आज़मगढ़ के रैदोपुर स्थित राहुल चिल्ड्रेन एकेडमी में राहुल सांकृत्यायन की जयंती पर परिचर्चा का आयोजन हुआ।
‘सनातन, बौद्ध धर्म और आज का समय(सन्दर्भः राहुल सांकृत्यायन)’ विषय पर आयोजित इस परिचर्चा में मुख्य वक्तव्य के लिए पत्रकार व लेखक चन्द्रभूषण शहर में पधारे थे।
चन्द्रभूषण ने राहुल सांकृत्यायन को एक खिड़की, एक चौराहा बताते हुए कहा कि वहां से होकर हमें भारतीय समाज को देखने की दृष्टि और राह मिलती है।
उन्होंने राहुल सांकृत्यायन के जीवन और विचार के विकास में चार तत्वों का उल्लेख किया। साम्राज्यवाद विरोध, आर्यसमाज का जाति-तोड़क मण्डल, बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद। उन्होंने कहा कि बाद में राहुल सांकृत्यायन खुद को विश्व नागरिक कहते हैं।
चन्द्रभूषण ने सनातन पर चर्चा करते हुए कहा, कि सनातन का दो प्रयोग मिलता है। एक हिन्दूवाद में और एक बुद्ध के यहाँ। बुद्ध ने पहले से चली आ रही अच्छी तात्विक बातों की निरंतरता के लिए सनातन का प्रयोग किया।
दूसरा सनातन का प्रयोग वैदिक धर्म को आदि धर्म के रूप में बताने के लिए हुआ है, लेकिन उसमें अच्छे-बुरे तत्वों का कोई अलगाव नहीं है। वर्णवाद और उस जैसे अन्य पतित, सड़े-गले विचार की निरंतरता भी वहाँ सनातन के रूप में है। उन्होंने इसी क्रम में कहा कि उस समय करपात्री ज्यादा रूढ़िवादी सनातन हिन्दू दर्शन के प्रतिनिधि थे। 1952 के लोकसभा चुनाव में उनके दल रामराज परिषद से तीन सांसद चुने गये थे।
लेकिन आज का हिन्दूवाद कोई सनातन विचार नहीं है। वह एक आधुनिक विचार है। फासीवाद आधुनिक विचार है। यह मुसोलिनी से आया है।
उन्होंने आगे कहा कि बौद्ध धर्म में भी हिन्दू धर्म की तरह गिरावट होती है, उसमें पतित तत्वों का समावेश होता है, लेकिन बौद्ध चिन्तन में एक ऐसी गूंज है, जो आज के लिए भी एक जीवित तत्व है और वह मानव मुक्ति के किसी भी संघर्ष में जरूरी चिन्तन है।
बुद्ध पहले वह दार्शनिक हैं, जो कहते हैं, कि जन्म से किसी की नियति तय नहीं होती। उन्होंने कहा कि भारत में मानव उत्पीड़न में प्रमुख तत्व जाति विभाजन है, इसलिए जाति के सवाल पर जाना होगा।
उन्होंने कहा कि परिवर्तन के लिए या वर्ग मुक्ति के लिए चलने वाले संघर्ष और विचारधाराओं को भी जाति के सवाल से टकराना होगा, उसका हल खोजना होगा, क्योंकि भारत में उत्पीड़न का प्राथमिक आधार जाति विभाजन है।
इस परिचर्चा में भाग लेते हुए जन संस्कृति मंच के दुर्गा सिंह ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन और सामाजिक मुक्ति दोनों स्तरों पर राह खोजते हैं, समाधान चाहते हैं और इसी क्रम में वे आर्य समाज, बौद्ध धर्म से होते हुए मार्क्सवाद तक पहुंचते हैं। राहुल सांकृत्यायन जाति-वर्ण के सामाजिक विभाजन के खिलाफ सामाजिक बराबरी, समता, समानता के लिए वैचारिक संघर्ष करते हैं।
