शहादत दिवस (23 मार्च) पर
‘भगत सिंह ने पहली बार पंजाब/जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से/बुद्धिवाद की ओर मोड़ा था/जिस दिन फांसी दी गई/उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली/जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था/पंजाब की जवानी को/उसके आखिरी दिन से/इस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे, चलना है आगे’
ये काव्य पंक्तियां पंजाबी के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की हैं। भगत सिंह को जब फांसी के लिए ले जाया जा रहा था, उस वक्त वे अपनी काल कोठरी में लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। फांसी के लिए जाने से पहले उन्होंने किताब के उस पन्ने को, जहां वे पढ़ रहे थे, मोड़ दिया था। पाश ने इस परिघटना को आजादी के संघर्ष को जारी रखने की प्रेरणा के रूप में लिया और अपनी कविता में इसे व्यक्त किया।
पाश की कविताओं की नजर में एक तरफ ‘ शांति गांधी का जांघिया है जिसका नाड़ा चालीस करोड़़ इन्सानों को फांसी लगाने के काम आ सकता है’ तो दूसरी तरफ ‘युद्ध हमारे बच्चों के लिए/कपड़े की गेंद बनकर आएगा/युद्ध हमारी बहनों के लिए कढ़ाई के सुन्दर नमूने लायेगा/युद्ध हमारी बीवियों के स्तनों में दूध बनकर उतरेगा/युद्ध बूढी मां के लिए नजर का चश्मा बनेगा/युद्ध हमारे पुरखों की कब्रों पर फूल बनकर खिलेगा’ और ‘तुम्हारे इंकलाब मेें शामिल हैं संगीत और साहस के शब्द/खेतों से खदान तक युवा कंधों और बलिष्ठ भुजाओं से/रचे हुए शब्द, बर्बर सन्नाटों को चीरते हजार कठों से निकलकर/आज भी एक साथ गूंज रहे शब्द’ – यही हजारों कंठो से निकली हुई आवाज पाश की कविता में शब्दबद्ध हुई। पाश की कविताओं में इन्हीं कंठों की उष्मा है। इसीलिए पाश की कविताओं पर लगातार हमले हुए। उन्हें अपनी कविताओं के लिए दमित होना पड़ा।
लेकिन चाहे सरकारी जेलें हों या आतंकवादियों की बंदूकें………. पाश ने कभी झुकना स्वीकार नहीं किया बल्कि हजारों शोषित कंठों से निकली आवाज को अपनी कविता में पिरोते रहें, रचते रहे, उनका गीत गाते रहे और अपने प्रिय शहीद भगत सिंह की राह पर चलते हुए शहीद हो गये। 23 मार्च के दिन ही अपना खून बहाकर पाश ने राजनीति और संस्कृति के बीच खड़ी की जाने वाली दीवार को ढहाते हुए यह साबित कर दिया कि बेहतर जीवन मूल्यों व शोषण उत्पीड़न से मुक्त मानव समाज की रचना के संघर्ष में कवि व कलाकार भी उसी तरह का योद्धा है जिस तरह एक राजनीतिक कार्यकर्ता।