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104 की अमृता: आशिक और अदीब मरते कहाँ हैं

पीयूष कुमार


2023 में अमृता एक सौ चार की हुईं। इस फानी दुनिया को तो उनके जिस्म ने 2005 में विदा कहा था पर आशिक और अदीब मरते कहाँ हैं। अमृता ने भारत- पाक तकसीम से उपजे दर्द और स्त्री मन पर जो लिखा है, वह विश्व साहित्य की अमूल्य निधि है। उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि मिली। अमृता प्रीतम दूरदर्शन को दिए अपने इंटरव्यू में बताती हैं, “एक बार एक सज्जन पाकिस्तान से आए और मुझे केले दिए। उस व्यक्ति को वो केले एक पाकिस्तानी ने ये कहकर दिए कि क्या आप अज्ज आखां वारिस वाली अमृता से मिलने जा रहे हैं। मेरी तरफ़ से ये केले दे दीजिए, मैं बस यही दे सकता हूँ। मेरा आधा हज हो जाएगा।” पाकिस्तान में वारिस शाह की दरगाह पर उर्स पर अमृता प्रीतम की ये कविता गाई जाती रही है।

अमृता का जन्म आज ही के दिन गुजरांवाला में हुआ था। बाद में उनका बचपन लाहौर में बीता। अमृता की मां का नाम राज बीबी था जो स्कूल टीचर थीं और वालिद थे करतार सिंह हितकारी जो कवि और संपादक थे। अमृता का पहला काव्य संग्रह ‘अमृत लहरें’ जब वे 16 साल की थीं, तभी आ गया था। अमृता ने उम्दा और बेशुमार लिखा है। अमृता ने 100 से ज्यादा पुस्तकें लिखीं और उनके लिखे का कई ज़ुबानों में अनुवाद हुआ। पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, कोरे कागज़, उनचास दिन, सागर और सीपियां, डॉक्टर देव, पिंजर, आह्लणा, आंसू, इक सिनोही, बुलावा, बंद दरवाज़ा (उपन्यास)। रसीदी टिकट (आत्मकथा)। कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं, कहानियों के आँगन में (कहानी संग्रह)। कच्चा आंगन, एक थी सारा (संस्मरण)। लोक पीड़, मैं जमा तू , लामियाँ वतन, कस्तूरी, सुनहुड़े आदि 18 कविता संग्रह से उनका लिखा समृद्ध है। पद्मविभूषण अमृता प्रीतम को 1956 में साहित्य अकादमी मिल चुका था। उनकी ‘कागज़ ते कैनवास’ को’ ज्ञानपीठ (1982) मिल चुका है।

अमृता ने इश्क को जिया है। यह उनके कहन में, लिक्खे में दिखता है। अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हुई थी जो कि संपादक थे। तब अमृता कौर से अमृता प्रीतम हो गईं। पर 1960 में इनका तलाक हो गया। शादी चली नही पर उसका नाम ‘प्रीतम’ अमृता ने सदा के लिए चलाया। फिर इश्क हुआ साहिर लुधियानवी से पर वह भी साथ संग का मामला न रहा। बीबीसी के एक लेख में लिखा है – अमृता और साहिर का रिश्ता ताउम्र चला लेकिन किसी अंजाम तक न पहुंचा. इसी बीच अमृता की ज़िंदगी में चित्रकार इमरोज़ आए। दोनों ताउम्र साथ एक छत के नीचे रहे लेकिन समाज के कायदों के अनुसार कभी शादी नहीं की। इमरोज़ अमृता से कहा करते थे- ‘तू ही मेरा समाज है।’ ये भी अजीब रिश्ता था जहाँ इमरोज़ भी साहिर को लेकर अमृता का एहसास जानते थे। इमरोज का असल नाम है, इंदरजीत सिंह जो पेशे से चित्रकार हैं। इमरोज और अमृता 40 साल तक, जब तक अमृता की आखिरी सांस रही, साथ रहे। इमरोज का प्रेम प्रेमियों को जरूर जानना चाहिए। ऐसी दोस्ती, ऐसा प्रेम दुर्लभ है। अमृता के साहित्य और उनकी जिंदगी पर इंटरनेट में बहुत कुछ है, वहां आप पढ़ सकते हैं। आज अमृता की 104थी सालगिरह पर उनकी ही एक कविता –

मैंने जब तुझको पहना
दोनों के बदन अन्तर्धान थे
अंग फूलों की तरह खिल गए
और रूह की दरगाह पर अर्पित हुए
तू और मैं हवन की अग्नि
तू और मैं सुगंधित सामग्री

एक-दूसरे का नाम
होठों पर आया
तो वही नाम पूजा के मंत्र थे
यह तेरे और मेरे अस्तित्व का एक यज्ञ था

धर्म-कर्म की गाथा
तो बहुत बाद की बात है।

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