पीयूष कुमार
बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक विद्वान अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, समाजसुधारक, राजनीतिज्ञ और लेखक होने के साथ एक सफल पत्रकार एवं प्रभावी सम्पादक भी थे। अखबारों के माध्यम से समाज में वैचारिक उन्नति होगी, इसपर उन्हें विश्वास था। उनकी पत्रकारिता का दायरा शोषित एवं दलित समाज में जागृति लाने के इर्द गिर्द अधिक रहा। इसके लिए उन्होंने लिए कई पत्र एवं पांच पत्रिकाओं का दीर्घकालीन प्रकाशन एवं सम्पादन किया।
डॉ अम्बेडकर ने सभी पत्र मराठी भाषा में ही प्रकाशित किये क्योंकि उनका कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र था और तब महाराष्ट्र की शोषित एवं दलित जनता ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, वह केवल मराठी ही समझ पाती थी।
साहित्यकार व विचारक गंगाधर पानतावणे ने 1987 में भारत में पहली बार अम्बेडकर की पत्रकारिता पर पी.एच.डी. के लिए शोध प्रबंध लिखा। पानतावने ने लिखा- ‘मूकनायक’ ‘बहिष्कृत भारत’ के लोगों को ‘प्रबुद्ध भारत’ में लेकर आया। बाबासाहब एक महान पत्रकार भी थे। उनके द्वारा प्रकाशित और संपादित पत्र इस प्रकार हैं –
- मूकनायक – 31 जनवरी 1920 को बाबासाहब ने अछूतों के उपर होने वाले अत्याचारों को प्रकट करने के लिए ‘मूकनायक’ नामक अपना पहला मराठी पाक्षिक पत्र शुरू किया। इसके सम्पादक डॉ. अम्बेडकर व पाण्डुराम नन्दराम भटकर थे। इस अखबार के शीर्ष भागों पर संत तुकाराम के वचन थे। इसके लिए कोल्हापुर संस्थान के छत्रपति शाहू महाराज द्वारा 25,000 रूपये की आर्थिक सहायता भी मिली थी। ‘मूक नायक’ सभी प्रकार से मूक-दलितों की ही आवाज थी, जिसमें उनकी पीड़ाएं बोलती थीं। इस पत्र ने दलितों में एक नयी चेतना का संचार किया गया तथा उन्हें अपने अधिकारों के लिए आंदोलित होने को उकसाया। बाद में डॉ. अम्बेडकर पढाई के लिए विदेश गये तो यह पत्र आर्थिक अभावों के चलते 1923 में बंद हो गया, लेकिन चेतना की लहर दौड़ाने के अपने उद्देश्य में कामयाब रहा।
- बहिष्कृत भारत – ‘मूकनायक’ के बंद हो जाने के बाद जल्द ही डॉ.अम्बेडकर ने 3 अप्रैल 1924 को दूसरा मराठी पाक्षिक ‘बहिष्कृत भारत’ शुरू किया। इसका सम्पादन अम्बेडकर खुद करते थे। यह पत्र बाम्बे से प्रकाशित होता था। इसके माध्यम से वे अछूत समाज की समस्याओं और शिकायतों को सामने लाने का कार्य करते थे तथा साथ ही साथ अपने आलोचकों को जवाब भी देने का कार्य करते थे। इस पत्र के एक सम्पादकीय में उन्होंने लिखा कि यदि बाल गंगाधर तिलक अछूतों के बीच पैदा होते तो यह नारा नहीं लगाते कि ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, बल्कि वह यह कहते कि ‘छुआछूत का उन्मूलन मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।’ इस पत्र ने भी दलित जागृति का महत्वपूर्ण कार्य किया। इस अखबार के शीर्ष भागों पर संत ज्ञानेश्वर के वचन थे। इस पाक्षिक के कुल 34 अंक निकाले गये। आर्थिक कठिनाइयों के कारण यह पत्र नवम्बर 1929 को बंद हो गया।
- समता – 29 जून 1928 में आम्बेडकर ने ‘समता’ पत्र शुरू किया। यह पत्र डॉ अम्बेडकर द्वारा समाज सुधार हेतु स्थापित संस्था समाज समता संघ (समता सैनिक दल) का मुखपत्र था। इसके संपादक के तौर पर अम्बेडकर ने देवराव विष्णु नाइक को नियुक्त किया था।
- जनता – समता पत्र बंद होने के बाद डॉ अम्बेडकर ने इसका पुनः प्रकाशन ‘जनता’ के नाम से किया। 24 फरवरी 1930 को इस पाक्षिक का पहला अंक प्रकाशित हुआ। 31 अक्टूबर 1930 से यह साप्ताहिक बन गया। 1944 में बाबासाहेब ने इसमें ‘आम्ही शासनकर्ती जमात बनणार’ (हम शासक कौम बनेंगे) इस शीर्षक से प्रसिद्ध लेख लिखा। इस पत्र के माध्यम से आम्बेडकर ने दलित समस्याओं को उठाने का बखूबी कार्य किया। फरवरी 1956 तक यानी कुल 26 साल तक यह पत्र चलता रहा।
- प्रबुद्ध भारत – डॉ अम्बेडकर ने पाँचवी बार 4 फरवरी 1956 को ‘प्रबुद्ध भारत’ पत्र शुरू किया। ‘जनता’ पत्र का नाम बदलकर उन्होंने ‘प्रबुद्ध भारत’ कर दिया था। इस पत्र के मुखशीर्ष पर ‘अखिल भारतीय दलित फेडरेशन का मुखपत्र’ छपता था। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण के बाद यह पाक्षिक बंद हुआ। 11 अप्रैल 2017 को महात्मा फुले की जयंती के अवसर पर बाबासाहेब के पौत्र प्रकाश आम्बेडकर ने “प्रबुद्ध भारत” को नये सिरे से शुरू करने की घोषणा की और 10 मई 2017 को इसका पहला अंक प्रकाशित हुआ एवं यह पाक्षिक शुरू हुआ।
बाबा साहब ने सामाजिक संचेतना के विकास के लिए बतौर पत्रकार अपनी भूमिका अन्य भूमिकाओं की तरह बखूबी निभाई और विशेष रूप से शोषितों के वैचारिक जागरण का बड़ा स्तम्भ बने। पत्रकारिता से जनजागरण कैसे लाया जा सकता है, यह पत्र उसकी मिसाल है। यह डॉ अम्बेडकर के दीर्घ विद्वत जीवन का महत्वपूर्ण पक्ष है। आज जयंती पर बाबासाहब को श्रद्धासुमन।
( लेखक पीयूष कुमार उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन में सहायक प्राध्यापक (हिंदी) हैं। उनका कविता संग्रह ” सेमरसोत में सांझ” 2021 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हुआ था। संपर्क – 8839072306)