आरा। स्थानीय बाल हिंदी पुस्तकालय में वरिष्ठ कहानीकार जितेंद्र कुमार के सद्य: प्रकाशित कहानी संग्रह ‘अग्निपक्षी’ का लोकार्पण व परिचर्चा का कार्यक्रम जन संस्कृति मंच, भोजपुर-आरा द्वारा आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में कहानीकार ने अपनी कहानियों की रचना प्रक्रिया से उपस्थित लोगों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि मैं अपनी कहानी का विषय विराट सामाजिक संसार की गतिविधियों से चुनता हूँ। कभी किसी के संवाद की एक पंक्ति मेरी रचनाशीलता को सक्रिय कर देती है तो कभी कोई घटना, परिघटना या दुर्घटना भी उसके इर्द-गिर्द एक कहानी गढ़ने के लिए उकसाती है। उस संवाद या घटना-परिघटना में मानवीय मूल्य की तलाश करता हूँ। एक चरित्र की खोज और रचना वस्तुओं का संकलन और संघठन। रचना वस्तुओं की तलाश में मेहनत करनी पड़ती है। यह ध्यान रखता हूँ कि रचना वस्तु इतना यथार्थ हो कि वह अपने समय और समाज के यथार्थ का दस्तावेज लगे।
उन्होंने कहा कि ‘अग्निपक्षी’ का सागर गोस्वामी के चरित्र और कथानक में एक से अधिक चरित्र समाहित हैं। भगत गार्मेंट्स का टेलर मास्टर गरीब रथ में मिला था। वह उत्तर बिहार का था। सागर गोस्वामी के पिता मेरे गाँव के साव जी थे जो सचमुच ट्रैक्टर उलटने से मर गये थे। एक कहानी को कई-कई बार लिखना पड़ा है। मेरी कहानियों के चरित्र नायक हाड़-माँस के बने हैं। उनके सपने हैं, जिंदगी की जद्दोजहद है।
कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि जितेंद्र कुमार की कहानियाँ अपने समय के सावधिक दस्तावेज की तरह हैं। ये कहानियाँ कहानी के पारंपरिक शिल्प का अतिक्रमण करते हुए यथार्थ को यथातथ्य रचने का खतरा उठाती हैं।
गोरखपुर से आये जसम के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि जितेंद्र कुमार की कहानियाँ भोजपुर के जन-जीवन व यहाँ के संग्रामी जमीन का बहुस्तरीय स्वरूप प्रस्तुत करती हैं। इसलिए शीर्षक कहानी ‘अग्निपक्षी’ का प्रतीक पात्र उनकी प्रत्येक कहानी में कहीं न कहीं शामिल है। प्रत्येक कहानी संघर्ष और प्रतिकार की चेतना की कहानी है।
कथाकार सुरेश कांटक ने संग्रह की चर्चा करते हुए कहा कि ये कहानियाँ उस जमीन की कहानियाँ हैं जहाँ आज भी सामंती जकड़न मौजूद है। इसलिए इन कहानियों में यहाँ के समाज का कटु यथार्थ वर्णित है। यहाँ आज भी सामाजिक, आर्थिक विषमता व्याप्त है। रोजी-रोजगार, भूमि का असमान वितरण जैसी समस्याओं का निदान आज तक नहीं हो पाया है। इन कहानियों को पढ़कर बिहार के एक बड़े भू-भाग को आसानी से समझा जा सकता है।
अध्यक्ष मंडल की सदस्य श्रीमती शुभा श्रीवास्तव ने कहा कि संग्रह की कहानियाँ बदलाव के लिए अपेक्षित स्त्री विमर्श को काफी महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित करती हैं।
