हिन्दुस्तान के शीर्ष दस्तावेज़ी फ़िल्मकार आनंद पटवर्धन को कल शाम अमेस्टरडम(नीदरलैंड) में संपन्न हुए IDFA फ़ेस्टिवल में सर्वसम्मति से वहां के शीर्ष अवार्ड ‘फ़ीचर लेंथ डाक्युमेंटरी के बेस्ट अवार्ड’ से नवाजा गया. इस पुरूस्कार के लिए श्री पटवर्धन को लगभग 12 लाख भारतीय रुपयों की राशि भी मिलेगी. ध्यान रहे कि IDFA फ़ेस्टिवल दस्तावेज़ी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित समारोहों में से एक है.
1975 से दस्तावेज़ी फिल्में बना रहे आनंद पटवर्धन को यह अवार्ड उनकी नवीनतम दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘विवेक’ (‘रीज़न) के लिए मिला है जिसके बारे में उनकी वेबसाईट http://patwardhan.com पर जो कथासार दिया है वो इस तरह है:
“Those who witnessed the scientific spirit fostered by the Enlightenment would scarcely have believed that more than 400 years later, Faith would have an upper hand over Reason.
Today as technologically advanced nations still debate the merits of Creationism and Evolution, the developing world falls prey to blind faith and religious war.
Everywhere privatization and a rush to corner ever-depleting natural resources has catapulted corporates and their extreme right wing storm-troopers into power.
With the collapse of egalitarian values, democracy itself is under siege. That we, the temporarily comfortable, rarely notice, is because an embedded media controls both information and entertainment. We see what they want us to see and quickly tire of seeing anything that matters.
Reason takes us to a macrocosm – India, the world’s largest democracy. Its eight chapters are a chilling account of how murder and mind control are being applied to systematically dismantle secular democracy in a country which once aspired not just to Liberty, Egalite and Fraternity, but to lead the post-war world out of its mindless spiral of violence and greed.
And yet the battle for Reason is not lost. Even as Brahminism (a priest ordained caste hierarchy that withheld knowledge from the working castes) drapes itself in the national flag and sends out its hit squads, resistance has not ended. For every brave rationalist gunned down or driven to suicide, many more take up the mantle.
Reason is then both a warning and a promise.”
261 मिनट की आठ भागों वाली दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘रीज़न’ की पहली स्क्रीनिंग टोरंटो (कनाडा) में सितम्बर 2018 में हुए अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में हुई थी.
एक तरह से यह सम्मान न सिर्फ़ आनंद को मिला है बल्कि पूरी हिन्दुस्तानी दस्तावेज़ी सिनेमाकारों की परंपरा को भी मिला हुआ सम्मान प्रतीत होता है.
जल्द ही यह फ़िल्म प्रतिरोध का सिनेमा और दूसरे फ़िल्म फेस्टिवलों में दिखाई जायेगी.
फ़िलहाल आनंद की वेबसाईट पर उपलब्ध इस ट्रेलर से फ़िल्म का अंदाज़ा लगाइए.
आनंद को इस सम्मान के लिए बहुत बधाई. उम्मीद है आने वाले दिनों में वे ऐसी बहुत सी और दस्तावेज़ी फ़िल्मों के निर्माण से भारतीय समाज को क्रिटिकल तरीके से देखने की समझ पेश करते रहेंगे.
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