समकालीन जनमत
साहित्य-संस्कृति

सत्ता और व्यवस्था के सामने आईना की तरह होता है लेखक : सुरेश काँटक

‘सहयोग’ पत्रिका ने कथाकार-नाटककार सुरेश काँटक को सम्मानित किया

काँट/ ब्रह्मपुर। ‘सहयोग’ पत्रिका ने 19 अक्टूबर को सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुरेश काँटक को उनके गाँव ‘काँट’ में  सम्मानित किया।

इस मौके पर पत्रिका के संपादक शिवकुमार यादव ने कहा कि केवल महानगर में रहने वाले लोग ही साहित्य की रचना नहीं करते, गाँव, देहात कस्बों में भी बड़े साहित्यकार और बुद्धिजीवी हैं। हमारा उद्देश्य गाँव में बसकर, मजदूर-किसानों के जीवन की सच्चाइयों को लिखने वाले रचनाकारों को सम्मानित करना है।

जन संस्कृति मंच , बिहार के अध्यक्ष कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने सुरेश काँटक से अपनी व्यक्तिगत-सांगठनिक अंतरंगता का जिक्र करते हुए कहा कि उनके पास उनकी सारी किताबें हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में किसानों के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की बात की है। वे सामंती सोच के विरुद्ध हैं। स्त्री-शिक्षा का पक्ष लिया है। उन्होंने फतेहबहादुर शाही, कुंवर सिंह और मीराबाई जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर लिखा है। उनका लेखन वैसा ही है, जिसे प्रेमचंद राजनीति के आगे चलने वाली मशाल कहते थे।

आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि सुरेश काँटक ने अधिकतर कहानियाँ, नाटक और उपन्यास किसानों के जीवन पर लिखा है। उन्होंने घोषणा की कि कुछ माह के भीतर सुरेश काँटक के रचनात्मक योगदान पर केंद्रित एक बड़ा आयोजन आरा में होगा, जिसमें देश भर से साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी शामिल होंगे।

कवि लक्ष्मीकांत तिवारी ‘मुकुल’ ने उनकी कहानियों, नाटकों और भोजपुरी की रचनाओं की चर्चा करते हुए कहा कि उनको विशेष रूप से काँटक जी की व्यंग्य-कविताएँ अधिक पसंद हैं। सुरेश काँटक के भाई आलोचक दिनेश कुमुद ने कहा कि वे समाज के अपने-पराये सबकी उलझनों को सुलझाते रहते हैं।

कॉंट गाँव के लोगों ने भी बड़ी सारगर्भित बातें कहीं। हरिहर सिंह ने कहा कि कांटक जी शिक्षक भी रहे हैं और उनके पढ़ाए लड़कों पर उनका वैचारिक असर रहा है। वे खेत-खलिहान और जमीन के रचनाकार है, ठीक वैसा ही जैसा प्रेमचंद थे। हीरा सिंह यादव ने कहा कि जब भी उनका दिल इधर-उधर भटकने लगता है, तो वे काँटक जी के ‘हाथी के दाँत’ और ‘रधिया’ को पढ़ने लगते हैं और उनकी आत्मा प्रसन्न हो जाती है। पंचायत समिति सदस्य नगेंद्र सिंह ने कहा कि उन्होंने जबसे होश संभाला तबसे समाज में काँटक जी की सहयोगी भूमिका ही देखी।

रवींद्र यादव ने कहा कि काँटक जी की रचनाएँ हमारे समाज का दर्पण हैं, आज का समाज कैसा है और भविष्य का कैसा होगा, उसे वे दिखाते हैं। उनके सहपाठी रामयश सिंह ने कहा कि काँटक छात्र जीवन के समय से ही लिखते थे। काँटक जी की पोती हर्षिता का मानना था कि उनके दादा परिवार-समाज सबकी केयर करते हैं।

सुरेश काँटक ने सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए वहाँ मौजूद ग्रामीणों का परिचय कराया कि सभी उनके मित्र हैं और सभी खेती-किसानी करते हैं। उन्होंने बताया कि वे किस तरह व्यक्तिगत रूप से भी अंधविश्वास और पाखंड का विरोध करते हैं। उनके अनुसार दुख का निदान यज्ञ और धर्मधंधे में फंस जाने से संभव नहीं। लेकिन सबकी आँखों पर पट्टी लगा दी गई है। नौजवान दौड़-हॉंफ और जूझ रहा है; पर उसे रोजगार नहीं मिलता। सरकार बुलेट ट्रेन के दावे कर रही है और ट्रेन पलट जा रही है! चांद पर जाने का डंका बजाया जाता है, पर जमीन पर चलने के साधन नहीं हैं! देश पर दो लोगों की तानाशाही थोप दी गयी है, जो अपने प्रिय कारपोरेट घराने का हित साधने के लिए किसी भी हद तक चले जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अडानी- अंबानी किसानों की जमीन हड़पकर मजदूर बनाने की कोशिश कर रहे थे, जिसके खिलाफ किसान आंदोलन हुआ था। यदि किसान जात-पात छोड़कर एक हो जाएँ तो वे ऐसी तानाशाह सरकारों को, उनकी नीतियों को बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा को इतना महंगा कर दिया गया है कि किसानों के बच्चे अच्छी पढ़ाई पढ़ नहीं सकते।

सुरेश कांटक ने कहा कि लेखक का काम लोगों की समझ और चेतना को विकसित करना है। सत्ता और व्यवस्था के समक्ष वह आईना की तरह होता है-

आईना हूँ इंसाफ कर
चेहरे पर दाग हैं तेरे
साफ कर।

उन्होंने कहा कि कई प्रखर लेखक जो जमीन, लोकतंत्र और देश के बारे में लिखते हैं,  उन्हें जेल में डाल दिया जा रहा है। किसानों की दुर्दशा, नौजवानों की बेरोजगारी, गांधी, भगतसिंह, बिस्मिल और अशफाक की साझी शहादत की परंपरा की चिंता सत्ता को नहीं है। उसके लिए हिन्दू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, भारत-पाकिस्तान ही मुद्दा है। यह सब अखरता है, दिमाग में बेचैनी रहती है। जब पूरा गाँव सो जाता है, तब मेरी कलम उठती है। मुझे भी देशद्रोही कहा जा सकता है, पर मैं जैसा लिखता हूँ, उसे लिखना जारी रखूँगा। मेरे लिए देश की मालिक जनता है, पर वोट लेकर कोई और मालिक बन गया है।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion