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वन्यजीवों के व्यापार का चौंकाने वाला इतिहास और कोविड-19

ब्रायन बार्थ


विगत 40 वर्षों में, चीन की सरकार ग्रामीण आर्थिक विकास के तौर पर वन्यजीव व्यापार को बढ़ावा देती आई है। लेकिन इस सर्दी ये उद्योग ठप्प हो गया जब यह पता चला कि वुहान में कोविड -19 का प्रकोप संभवतः  “वेट मार्केट” से प्रारम्भ हुआ, जहाँ तंग मुहल्लों में वन्यजीवों के लिए ग्राहकीय दुकानों का जमावड़ा था।

जनवरी में जब यह अंतर्संबंध (कोविड-19 संक्रमण और वन्य जीव के बीच) सामने आया, तो सरकार ने वन्यजीवों की बिक्री और खरीद पर रोक लगाने का आदेश दिया, जिसे सख्ती से लागू किया गया।  फरवरी के पहले दो सप्ताह में प्रतिबंध का उल्लंघन करने के मामले में 700 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

24 फरवरी को, सरकार ने एक लिखित आदेश, जिसका शीर्षक था, “वन्यजीवों के अवैध व्यापार पर व्यापक रूप से प्रतिबंध लगाना, वन्यजीवों के उपभोग की बुरी आदतों को खत्म करना और लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करना”- जारी करने के साथ ही स्थायी प्रतिबंध लगा दिया।

लेकिन क्या लंबे समय से चले आ रहे व्यापार को केवल एक प्रतिबंध लगाकर इतनी आसानी से खत्म किया जा सकता है ? वास्तव में, सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि वन्यजीवों को खाने से जुड़े सांस्कृतिक मानदंडों को बदलकर मांग को कम किया जाए, जोकि तरक्की करते और संभ्रान्त वर्गों के बीच अपनी विशिष्टता और धनाढ्यता का प्रदर्शन करने का जरिया बन गया है।

वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन सोसाइटी के एशिया प्रोग्राम की निदेशक एली कांग का मानना ​​है कि ऐसा करने के लिए अंततः कोविड 19 पर्याप्त कारण प्रदान कर रहा है।

वह आगे कहती हैं- “चीनी लोग इस समय किसी भी वन्यजीव को भोजन के रूप में छूना भी नहीं चाहते हैं. अतः फिलहाल व्यापारियों के पास कोई बाजार नहीं है .”

संरक्षणवादियों ने इस मौके पर आगे बढ़कर वैश्विक वन्यजीव व्यापार के खिलाफ अपनी लड़ाई को तेजी दी है, जो बड़े पैमाने पर चीन द्वारा संचालित किया जाता है, जहां दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों को दवा और विलासी भोज्य दोनों ही रूपों में तस्करी किया जाता है.

वाइल्डलाइफ कन्जर्वेशन सोसायटी ने वन्यजीव तस्करी और महामारी के बीच के संबंध के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए इन्फोग्राफिक्स (डेटा का दृश्य निरूपण) की एक श्रृंखला बनाई है, और जमीनी स्तर पर अगुवाई करने वाले नेताओं ने पर्याप्त सूचनाएं प्रदान करके पलटवार छेड़ रखा है. डब्ल्यूसीएस के स्वास्थ्य कार्यक्रमों के कार्यकारी निदेशक क्रिस वाल्ज़र कहते हैं, “15 जनवरी से, मैंने लोगो से सिर्फ़ कोविड -19 के बारे में बातें की है इसके अलावा और कुछ नहीं किया है।”

जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली ज़ूनोटिक बीमारी- एचआईवी और इबोला से लेकर सार्स (SARS) और कोविड ​​-19- तक वृद्धि होते दिखता है. वन्यजीव व्यापार को इसके लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया गया, लेकिन ऐसी कोई भी गतिविधि जो लोगों को वन्यजीवों में हुई बीमारियों के पास ले जाता है, जिससे लड़ना या उबरना मनुष्य के प्रतिरक्षा तंत्र के लिए असंभव है, मनुष्य के लिए जोखिम पैदा करता है.

