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सिनेमा

टॉय लैंड: अमानवीयता के बर’अक्स लिखी गई विडम्बना की मार्मिक कविता

टॉय लैंड– (जर्मन Spielzeug Land)

निर्देशक – योखें अलेक्सेंडर फ्रेयदंक

समय-14 मिनट
कलाकार– जूलिया ज्लेगा, सेड्रिक एइच, तमय बोलुट उज्त’वान आदि

दूसरे विश्व युद्ध के प्लाट पर बनी फिल्म. एक साथ पियानो सीखने वाले दो बच्चे. एक जर्मन दूसरा यहूदी. जर्मन सेना यहूदी बच्चे और उसके परिवार को कंसंट्रेशन कैंप भेजने वाली है, इसलिए दोनों दोस्त अलग होने वाले हैं. पूछने पर जर्मन बच्चे की माँ उसे बताती है कि वह अपने परिवार के साथ टॉय लैंड जा रहा है. जर्मन बच्चा यहूदी दोस्त से वादा करता है कि वह कुछ भी करके उसके साथ टॉय-लैंड चेलगा. दूसरी सुबह जर्मन बच्चे की माँ उसे कमरे में नहीं पाती है, तब किसी अनहोनी कि आशंका में वह उसे खोजने लगती है. वह उसे खोजते हुए वह सड़क पर पुलिस वाले से मिलती है फिर ट्रेन स्टेशन की तरफ दौड़ती है. वहाँ जर्मन सैनिकों से आग्रह करने पर वे डिब्बा खोलते हैं. वहाँ उसे उसका बेटा नहीं मिलता क्योंकि उसके बच्चे को जर्मन सैनिक ट्रेन स्टेशन ले ही नहीं जाती है. वहाँ उसे यहूदी बच्चा मिलता है, जिसे वह अपना बच्चा बताकर बचा लाती है.
टॉय-लैंड, नस्लीय अत्याचारों की कहानी कहती फिल्म

फिल्म जिस तनाव और डर को शुरुआत से ही दिखाती है वह अंत तक बना रहता है. जर्मन महिला पूरी फिल्म में किसी जल्दी में भागती फिर रही है. उसकी भागदौड़ का अंत भी फिल्म के आखिर में होता है.
जर्मन महिला मारिआन (जूलिया ज्लेगा ) जब अपने बच्चे को खोजते हुए सीढ़ियों से उतर रही होती है तब फ़्लैश बैक में पिछली घटना चलती है कि किस प्रकार दोनों छोटे बच्चे, यहूदी डेविड (तमय बोलुट उज्त’वान) के घर एक ही पियानो पर सीख रहे होते हैं. पियानो पर ऐसी जुगलबंदी, उनकी प्रगाढ़ मित्रता को बतलाती है. इसी फ्लैशबैक दृश्य में उदास यहूदी महिला जर्मन महिला को बताती है कि जर्मन सैनिक उन्हें कंसंट्रेशन कैंप में ले जाने के लिए कल आ रहे हैं. जर्मन महिला उसके कंधे पर हाथ रखती है. केवल उदासी ही इस दृश्य में है. और कोई भाव नहीं. मानो जर्मन सैनिकों के लगातार अत्याचार और घृणा का सहज सामान्यीकरण हो गया हो. सारे भाव उदासी में बदल गए हों.
पियानो बजते हुए पड़ोसियों का उन पर नस्लीय टिप्पणी करना, और बिल्डिंग से नीचे उतर कर जर्मन महिला, मारिआन, का अपने बच्चे, हेनरिच (सेड्रिक एइच) के बारे में पूछने पर महिला द्वारा यह कहना कि उसके यहूदी पड़ोसियों को कंसंट्रेशन कैंप में ले जाना हेनरिच के लिए अच्छा है, घृणा के सहज स्वभाव में बदल जाने के उदाहरण हैं.
फ्लैशबैक में, यहूदी परिवार की उदासी के बारे में पूछने पर मारिआन झूठ कहती है कि वे अब टॉय-लैंड जा रहे हैं. हेनरिच भी टॉय-लैंड जाना चाहता है. रात में हेनरिच और डेविड अपने-अपने घरों की खिड़कीयों पर आकर आपस में बात करते हैं. हेनरिच के टॉय-लैंड आने की बात पर उदास डेविड कहता है कि वह वहाँ नहीं आ सकता है.
मारिआन सैनिक से मिलती है. सैनिक यह जानकर कि वह जर्मन है, उसे आश्वस्त करता है कि वे जर्मन को कंसंट्रेशन कैंप नहीं ले जाते हैं. वह स्टेशन की ओर भागती है. वहाँ स्टेशन पर भी सैनिक बेअदबी से उसके जर्मन होने का पहचान पत्र दिखाने के लिए कहते हैं. मारिआन अपना परिचय पत्र दिखाती है. और बताती है कि शायद उसका बेटा हेनरिच उसके पड़ोसियों यहूदी के साथ आ गया है.
फ्लैशबैक के ही एक अन्य दृश्य में – कुछ जोरदार आवाज सुनकर हेनरिच उठता है और खिड़की से देखकर तैयार होने के बाद सड़क की ओर चलता है. वहाँ जर्मन सैनिक उसे गाड़ी में नहीं बैठने देते हैं. गाड़ी में अपने माता-पिता के साथ धकेला जा चुका डेविड, हेनरिच से कहता है कि ‘टॉय-लैंड कोई जगह है ही नहीं.’ हेनरिच गाड़ी के बाहर ही रह जाता है. गाड़ी की सींकचों के अन्दर से फिल्माया यह दृश्य मानो कह रहा हो कि बाहर की दुनिया नस्लीय विचारों में कैद हो चुकी हो.