अध्यक्ष मंडल के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र गुंजन सिन्हा ने कहा कि ये कहानियाँ अपने समय का साहसिक दस्तावेजीकरण करती हैं। उन्होंने कहा कि ये कहानियाँ जीवन संघर्षों को बनाए रखने की जिजीविषा की कहानियाँ हैं। आज की पत्रकारिता ने जिन तथ्यों से किनारा कर लिया है, ये रचनाएँ उसकी क्षतिपूर्ति करती हैं।
आलेखों में ‘अग्निपक्षी’
जितेन्द्र कुमार के कहानी संग्रह ‘अग्निपक्षी’ के लोकार्पण के क्रम में कुछ युवा रचनाकारों द्वारा अपने-अपने आलेखों का पाठ करते हुए पुस्तक परिचर्चा की गंभीर शुरुआत हुई।
युवा कवि-आलोचक तथा समकालीन जनमत के पूर्व संपादक सुधीर सुमन ने राँची से अपना एक संक्षिप्त आलेख प्रेषित किया था जिसका पाठ संचालक सुमन कुमार सिंह ने किया। अपने आलेख में सुधीर सुमन ने कहा कि जितेंद्र कुमार की कहानियाँ सामाजिक यथास्थिति और परिवर्तन के द्वंद्व के प्रामाणिक अनुभवों को चित्रित करती हैं। विशेषकर इन कहानियों में भोजपुर के समाज में गैरबराबरी वाले सामंती संस्कारों और उसमें परिवर्तन के लिए प्रयासरत लोगों के बीच के संघर्ष को विभिन्न आयामों से दर्शाने की कोशिश की गयी है। वे शहर के मध्यवर्गीय समाज के भी पारखी हैं। इस समाज के पाखंड और यथास्थितिवादी मानसिकता के विरुद्ध उनकी कहानियों में तीखा व्यंग्य और आलोचना मिलती है। उनकी कहानियाँ बताती हैं कि हमारे यहाँ तथाकथित आधुनिकता है उनका भी सामंती संस्कारों और धारणाओं से नाभि नाल रिश्ता है।
उन्होंने कहा कि जितेंद्र कुमार की कहानियों का नैरेटर मुखर है। इस कारण कई जगह कहानी कमजोर भी हुई है। कहानीकार को पाठक पर भी भरोसा करना चाहिए कि वह पात्रों की गतिविधियों से ही उनके चरित्र और विचार के बारे में समझ जाएगा। वैचारिक विमर्श की मंशा से नैरेटर की मुखर उपस्थिति पाठकों को बरबस विमर्श की ओर धकेलती है, जिससे पाठक कहानी के आस्वाद से वंचित हो जाता है। उन्होंने उनकी कहानियों में डिटेलिंग की अधिक प्रवृत्ति को चिन्हित करते हुए कहा कि कहानी कला के लिहाज से लेखक को घटनाओं के वर्णन और शब्दों के उपयोग में संयम बरतना चाहिए।
अपने आलेख में कवि सुनील श्रीवास्तव ने रेखांकित किया कि जितेंद्र कुमार की कहानियाँ निम्न मध्यवर्गीय जीवन की कहानियाँ हैं। इसे बतकही के शिल्प में रचा गया है। लेखक के पास एक सूक्ष्म, विश्लेषणात्मक और संवेदनशील दृष्टि है। इस दृष्टि से जब वे किसी घटना को देखते हैं तो बड़ी आसानी से घटना की जड़ तक पहुँच जाते हैं और पाठक को भी वहाँ तक पहुँचा देते हैं। वे अपने परिवेश के प्रति पूरी तरह सजग हैं। आसपास की घटनाओं, प्रवृत्तियों, आंदोलनों पर उनकी गहरी नजर है और इन सबको इन्होंने अपनी कहानियों का विषय बनाया है।