प्राकृतिक निवास स्थानों को खत्म करना महामारी के जोखिम का एक अन्य फैक्टर है, चूँकि मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच के संबंध – पारंपरिक और अपेक्षाकृत स्थिर हैं, उदाहरण के लिए, मूलनिवासी समूहों के लोग. जबकि नए मानव-पशु संबंधों में गतिशीलता की शुरुआत के चलते अप्रत्याशित नतीजे सामने आए हैं.

विकासशील देशों में जंगल की जमीनों पर लकड़ी कटाई, खनन, कृषि और अन्य प्रकार की सघन संसाधनों की अंधाधुंध निकासी होने से वन्यजीव और लोगों के बीच संपर्क बढ़े हैं जबकि सांस्कृतिक मानदंडों को बदलने से वन्यजीवों के उपभोग के तौर-तरीके बदल जाते हैं – उदाहरण के लिए अफ्रीका में शहरी बुशमीट बाज़ारों का विकास.

बीमारियां कभी-कभी पालतू जानवरों से भी लोगों तक पहुंचती हैं, लेकिन पशुधन से संपर्क के लंबे इतिहास के साथ-साथ आधुनिक खाद्य सुरक्षा नियम उन प्रकोपों ​​की संभावना को काफी हद तक नकार देता है.

वर्तमान समस्या की जड़ 1970 के दशक के आखिर में शुरू हुआ, जब चीन ने वन्यजीव पालन के तौर पर एक असामान्य कृषि प्रयोग प्रारम्भ किया. राष्ट्रपति माओत्से तुंग के साम्यवादी शासन के दो दशकों के दौरान, देश अकाल और भोजन की कमी सहित गंभीर आर्थिक संकटों के गुजरा था. व्यापक ग्रामीण सुधारों के नाम पर सामूहिक कृषि प्रणाली को खत्म कर दिया गया.

किसानों को चूहा, कस्तूरी बिलाव, सांप, चमगादड़ और अन्य वन्यजीवों को घेरलू उपभोग के लिए पकड़ने और पालने के लिए बढ़ावा दिया गया जबकि इसके पीछे का एजेंडा कृषि अर्थव्यवस्था का उदारीकरण और औद्योगिकीकरण करना था. एक गरीब राज्य के पास पशुधन उत्पादन बढ़ाने में निवेश करने के लिए बजट बहुत कम था. अतः इसके बजाय, किसानों को घरेलू उपभोग और कमर्शियल बाजारों के लिए चूहा, कस्तूरी बिलाव, सांप, चमगादड़ और अन्य वन्यजीवों को घेरलू उपभोग के लिए पकड़ने और पालने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

अभी हाल ही में, पारंपरिक चीनी चिकित्सा कर्मियों द्वारा भालू का पित्त, पैंगोलिन अस्थि पंजर और अन्य वन्यजीव उत्पादों के सेवन से औषधीय ताकत हासिल होने जैसी जनव्याप्त सांस्कृतिक मान्यताओं से परस्पर जोड़कर प्रचारित किया गया.

चीन में पले-बढ़े कांग बताते हैं कि वन्यजीव उत्पादों का चीनी चिकित्सा पद्धति में औषधीय इस्तेमाल की लंबे समय तक प्रमुख भूमिका रही है, ऐतिहासिक रूप से, बतौर भोजन इनका उपभोग संभ्रान्त वर्ग तक ही सीमित था लेकिन हाल के वर्षों में, वन्यजीव मांस का सेवन एक स्टेटस सिंबल बन गया है, जिसके पीछे हजारों साल का सांस्कृतिक इतिहास है.

यहां तक ​​कि चीन ने पशुधन उत्पादन के उत्पादन को बढ़ाया और आधुनिकीकरण किया है. यह दुनिया का सबसे बड़ा पोर्क उपभोक्ता है – वन्यजीवों के बाजार ने अब निचले तबकों के बीच भी अच्छी पैठ बना ली है. यह परिघटना काफी हद तक क्षेत्रीय है – 2014 के एक अध्ययन में पाया गया कि 83 प्रतिशत गुआंगज़ौ निवासियों ने विगत वर्ष में वन्यजीवों का सेवन किया था, जबकि बीजिंग में केवल 5% लोगों ने ही वन्यजीवों का सेवन किया था। लेकिन इसकी भी कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि वन्यजीव मार्केट कई नए संक्रामक रोग जानवरों से मनुष्यों में फैलने लगे.

2003 में SARs का प्रकोप चीन के युन्नान प्रांत की एक गुफा में हॉर्स शू चमगादड़ों की कॉलोनी में ट्रेस किया गया था, लेकिन यह बिल्ली के समान दिखने वाला जानवर कस्तूरी बिलाव (civets) था, जिन्हें खाने के लिए पाला और बेचा गया था (उन्हें स्वास्थ्य विशेषताओं के साथ पुरुष प्रजनन क्षमता में सुधार करने के लिए जाना जाता है), ने वेक्टर की भूमिका निभाई और वायरस को मनुष्यों में पहुँचाया. अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चीन ने SARs महामारी के दौरान अपने वेट मार्केट को प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन छह महीने बाद ही प्रतिबंध हटा लिया.

ये ‘वेट मार्केट’ विभिन्न प्रकार के ज़ूनोटिक रोगों का स्रोत रहे हैं, जिनमें वर्तमान COVID-19, जोकि हॉर्सशू चमगादड़ों से मनुष्यों में फैला है, सबसे अधिक संभावना ‘पैंगोलिन’ के ज़रिए होने की संभावना है, जोकि शल्कीय आर्मडिलो-जैसा दिखने वाला जीव है, जिसे एशिया में एक स्वादिष्ट खाद्य माना जाता है.

SARs ने दुनिया भर में 774 लोगों की जान ली। इस वक्त लिखे जाने तक COVID-19 ने 41,000 से अधिक लोगों की जान ले चुका है, जो कि वन्यजीवों के व्यापार और कानूनी तथा काला बाज़ारी दोनो तरह के उद्योगों को खत्म करने का तीव्र दबाव बना रहा है।

वाल्ज़र कहते हैं कि पैंगोलिन जैसे लुप्तप्राय जानवरों की अवैध तस्करी से इन बाज़ारों का लिंक, बहुत मजबूती से जुड़ा हुआ है – जो लोग इसे बंद होते देखना चाहते हैं वो संरक्षणवादियों, पशु अधिकारों के अधिवक्ताओं, स्वास्थ्य अधिकारियों और व्यापक जनता के बीच सरोकारों का एक संमिलन तैयार कर रहे हैं.
दशकों तक, महामारी विज्ञानी खतरे की घंटी बजाते आए हैं:, इन देशों में वैश्वीकरण की ताकतें विदेशी मीट की लोकप्रियता के साथ जुड़ जाती है, जहां तरक्की करता मध्यम वर्ग प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले विलासी खाद्य पदार्थों का खर्च उठा सकता है, जूनोटिक रोगों का विस्फोटन करने वाली रेसिपी है.

हाल के दशकों में मनुष्यों में होने वाली वाली 30 से अधिक पैथोजेनिक बीमारियों की खोज हुई है जिनमें से, तीन-चौथाई बीमारियों का मूल पशु हैं. एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि जीव जगत के 7 लाख विषाक्त रोगजनकों में मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता है. यदि वन्यजीवों की खपत बेरोक-टोक जारी रहती है, तो SARs और COVID-19 जैसे प्रकोप नए मापदंड हो सकते हैं।

वन्यजीव बाजारों से पैदा वाले नए जूनोटिक रोगों के फैलाव, असर और महामारी विज्ञान का अध्ययन करने वाले वन्यजीव पशु चिकित्सक वाल्ज़र कहते हैं, -“यह संख्याओं का खेल है।” “मनुष्य-पशु अंतर्संपर्क से एक दूसरे में बहु वैविध्य वायरस प्रजातियों के आदान-प्रदान की संभावना को अधिक बढ़ा देती हैं।
वह आगे कहते हैं कि कुछ प्रजातियों, जिनमें प्राइमेट्स, चमगादड़, और चूहे शामिल हैं, दूसरों की तुलना में अधिक जोखिम वाले होते हैं, क्योंकि वे कई बीमारियों को आश्रय देते हैं और मनुष्यों को संक्रमित करने वाला उत्परिवर्तन (जेनेटिक लीप) देकर उनमें बीमारियों के आसार को बढ़ाते हैं। दक्षिण पूर्व एशियाई चूहों में से कुछ तो काफी बड़े होते हैं और मुझे यकीन है कि वे बहुत स्वादिष्ट होते हैं। उन्हें खाने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन मूषकों में बड़ी संख्या में ज़ूनोटिक क्षमता वाले वायरस होते हैं- और उन्हें अपनी खाद्य श्रृंखला में शामिल करके रखना वास्तव में बहुत बड़े जोखिम होता है।”

