाम पर
कोई और कैद हो जाए झूठ -मूठ में
तो परिवार के लोगों
मित्रों
साथियों
दुश्मनों
किसी भी बात पर रोना मत
यह समय रोती आँखों में लाल मिर्च रगड़ने का है
. . . . . . .
सूरज की गालों में फेसियल करने
ब्लीच करने चंद्रमा तक पहुँच चुकी हैं क्रीम कंपनियां
कैदखाने की समूची रात अपने भीतर समेटे बैठी है जनता
. . . .
उधर माँग की लोच समझ नहीं पायी अपनी प्यारी आर बी आई….

इनकी कविताएँ वर्तमान समय और पाठक के बीच संवाद सेतु है। विषय जटिल और बहुआयामी हैं । इनकी कविता वैचारिक कोलाहल से उत्पन्न शब्दों की ऐसी प्रक्रिया है जो मनोविश्लेषण की गहन विमर्श दृष्टि से संपृक्त है और यही कारण है कि ये अपने समय में मानवीय विवशता की संश्लिष्टता उतार पाने में सफल हो पाते हैं। इसे हम ‘आतम गियान ‘ कविता में देख सकते हैं :-

“…हम अपने कुनबे में दड़बे में छिपे हुए लोग
जिनकी कोई माँग नहीं
……लोकतंत्र को बैताल की तरह
अपने कंधों पर लादकर
कथा सुन रहे हैं
राजा विक्रम की तरह

भयानक चीख का नाम है हमारा समय
अनगिन सवालों से टकराने से पहले
अपने बच्चे को जी भर चूम लिया जाए! “

इनकी कविताओं में जीवन जगत का बोध है, मानवीय मूल्यों की खोज है, समाज के यथार्थ का निरूपण है और भारतीय समाज मे स्त्री की वास्तविक दशा का चिंतन है ,जिसे हम “धरतीमाता भारतमाता” कविता में देख सकते हैं।

अपनी कविता “मामी”में कवि ,परिवार में स्त्री की विडंबनापूर्ण स्थिति को जितनी आत्मीयता और सहजता से स्नेह और श्रद्धा की जटिल व्यवस्था द्वारा उलझन की गाँठ में बंधे रहने को दिखाया है वह अद्भुत है।

“मधुरता इतनी की कह दूँ कि
शहद की पूरी शीशी होती है – मामी
मा…. मी
….
महसागर की तरह स्त्री जीवन
यंत्रणाओं में परिवार की गाड़ी खींचती
कभी रोती कभी सुबकती कभी रूठती
जाने क्यों कभी कभी पिट जाती मामी ??
……
छूटे संबंधों को जोड़ने वाली पुल होती है- मामी
…..
और अपनी पहचान के लिए हमेशा तरसती है मा…. मी……

कवि कभी “गाँव की उदासी का गीत ” कहता है तो कभी “जादूगरों के देश में ” किसान जीवन की त्रासदी और सत्ता के मायावी स्वार्थ पर प्रकाश डालता है। कभी वह “राग यमन “की उदासी में डूबता है तो “कभी उस दिन की प्रतीक्षा में ” है जब

“…. .घोषणाओं के बजाय कोई उदास नहीं होगा
किसी का दिल नहीं टूटेगा
कोई भूखा नहीं होगा
गोदाम में नहीं सड़ेंगे अनाज
कोई हत्या नहीं होगी
ना हत्यारा आवारा घूमेगा……. “

कुल मिलाकर कवि ‘किसी और बहाने से ‘ में वह सब देख और कह पाता है जो एक बुद्धिजीवी एवं चेतना संपन्न कवि का दायित्व है और सबसे बड़ी बात कि इतनी नकारात्मकता और विवशता को देखने के बाद भी पूरे विश्वास के साथ कवि कहता है कि

“..प्रेतों की आवाज़ है
जो इंसानों से ऊँची
कभी हो ही नहीं सकती…… “

 

 

(किसी और बहाने से (कविता संग्रह)
अरुणाभ सौरभ
प्रकाशन: भारतीय ज्ञानपीठ, वर्ष :2021 हार्ड बाउंड मूल्य: 200₹)

 

(कवि अरुणाभ सौरभ भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन सम्मान और साहित्य अकादमी के युवा पुरस्कार समेत कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित कवि अरुणाभ सौरभ चैनपुर, सहरसा बिहार के रहने वाले हैं। पीएचडी की उपाधि प्राप्त हैं . इनके ‘एतबे टा नहि’, ‘तेँ किछु आर’, नाम से दो मैथिली कविता संग्रह और ‘दिन बनने के क्रम में’, आद्य नायिका (लम्बी कविता), किसी और बहाने से नाम से तीन हिंदी कविता संग्रह प्रकशित हो चुका है. आलोचना पुस्तक ‘लम्बी कविता का वितान’ प्रकाशित है। अनुवाद और संपादन के क्षेत्र में भी इन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए हैं.प्रो एम एम कलबुर्गी के साथ ‘वचन’ साहित्य का अनुवाद, भारतीय ज्ञानपीठ से अनुवाद की कुछ किताबें प्रकाशित।

 

समीक्षक रोमिशा मैथिली की युवा कवयित्री हैं। उनका एक संग्रह फूजल आंखिक स्वप्न प्रकाशित हो चुका है, जिसके लिए उन्हें मैथिली साहित्य महासभा सम्मान मिल चुका है। वह दिल्ली में रहती हैं और फिलहाल
दूसरे संग्रह की पांडुलिपि तैयार करने में जुटी हैं। उनसे romisha094@gmail.com और  9810882109 पर संपर्क किया जा सकता है।

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