सैनिक अधिकारी कंसंट्रेशन कैंप को जा रही ट्रेन को रोकता है. रिकॉर्ड देखकर वह डिब्बे को खोलता है. खोलते ही बिलकुल छोटे बच्चों के रोने की आवाज आती है. सैनिक अधिकारी हेनरिच को पुकारता है. डिब्बे में ठूसे गए लोग हटते हैं. यहूदी माता-पिता से चिपके हुए बच्चे को देखकर मारिआन, हेनरिच को पुकारती है. बच्चा मुड़ता है. यह डेविड है. सब चुप्पी साध लेते हैं. मारिआन, फिर कहती है आओ हेनरिच. सैनिक अधिकारी डेविड से मारिआन की शक्ल मिलाता है. एक-सी लगने पर वह मारिआन और डेविड को जाने के लिए कहता है. कोई सैनिक डिब्बे का दरवाजा बंद करता है. बंद करते हुए डेविड के माता-पिता और बाकी यहूदियों के चेहरे उदासी का झटका सा देते हैं. बच्चा फिर रोता है- अलार्म की तरह. दरवाजे के बंद होते-होते सैनिक अधिकारी मारिआन से क्षमा माँगता है. डिब्बे में अँधेरा पसर जाता है. यह दृश्य फिल्म का सबसे शानदार तरीके से फिल्माया दृश्य है. नस्लीय व्यवहार से उपजी हुई विडम्बना का दृश्य. एक तरफ क्षमा प्रार्थना दूसरी तरफ़ घृणा और अत्याचार. उजाले और अँधेरे की बाइनरी. पियानो के टोन, ब्लैक एंड व्हाइट.
मारिआन, डेविड को लेकर हेनरिच के पास लाती है. दोनों पियानो की जगह टेबल बजाते हैं. फिल्म का अंत भी दो लोगों के बूढ़े हाथों द्वारा पियानों बजाने से होता है. डेविड और हेनरिच के हाथ.

फिल्म का हर दूसरा सीन फ्लैशबैक में है. यह दर्शकीय लिहाज से बहुत सहज नहीं है. इसी असहजता से शुरुआत होने के बाद भी फिल्म अंत में फ्लैशबैक से ही स्थापित सी होती, निचोड़ पर पहुँचती है. फ्लैशबैक में जितनी सहजता है (चाहे किसी भी किस्म की) आज में उतना ही तनाव है. अंतिम दृश्यों में फ्लैशबैक सहजता ख़त्म करता है तो दूसरी तरफ तनाव भी खत्म होता है.
फिल्म में आवाज सुनकर हेनरिच का उठना और तैयार होकर सड़क पर जाना, इस सीन में मारिआन कहीं नहीं दिखती, जबकि उसे पहले से ही मालूम था कि यहूदी परिवार को आज कंसंट्रेशन कैंप ले जाया जाना है. आवाज सुनकर भी या हेनरिच के तैयार होने के घटनाक्रम में वह कहीं नहीं है.
मारिआन, डेविड को किसी योजना के तहत बचाती है या यह महज़ एक इत्तफाक था. यह भी साफ नहीं हो पाता है.
फिल्म में मुख्यतः पांच लोगों का ही अभिनय है. जूलिया ज्लेगा माँ के रूप में सबसे महत्वपूर्व किरदार हैं. सेड्रिक एइच, हेनरिच और तमय बोलुट, डेविड की भूमिका में हैं. एक से दिखने वाले दो बच्चे अलग-अलग मनोस्थिति में हैं. हेनरिच के सहज बचपन और डेविड के ‘असहज’ बचपन के मूल में घृणा से उपजा तनाव देखा जा सकता है. डेविड की चुप्पी कचोटने वाली है और सपाट चेहरा कोई प्रश्न चिह्न. फिल्म में कैमरा शॉट शानदार तरीके से लिए गए हैं. कंसंट्रेशन कैंप को जाती गाड़ी की सींकचों से लिया गया शॉट और अंत में डेविड के ट्रेन के डिब्बे से उतरने पर लिया गया लो एंगल फुल शॉट, शानदार कैमरा-वर्क है. सिनेमेटोग्राफी कुछ परेशान करती लगती है. फिल्म शुरू से आखिर तक धुंधली ही फिल्माई गई है. संगीत बढ़िया है.
यह फिल्म वर्तमान भारतीय परिस्थितियों में भी देखी जानी चाहिए. एक समुदाय की दूसरे समुदाय से घृणा आतंकित करती है. इतिहास के सबसे बुरे दौर में धकेलने वाली यह घृणा भविष्य की पीढ़ी को अपराध बोध में रहने के लिए मजबूर करेगी. इस फिल्म को भविष्य का रास्ता दिखाती इतिहास की किताब सा पढ़ा जाना चाहिए.

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