हालांकि कोविड-19 महामारी के बाद, इन खाद्य पदार्थों में रुचि तेजी से कम होती दिखाई दे रही है: वुहान प्रकोप के बीच में लगभग 100,000 चीनी लोगो में कराये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 97 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने वन्यजीवों को खाने का विरोध किया, जबकि वर्ष 2014 के अध्ययन में सिर्फ 50 प्रतिशत लोगो ने ही विरोध किया था.

कांग कहते हैं – “ये पारंपरिक आदतें नहीं हैं , उदाहरण स्वरूप मृग सींग से बना एक पेय, जिसे बच्चों में जुकाम का इलाज के लिए पारंपरिक नुस्खे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, वो व्यापक तौर पर पिया जाने वाला टॉनिक बन गया है। “यह परंपरागत अवधारणा व्यवसायियों के गठजोड़ है जो इस नई मानसिकता को बढ़ावा देने में जुटा है कि- “क्योंकि हमारे पास अधिक आय है अतः हमें दिलचस्प नई चीजों का स्वाद लेना चाहिए।” विदेशज प्रजातियों को खाना सोशल मीडिया पर लोगो द्वारा खुद को ‘कूल’ दिखाने का जरिया बन गया है.

चीन का प्रचार तंत्र हाल ही में उस ‘आईडिया’ को हतोत्साहित करने के लिए फुल गियर में चली गई है. कांग कहते हैं कि सोशल मीडिया में भी एक स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया हुई जिसमें उस बिंदु को जोरदार तरीके से उठाया। एक हैशटैग, चलाया गया जिसका अंग्रेजी अनुवाद TheSourceoftheNewCoronavirusisWildAnimals है, इस हैशटैग ने चीन के मुख्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो (Weibo) पर 1.2 बिलियन हिट्स हासिल किए।

कांग बताते हैं कि- “मेरे मित्र मंडली में, एक व्यक्ति है जिन्हें पहले वन्यजीव खाद्य के अपने अनुभव का सोशल मीडिया पर प्रदर्शन किया करते थे। पहले, मेरे अन्य दोस्त उन्हें सोशल मीडिया पर या तो कुछ नहीं कहते थे, या वे उन्हें ‘कूल’ कहते थे। लेकिन अब वह उन चीजों को पोस्ट नहीं कर सकता है, क्योंकि यदि आप अब भी वैसा करते हैं तो लोग कहेंगे कि आप कूल नहीं हैं. ”

वन्यजीव बाजार अभी भी अन्य एशियाई देशों में मौजूद हैं, हालांकि कुछ राष्ट्र चीन की अगुवाई में ही चल रहे हैं। कांग कहते हैं- इस व्यापार को हतोत्साहित करने के लिए ग्रामीण इलाके के गरीबों के लिए नए आर्थिक अवसरों का सृजन करना होगा, जिनकी आजीविका 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर वाली इंडस्ट्री के वेट मार्केट और देश भर में 20,000 वन्यजीवों के पालन कार्यों से जुड़ी हुई है। कांग कहते हैं- “हमें समाधान निकालने के लिए उन लोगों की मदद करने की जरूरत है।”

(ब्रायन जे बार्थ टोरंटो में रहने वाले अमेरिकी पत्रकार हैं. वे वाशिंगटन पोस्ट, मदर जोन्स, द गार्जियन, नॉटिलस और सिटीलैब के लिए लिखते हैं. इस लेख का अनुवाद पत्रकार सुशील मानव ने किया है)

 

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