उन्होंने कहा, कि 1930 के दशक में राष्ट्र और समाज निर्माण की आधुनिक और प्रगतिशील विश्वास के साथ पुरातनपंथी हिन्दूवादी धारणा का संघर्ष तीखा होता है, और इसी में राहुल सांकृत्यायन क्रमशः ब्राह्मणवाद, वर्णवाद और हिन्दूवादी अवधारणा के खिलाफ ज्यादा आक्रामक होते हैं।
दुर्गा सिंह ने कहा कि 1930 के दशक का वह संघर्ष आज के समय में वापस लौटा है। तब की हारी हुई साम्राज्यपरस्त हिन्दूवादी ताकतें आज कारपोरेट पूंजी की सरपरस्ती में सत्ताशीन हैं और समाज को पीछे धकेलने के अभियान में आक्रामक ढंग से लगी हैं। ऐसे में अपने समय में हिन्दूवाद, ब्राह्मणवाद से संघर्षरत रहे राहुल सांकृत्यायन का जीवन और लेखन महत्वपूर्ण हो जाता है।
इस परिचर्चा में बोलते हुए शिक्षिका प्रियंका श्रीवास्तव ने कहा कि धर्म राज्य का हथकंडा है। राज्य आज मानव जीवन में असुरक्षा बढ़ाने का जरिया हो गया है। आज की सत्ता एक तरफ भयानक असुरक्षा पैदा कर रही है, दूसरी तरफ लोगों को धर्मोन्माद में धकेल रही है।
बतौर वक्ता अपनी बात रखते हुए जनवादी लेखक संघ के संतोष चौबे ने कहा कि आज सत्ता में बैठे लोग जिस हिन्दूवाद और सनातन की बात कर रहे हैं, वह ऋग्वेद की ऋचाओं, छन्दों से अलग है और राजनीतिक है।
इप्टा के बैजनाथ ने अपनी बात रखते हुए कहा, कि आज समाज को धर्म के आधार पर तोड़ने की कोशिश सत्ता द्वारा हो रही है। मुस्लिम समाज को लक्षित कर कानून बनाये जा रहे हैं। सत्ता समर्थित उन्मादियों द्वारा मस्जिद पर भगवा फहराया जा रहा है। समाज में नफरत फैलायी जा रही है।
मार्क्सवादी चिंतक और किसान नेता जयप्रकाश नारायण ने कहा कि आरएसएस ने आज सारी संस्थाओं, हिन्दू चिन्तन परम्पराओं पर अपना नियंत्रण कर लिया है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें डर बना हुआ है। वह डर है, भारतीय समाज की विविधता का। उन्होंने कहा कि दुनिया में आज सबसे ज्यादा बौद्ध धर्म को मानने वालों का प्रतिशत बढ़ा है। यह तीन सौ प्रतिशत है। इसका मतलब है, कि सामाजिक मुक्ति के दर्शन और चिन्तन के रूप में वह अभी भी लोगों को आकर्षित करता है। उन्होंने कहा कि हिन्दूवादी एकाधिकार के खिलाफ हमें विविधता के जितने आश्रय हैं, उन सब पर बात करनी चाहिए।
इस परिचर्चा की अध्यक्षता कन्हैया लाल मास्टर, हेमन्त कुमार, अरुण मौर्य के मण्डल ने की। अध्यक्ष मंडल की ओर से कन्हैया लाल मास्टर ने अपनी बात रखी।
परिचर्चा का संचालन जनवादी लेखक संघ के सचिव अजय गौतम ने किया। धन्यवाद जनवादी लोकमंच के रविन्द्र नाथ राय ने ज्ञापित किया।
इस परिचर्चा के प्रारम्भ में वाणी श्री और संदीप ने जनवादी गीतों की प्रस्तुति दी।
इस परिचर्चा का आयोजन प्रलेस, जलेस, जसम, जनवादी लोक मंच और इप्टा ने साझे रूप से किया।