मुनीज़ा हाशमी को एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन में अपनी बात कहने से रोकने पर जन संस्कृति मंच का बयान
नई दिल्ली. भारतीय उपमहाद्वीप के महबूब शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की बेटी मुनीज़ा हाशमी को दस मई को नई दिल्ली में आयोजित पन्द्रहवें एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन में अपनी बात कहने से जिस अशिष्ट तरीके से रोका गया है, उसके चलते दुनिया भर के शांतिप्रेमी लेखकों बुद्धिजीवियों में आक्रोश है। जन संस्कृति मंच इस शर्मनाक घटना पर अपना विरोध दर्ज करता है।
इस सम्मेलन का आयोजन एशिया पैसिफिक इंस्टीच्यूट फ़ॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट ( एआईबीडी) ने किया था, जो कि यूनेस्को से जुड़ी एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है। सम्मेलन की मेजबानी सूचना प्रसारण मंत्रालय ने की। एआईबीडी का कहना है कि उन्हें अंतिम क्षण में कहा गया कि मुनीज़ा हाशमी नहीं बोल सकतीं। मुनीज़ा हाशमी को इस सम्मेलन में आधिकारिक रूप से निमंत्रित किया गया था।
अशिष्टता की इंतहा यह थी कि मुनीज़ा दिल्ली आकर जब निर्धारित होटल में पहुंचीं तब उन्हें बताया गया कि उनके कमरे की बुकिंग रद्द कर दी गई है। बताया गया कि वक्ताओं की सूची से उनका नाम हटा दिया गया है। उन्हें उस रात भी कहीं और रुकने के लिए बाध्य किया गया। यह मुनीज़ा की शालीनता थी कि वे इस बेहूदगी को बर्दाश्त कर अगली सुबह चुपचाप अपने देश पाकिस्तान लौट गईं। बाद में उन्होंने बताया कि मानसिक तक़लीफ़ के बावजूद वे नहीं चाहती थीं कि इस घटना के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच कोई नया तनाव पैदा हो।
मुनीज़ा हाशमी अंतरराष्ट्रीय ख्याति की मीडियाकर्मी और शांति कर्मकर्ता ( एक्टिविस्ट) हैं। वे दशकों से भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ताना सम्बंधों के लिए काम करती रही हैं। यह पहली बार नहीं है जब उन्हें भारत में अपनी बात कहने से रोका गया। पिछले साल अक्टूबर में भी उन्हें कलकत्ते में आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत करने की अनुमति नहीं दी गई थी। यह सब इसके बावजूद कि उनके पास भारत का दीर्घकालिक वीसा मौज़ूद है।
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी और उनके परिवार का भारत से गहरा आत्मीय रिश्ता है।फ़ैज़ का नाम करोड़ों हिंदुस्तानियों की धड़कनों में बसता है। यह अकारण नहीं है कि मुनीज़ा के साथ हुए इस अपमानजनक व्यवहार से भारत का हर शांतिप्रेमी नागरिक आहत महसूस कर रहा है।
लेकिन यह मसला सिर्फ एक व्यक्ति के अपमान का नहीं है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को क्या स्वतंत्र चेतना से इतना डर लगने लगा है कि वह विचार विमर्श के मंच पर भिन्न मत का सामना करने से बचना चाहता है? क्या वह अनैतिक और असभ्य तरीकों से स्वतंत्र अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने वाले देशों की सूची में अपना नाम लिखवाने की राह पर चल पड़ा है ? यह एक ऐसा सवाल है जिससे प्रत्येक लोकतांत्रिक भारतीय को चिंतित होना चाहिए, उसकी राजनीतिक विचारधारा जो भी हो।
जन संस्कृति मंच भारत सरकार के इस रवैये की निंदा करता है। साथ ही भारत के आम नागरिकों की तरफ़ से मुनीज़ा हाशमी के साथ हुए इस दुर्व्यवहार के लिए उनसे क्षमा की याचना करता है। पाकिस्तान और भारत समेत दुनिया भर में लोकतांत्रिक आज़ादियों के लिए चल रहे संघर्ष में मुनीज़ा हाशमी और भारत पाकिस्तान की शांतिप्रेमी जनता के साथ ख़ुद को शरीक़ करता है।