भारत को कश्मीर मामले में किसी तीसरी ताक़त को हस्तक्षेप का मौका नहीं देना चाहिए
भारत और पाकिस्तान के बीच तीन दिन तक चले सघन और भीषण होते हुए युद्ध के दौरान ही दोनों देशों ने शनिवार को अंततः समझदारी का परिचय देते हुए सैनिक कार्रवाई रोक देने की घोषणा कर दी।
दोनों देशों के मध्य इस “सीजफायर” की घोषणा सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने की और आगे बयान में अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे0डी0 वेंस और अमेरिकी विदेश-मंत्री मार्को रूबियो दोनों देशों के नेताओं के गहन संपर्क में रहे और दोनों देशों के लिए इस समझदारी तक पहुँचने में प्रधान-मंत्री मोदी ‘सहायक’ रहे।
वर्तमान तनाव 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के फलस्वरूप पैदा हुआ था। पाकिस्तान ने आतंकवाद का इस्तेमाल राज्य की अघोषित नीति के तौर पर किया है। आतंकवादी हमले होने की स्थिति में भारत सैनिक कार्रवाई भी कर सकता है, यह दिखा कर नरेंद्र मोदी सरकार ने नई सुरक्षा नीति की प्रभावी घोषणा कर दी है। पाकिस्तान को अब निर्दोष लोगों के खिलाफ आतंक को प्रोत्साहित करके नकार के पर्दे के पीछे छुप जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। भारतीय रक्षा बलों ने उत्कृष्ट साहस एवं अपने पेशेवराना अंदाज़ का प्रदर्शन किया है पर साथ ही जम्मू एवं कश्मीर के नागरिकों को जान, शांति एवं संपत्ति खोकर इसकी भारी कीमत अदा करनी पड़ी है। इस संकट का बड़ा खामियाजा पंजाब के लोगों को भी भुगतना पड़ा है।
इसी संकट के मध्य मोदी सरकार ने भारत की बहुलतावादी, बहुधर्मी और लोकतान्त्रिक पहचान को रेखांकित किया और इस बात की ठीक पहचान भी की कि पाकिस्तान की रणनीति देश में सांप्रदायिक-मनमुटाव पैदा करने की है।
अब जबकि युद्ध टल गया है और विवाद को विराम मिल गया है, मोदी सरकार को हालात का ठीक-ठीक जायजा लेना चाहिए और उसे भारत की जनता और उसके प्रतिनिधियों के साथ साझा करना चाहिए।
विपक्षी काँग्रेस ने मोदी जी की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक और संसद के एक विशेष सत्र की मांग की है। दूसरे कई राजनीतिक दलों ने भी इस मांग का समर्थन किया है।
इस पूरी कार्रवाई के दौरान उठाए गए कदमों और जन-धन की हुई क्षति जैसे महत्वपूर्ण सवालों पर सरकार अब और ज्यादा चुप नहीं रह सकती।
युद्ध में हुए हादसों को ही सच नहीं माना जा सकता। वर्तमान में भू-राजनीतिक परिक्षेत्र में कई महत्वपूर्ण मोड़ आए हैं जिनके निहितार्थ भारत के लिए भी हैं।
पाकिस्तान की कार्रवाई को चीन का समर्थन होना बताया जाता है। भारत और पाकिस्तान के झगड़ों में अमेरिका की संलिप्तता कोई नई बात नहीं है। लेकिन केंद्र को इस संलिप्तता की प्रकृति का खुलासा करना चाहिए क्योंकि इससे कश्मीर मामले के अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिये जाने की आशंका है।
हाल के दिनों में भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस के लोगों के बीच कट्टर-राष्ट्रीयता की प्रतियोगिता भी देखने को मिली है जो कि ठीक नहीं है। सत्तासीन भाजपा इसके लिए उत्तरदायी है और गड़े मुर्दे उखाड़ कर वह अपनी इस ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती।
किसी देश को आत्म-रक्षा और समृद्धि प्राप्त करने के लिए उसके नेताओं का शांत-चित्त होना, घरेलू राजनीतिक सहमति और सामाजिक समरसता और किसी भी पेशेवराना दृष्टिकोण के लिए आदर की भावना होनी चाहिए और यह सब कट्टर-राष्ट्रवादी नारों के खिलाफ है।
‘द हिन्दू’ दिनांक 12.05.2025 के संपादकीय से साभार
अनुवाद: दिनेश अस्थाना
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