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बिहार चुनाव भारत के लिए बेहद अहम- दीपांकर भट्टाचार्य

भाकपा (माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य बताते हैं कि बिहार का चुनाव भारत के भविष्य के लिए बेहद अहम है.यह चुनाव देश के संविधान, आज़ादी और लोकतंत्र की दिशा तय करेगा. स्टेटमैन के पत्रकार इमरान मसूद द्वारा भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का लिया गया साक्षात्कार

सवाल– इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को आप कैसे देखते हैं?

जवाब– भाजपा और आरएसएस का एक एजेंडा है – फासीवादी एजेंडा. अभी तक हमने इसकी पूरी भयावहता नहीं देखी है. अपने इस एजेंडे को लागू करने के लिए उन्हें बिहार की जरूरत है. अब तक वे नीतीश कुमार के सहारे सत्ता में बने रहे, लेकिन अब उन्होंने उनका पूरा इस्तेमाल कर लिया है. बिहार के मुख्यमंत्री भाजपा, आरएसएस और उनके खतरनाक मंसूबों को रोकने में नाकाम रहे हैं.

अब वे 2025 में बिहार, 2026 में पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तर प्रदेश की सत्ता हथियाना चाहते हैं – ये तीनों चुनाव बेहद अहम होंगे.

आरएसएस अपनी शताब्दी मना रहा है और इसी के साथ उसने संविधान के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है. चूंकि संविधान आज़ादी आंदोलन की देन है, इसलिए वे इस पूरे आंदोलन की विरासत को ही नकार रहे हैं. हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि असली आज़ादी तो राम मंदिर बनने के बाद आई.

यह भी देखिए कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान और हितों को अमेरिका के हाथों गिरवी रख रहे हैं. अपने पूरे मकसद को पाने के लिए उन्हें बिहार चाहिए. इसलिए यह चुनाव सिर्फ बिहार के लिए नहीं, बल्कि भारत के संविधान, लोकतंत्र और आज़ादी को बचाने के लिए होगा.

सवाल– क्या आपको उम्मीद है कि इस चुनाव से बदलाव आएगा?

जवाब– बिहार बदलाव चाहता है. लगभग 20 साल से राज कर रही एनडीए सरकार से लोग तंग आ चुके हैं. इस सरकार ने जो वादे किए थे – ‘सुशासन’ और ‘न्याय के साथ विकास’ – वे ज़मीन पर नदारद हैं. हर तरफ़ अन्याय फैला हुआ है.

नीतीश कुमार ने तीन C – क्राइम, करप्शन और सांप्रदायिकता – पर कोई समझौता न करने का वादा किया था, लेकिन ज़मीनी हकीकत देखें तो उन्होंने न सिर्फ़ समझौता किया, बल्कि इन तीनों का ख़तरनाक मिश्रण ही परोस दिया.

सरकार द्वारा कराई गई जातिगत जनगणना से पता चला कि बिहार में व्यापक गरीबी है. राज्य में 94 लाख से अधिक परिवार – यानी बिहार की 34% आबादी – हर महीने 6,000 रुपये या उससे कम पर गुजारा करती है. वहीं, 30% लोग 10,000 रुपये मासिक आय पर जी रहे हैं. यानी, दो-तिहाई आबादी 10,000 रुपये से कम में जीवनयापन कर रही है.

बिहार 2020 के चुनाव में ही बदलाव के लिए तैयार था, लेकिन तब नीतीश कुमार बाल-बाल बच निकले. 2024 में भी उनके आख़िरी समय के राजनीतिक पलटवार ने बिहार में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी. इसके बावजूद, भाजपा विरोधी गठबंधन ने 10 सीटें जीतीं, जो 2019 के नतीजों की तुलना में काफ़ी बेहतर साबित हुआ.

सवाल– इस चुनाव में मुख्य मुद्दे क्या हैं?

जवाब-बिहार सरकार अपने वादों को निभाने में नाकाम रही है. 94,000 से ज्यादा परिवारों को 2 लाख रुपये की एकमुश्त आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक उन्हें यह राहत नहीं मिली. राज्य में किए गए भूमि सर्वेक्षण ने भूमिहीनों के साथ-साथ उन लोगों के बीच भी असुरक्षा बढ़ा दी है, जिनके पास थोड़ी बहुत ज़मीन है. यह असम में लागू किए गए राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) जैसा ही है और इससे बड़े पैमाने पर विस्थापन का खतरा पैदा हो गया है.

भारतमाला प्रोजेक्ट, राम जानकी पथ, रेलवे ट्रैक, स्मार्ट सिटी और अन्य विकास परियोजनाओं के नाम पर बिना उचित मुआवजे के ज़मीन अधिग्रहण किया जा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक सभी को घर देने का वादा किया था, लेकिन यह अब तक पूरा नहीं हुआ. घर, बिजली और पीने का साफ़ पानी आज भी कई लोगों के लिए एक सपना बना हुआ है.