कवि-चित्रकार राकेश दिवाकर ने अपने आलेख के सहारे बताया कि जितेन्द्र कुमार की कहानियाँ हमारे समय की समाजशास्त्रीय व्याख्या करती हैं। सर्वभाषा ट्रस्ट से प्रकाशित इस कहानी संग्रह में कुल दस कहानियाँ हैं | जकड़न , मरी खाल की साँस , अग्नि पक्षी , मुआवजा , मेघनाथ बध , शहादत , नाजिर परिवार , धूरिया मास्टर , सुमंगली और अंधेरे के आगोश में | इन सारी कहानियों को जितेन्द्र जी ने या तो अपने आसपास से उठाया है या खुद अपने कार्यानुभव से। कहानी संग्रह को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे लेखक कहानी नहीं कह रहा है बल्कि कोई संस्मरण सुना रहा है। किसी घटना या किसी मनुष्य के बारे में बहुत तफ़सील से आँखों देखी बात कर रहा है। संग्रह की लगभग सारी कहानियाँ किसी रोचक संस्मरण या वृतांत की तरह लगती हैं। यह इस संग्रह की विशेषता भी है और इसकी सीमा भी। कहानीकार ने कहानी गढ़ने से अधिक कहानियों की तलाश की है। इन कहानियों के सारे पात्र और सारी घटना आपको जीवंत रुप में अपने आसपास मिल जाएँगे। एकदम अपनी भेष-भूषा और अपने बात-व्यवहार के साथ। यर्थार्थवादी शैली और शिल्प में ढ़ली जितेन्द्र कुमार की ये कहानियाँ केवल वर्तमान परिवेश को ही नहीं पेश करती हैं बल्कि ये सुखद भविष्य की कल्पना भी करती है | ये कहानियाँ राजनीति और अपराध के गठजोड़ , जाति धर्म और स्वार्थ आधारित संबंधों का पर्दाफाश तो करती हीं हैं साथ ही विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी डटे रहने को प्रेरित भी करती हैं।
कवि-कहानीकार डॉ.सिद्धनाथ सागर ने अपने आलेख के हवाले से रेखांकित किया कि जनपक्षीय सरोकारों से ताल्लुक रखने वाले जितेन्द्र कुमार एक दृष्टि सम्पन्न रचनाकार हैं। इनकी कहानियाँ हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों की कहानियाँ हैं। कहानीकार अपने हक के लिए लगातार आवाज बुलंद करती आवाम के भीतर के अंतर्विरोधों और अंतर्द्वंद्वों को बड़ी बारीकी से पहचानता है और अपनी अभ्यस्त लेखनी से कहानी का खूबसूरत ताना- बाना रचता है। जितेन्द्र कुमार की कहानियाँ आम आदमी के सुख- दुःख व सड़ी-गली व्यवस्था से आजाद होने की कहानियाँ हैं । संग्रह की कहानियाँ हर तरह के जोर- जुल्म से टकराने व अन्याय के खिलाफ एक नई और खूबसूरत दुनिया रचने की कहानियाँ हैं।
आलेखों से इतर संग्रह पर प्रो.नंदजी दुबे,प्रो. दिवाकर पाण्डेय, कवि वल्लभ सिद्धार्थ, सुशील कुमार, ममता मिश्र, किरण कुमारी, बलिराज ठाकुर, वकील लक्ष्मीनारायण राय आदि ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में पटना से आये वरिष्ठ कवि कुमार मुकुल, राजेश कमल, प्रशांत विप्लवी, शेषनाथ पाण्डेय के साथ-साथ आरा से वरिष्ठ रंगकर्मी अंजनी शर्मा, प्रो.अयोध्या प्रसाद उपाध्याय, वेदप्रकाश सामवेदी, सुभाष चंद्रबशु, अरविंद अनुराग, कवि रविशंकर सिंह,अमित मेहता, राजाराम प्रियदर्शी, रवि प्रकाश सूरज, विजय मेहता, चित्रकार संजीव सिन्हा, धनंजय कटकैरा,किशोर कुमार आदि की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम में उपस्थित लोगों का धन्यवाद ज्ञापन जसम के राज्य सदस्य व युवानीति के चर्चित रंगकर्मी सूर्यप्रकाश ने किया। कार्यक्रम संचालन कवि सुमन कुमार सिंह ने किया।