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पक्की नौकरी, पूरा वेतन और सम्मान की मांग के साथ दिल्ली आशा कामगार यूनियन (संबद्ध ऐक्टू) का सम्मेलन सम्पन्न हुआ

श्वेता राज


दिल्ली आशा कामगार यूनियन (संबद्ध ऐक्टू) का सम्मेलन आज दिल्ली के एन. डी. तिवारी भवन में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन की शुरुआत इस कोरोना महामारी में अपनी जान गँवाने वाली आशा कर्मियों, किसान आंदोलन के शहीदों और दिल्ली कैंट में यौन उत्पीड़न का शिकार हुई 9 वर्ष की दलित बच्ची को याद करते हुए हुई।

आज के सम्मेलन में दिल्ली की विभिन्न डिस्पेंसरियों की आशाओं ने हिस्सेदारी की। जिसमें साधनगर, पालम, देवली, मंगलापुरी, डाबरा, भाटी माइंस, कल्याणपुरी, त्रिलोकपुरी, मेहरौली, महिपाल पुर, फतेहपुर बेरी, डेरा, संगमविहार, गौतम नगर आदि दिल्ली की विभिन्न डिस्पेंसरियों से आशाओं ने भागीदारी की।

दिल्ली आशा कामगार यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक महीने से दिल्ली की आशाओं का विरोध प्रदर्शन दिल्ली की अलग-अलग डिस्पेंसरियों पर चल रहा है। आशाएं प्लेकार्ड के साथ अपनी मांगों को उठा रही रही। जिस समय सरकार की तरफ से आशाओं को उचित मात्रा में सेफ्टी किट नहीं मिल रहा है। दिल्ली आशा कामगार यूनियन ने दिल्ली की विभिन्न डिस्पेंसरियों पर आशाओं को मास्क, सेनिटाइजर, ग्लव्स इत्यादि बांटा। दिल्ली आशा कामगार यूनियन हर मुश्किल स्थिति में अपनी आशा बहनों के साथ खड़ी हैं।

आज के सम्मेलन का उद्घाटन किसान आंदोलन की प्रसिद्ध नेत्री जसबीर कौर नथ ने अपने सम्बोधन भाषण से किया और आशाओं के आंदोलन को किसानों का भी समर्थन किया।

उन्होंने बताया कि किस प्रकार आज केंद्र सरकार किसानों और मजदूरों पर हमला कर रही है। हम सम्मिलित लड़ाई से ही अपने हक़ को छीन सकते हैं।
आशाओं के सम्मेलन को ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी, ऐक्टू दिल्ली के अध्यक्ष संतोष रॉय और पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सुचेता दे ने संबोधित किया।
*सम्मेलन में कई आशाओं ने भी अपनी बात रखी कि आज दिल्ली और केंद्र की सरकार मिलकर आशाओं का शोषण कर रही है। न ही उनका वेतन तय है और न ही काम के घण्टे।

पूरे कोरोना महामारी के दौरान आशाओं ने अपनी जान जोखिम में डाल कर घर घर जाकर दोनों की मदद की। लेकिन उसके बदले सरकार उन्हें मात्र 1000 रुपये मासिक कोरोना भत्ता दे रही है। जोकि बहुत ही शर्मनाक है। आशाओं को उचित मात्रा में सेफ्टी किट भी नहीं दिये गए हैं। दिल्ली की आशाएं बहुत खराब स्थिति में काम करने को मजबूर हैं।

सरकार ‘सेवा’ के नामपर आशाओं का शोषण कर रही है। आशाओं के साथ विभिन्न डिस्पेंसरियों और अस्पतालों में दुर्व्यवहार होते हैं, पर उनपर कोई रोक लगाने वाला नहीं है। हालत तो ये है कि आशाओं को मातृत्व अवकाश भी नहीं मिलता। न ही आशाओं के लिए कोई रेस्ट रूम की व्यवस्था है।

दिल्ली और केंद्र की सरकारें मिलकर आशाओं की मांगों को नजरअंदाज कर रही हैं। ऐसी स्थिति में दिल्ली की आशाओं ने एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया है।

आशाओं ने अपने सम्मेलन के माध्यम से श्वेता राज को दिल्ली आशा कामगार यूनियन का सेक्रेटरी चुना।

दिल्ली की आशाओं ने अपने सम्मेलन के माध्यम से उत्तराखंड में चलरहे आशाओं के हड़ताल को भी अपना समर्थन दिया।

आशाओं ने आज के सम्मेलन में अपना मांग पत्र भी जारी किया जिनकी प्रमुख मांगे इस प्रकार है :

1. आशाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दो और  18,000/- मासिक वेतन तय करो।

2.कोरोना भत्ता को बढ़ा कर कम से कम 10,000 करो।

3.सभी डिस्पेंसरियों में आशाओं के लिए रेस्ट रूम की व्यवस्था करो।

4.आशाओं का काम और काम के 8 घण्टे तय करो।

5.कोरोना में मारी गयी आशाओं के परिवारों को 1 करोड़ का मुआवजा दो और आशाओं के परिवारों की सुरक्षा की गारंटी करो।

6.विभिन्न डिस्पेंसरियों और अस्पतालों में आशाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार पर रोक लगाओ और जरूरी कार्यवाही करो।

7.फील्ड में काम करने के लिए आशाओं को यात्रा भत्ता लागू करो।

8.आशाओं ले लिए सवेतन मातृत्व अवकाश लागू करो।

9.आशाओं तथा उनके परिवारों के लिए मुफ्त स्वस्थ्य सुविधाएं लागू करो।

10. आशाओं के मानदेय से संबंधित पॉइंट सिस्टम खत्म करो।

11. कार्यस्थल पर होने वाले लैंगिक शोषण को रोकने के लिए जिला-स्तर पर ‘जेंडर सेल’ का निर्माण करो।

12. यूनियन बनाने के अधिकार पर हमला नहीं सहेंगे। आशाओं की मांगों पर तत्काल वार्ता शुरू करो।

 

दिल्ली की आशाओं ने इन प्रमुख मांगों को तालियों की गड़गड़ाहट के साथ पास किया और आने वाले दिनों में आंदोलन और तेज़ करने का निर्णय किया है।

 

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