रोज़गार की स्थिति भी निराशाजनक है—सरकार सिर्फ़ दिखावे के लिए भर्तियां निकाल रही है, लेकिन न तो रोज़गार की सुरक्षा है, न डोमिसाइल नीति, न नए कॉलेज. यह युवाओं के प्रति सरकार की बेरुख़ी को दर्शाता है.

जातिगत जनगणना के बाद सभी दलों ने 65% आरक्षण का समर्थन किया, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया. इसका एकमात्र समाधान इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करना था, जैसा कि तमिलनाडु ने किया, लेकिन बिहार सरकार ने यह कदम नहीं उठाया.

बच्चे स्कूलों का इंतज़ार कर रहे , लेकिन नए स्कूल नहीं बनाए गए क्योंकि यह उनके राजनीतिक एजेंडे में फिट नहीं बैठता है. लोग इन तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन चुनाव आते ही भाजपा का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण इन सभी मुद्दों पर हावी हो जाता है.

इसीलिए हमारी कोशिश है कि इन असली मुद्दों को सामने लाया जाए. हम काफी समय से इन पर अभियान चला रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि यह चुनाव हालात को हमेशा के लिए बदल देगा.

सवाल– क्या आपको लगता है कि महागठबंधन के सहयोगी एक साथ बने रहेंगे, खासकर हरियाणा और दिल्ली में कांग्रेस की चुनावी रणनीति के बाद?

जवाब-बिहार एक ऐसा राज्य है जहां हमारा गठबंधन कारगर रूप से काम कर रहा है और हम अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. हम 2024 में भी बेहतर कर सकते थे, लेकिन नीतीश कुमार के आखिरी समय में पलटी मारने से हालात बदल गए.

हम 2020 से गठबंधन की राजनीति में हैं. चुनाव परिणामों के बाद लोगों को लगा कि हमें अधिक सीटें मिलनी चाहिए थीं. अगर ऐसा होता, तो हम सरकार बदल सकते थे क्योंकि हमारा प्रदर्शन कांग्रेस से कहीं बेहतर था. हमने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीटें जीत पाई. इसी तरह, 2024 के आम चुनाव में हमें तीन सीटें मिलीं, जिनमें से दो पर जीत हासिल हुई.

मुझे उम्मीद है कि सीट बंटवारा जमीनी हकीकत के आधार पर होगा. कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी रही है, और जब तक कांग्रेस मज़बूत नहीं होगी, तब तक दिल्ली में भाजपा को सत्ता से हटाना मुश्किल होगा. लेकिन, कांग्रेस को भी समझना चाहिए कि वह अलग-अलग राज्यों के दलों के साथ गठजोड़ करके ही आगे बढ़ सकती है, क्योंकि हर राज्य की स्थिति अलग है.

सवाल– राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार के प्रति नरम रुख अपनाया है। क्या जदयू एक बार फिर महागठबंधन में शामिल हो सकता है?

जवाब– मेरे हिसाब से सिर्फ़ लालू के कहने भर से ऐसा होने वाला नहीं है. उन्होंने इतनी बार पलटी मारी है कि अब नीतीश कुमार को लेकर कोई भी अफवाह या अटकल असर नहीं डालती. वह उत्साह और भरोसा अब नहीं बचा जो 15 साल पहले था. अब उनके साथ विश्वासघात और अधूरे वादों का भारी बोझ जुड़ गया है. बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में उन्होंने भाजपा को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है. आज भी, जब मोदी सत्ता में हैं, तो वे और चंद्रबाबू नायडू भगवा पार्टी के सबसे बड़े सहयोगी बने हुए हैं.

सवाल– 2020 बिहार चुनाव के दौरान लालू जेल में थे। अब जब वे रिहा हो चुके हैं, तो क्या आपको लगता है कि वह विपक्षी गठबंधन में सक्रिय भूमिका निभाएंगे?

जवाब– यह सही है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू जेल में थे, लेकिन उस चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बेहतर रहा, जब वे पूरी तरह सक्रिय भूमिका निभाने के लिए स्वतंत्र थे. उनकी अपनी साख, लंबा राजनीतिक अनुभव और इतिहास है, लेकिन समय बदल चुका है. अब सभी दलों में नई पीढ़ी के नेता अच्छा कर रहे हैं. यहां तक कि जनता दल (यूनाइटेड) में भी नीतीश कुमार के बेटे निशांत की राजनीति में एंट्री को लेकर चर्चाएं हो रही हैं.

सवाल– प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली जन सुराज पार्टी की चुनावी संभावनाओं को आप कैसे देखते हैं?

जवाब– 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, जब भाजपा का जनाधार कमजोर होता दिख रहा था, तब अचानक प्रशांत किशोर ने कहना शुरू कर दिया कि भाजपा 300 सीटें जीतेगी. यह सिर्फ़ पेशेवर गलत अनुमान नहीं था. उन्होंने भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए अपनी साख का गलत इस्तेमाल किया. यही वह पहला मौका था जब लोगों को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है.

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