अभिषेक कुमार
राजस्थान व दिल्ली एक्टू की संयुक्त जांच दल की एक रिपोर्ट
दिनांक 8 – 9 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल के पहले दिन नीमराना, राजस्थान में स्थित ‘जापानी जोन’ के अन्दर डाईकिन व अन्य कंपनियों के मजदूरों के द्वारा एक जुलूस निकाला गया.
प्रबंधन ने गुंडों और पुलिस की मदद से मजदूरों के ऊपर शर्मनाक हमला करवाया, जिसमें दर्जनों मजदूर घायल हो गए. ऐक्टू राजस्थान राज्य परिषद की ओर से कामरेड राहुल चौधरी, कामरेड शंकर दत्त तिवारी, हेमंत (अधिवक्ता, दिल्ली उच्च न्यायालय ) व ऐक्टू दिल्ली से कामरेड श्वेता, सूर्यप्रकाश (अधिवक्ता) व अभिषेक पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए चौदह में से चार मजदूरों के परिवारों और पड़ोसियों के अलावा कुछ यूनियन कार्यकर्ताओं से मिले.
इनमें से तीन परिवार हिमाचल प्रदेश से और एक ओड़िशा से था – सभी परिवारों में गिरफ्तार मजदूर ही एकमात्र कमानेवाले सदस्य थे, एक को छोड़कर सभी परिवारों में काफी छोटे बच्चे थे.
पुलिस द्वारा 8 जनवरी को देर रात 12 बजे के आसपास मजदूरों के घरों में घुसकर इन्हें उठा लिया गया, पड़ोसियों और परिवार वालों का कहना था कि पुलिस के साथ छापे के दौरान डाईकिन प्रबंधन/ ठेकेदार के लोग भी मौजूद थे.
जापानी जोन : कॉर्पोरेट लूट और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से हो रहा है मजदूरों का दमन
बेहरोड़, राजस्थान : पिछले कई सालों से मानेसर-बावल-नीमराणा और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों में लगातार मालिकों, विशेषकर विदेशी मालिकों द्वारा दमन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.
ऐसा देखने में आया है कि यूनियन गतिविधियों के ऊपर लगातार कॉर्पोरेट और सरकार, सांठगांठ कर ज़ुल्म ढाती हैं. मजदूरों द्वारा इसका प्रतिरोध करने पर उनपर ढ़ेरों झूठे मुक़दमे लाद दिए जाते हैं.
8 जनवरी, 2019 को देशभर में हो रही हड़ताल के दौरान डाईकिन मैनेजमेंट के ‘बाउंसरों’ और राजस्थान पुलिस द्वारा शांतिपूर्ण जुलूस निकालने के लिए डाईकिन मजदूरों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया !
डाईकिन के मजदूरों द्वारा लम्बी लड़ाई के बाद यूनियन पंजीकृत करवाया गया है, जो एक बड़ी जीत है. मालिकों और सरकार को ये डर लगातार सता रहा है कि ‘जापानी जोन’ में यूनियन गतिविधियाँ कही और तेज़ न हो जायें.
जहां एक ओर मजदूर अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर, यूनियन बनाकर, अपने हक जीतना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर सभी तरह के कानूनी-गैरकानूनी हथकंडे अपनाकर मैनेजमेंट-सरकार, मजदूरों को गुंडों से पिटवाकर, पुलिस से लाठीचार्ज करवाकर, कोर्ट-कचहरी से सज़ा दिलवाकर दबाना चाहती है.
मारुति से लेकर प्रिकॉल तक मजदूरों को यूनियन बनाने, संघर्ष करने, जायज़ मांगों को उठाने के लिए सज़ा देने की बात अब आम हो गई है.
हाल ही में ‘मुंबई इलेक्ट्रिक एम्प्लाइज यूनियन’ के पांच मुख्य कार्यकर्ताओं समेत तीन और लोगों को ‘यू.ए.पी.ए’ (UAPA) जैसे काले कानून की आड़ लेकर जेल भेज दिया गया. जब कानून का रट लगाने वाले पुलिस-प्रशासन इस बात की भी गारंटी नहीं कर सकते कि मजदूरों के लिए पहले से ही लचर कानूनों में जो कुछ भी बचे-खुचे अधिकार हैं, वो मजदूरों को मिले, तो मजदूरों का गुस्सा दिनोदिन बढ़ेगा ही.
डाईकिन के फैक्ट्री गेट पर झंडा लगाने गए मजदूरों के साथ पहले भी कंपनी प्रबंधन और पुलिस ने जोर-आजमाइश की थी, परन्तु उनके न टूटनेवाले हौसले से खौफ खाकर 8 जनवरी की घटना को अंजाम दिया गया.
कई मजदूरों को इस लाठीचार्ज में गंभीर चोटें आई हैं, पुलिस द्वारा रात को छापा मारकर की जा रही गिरफ्तारियों के कारण कई मजदूर अभी भी डरे हुए हैं.
मजदूरों के ऊपर लाठी-डंडे-आंसू गैस के अलावे भारतीय दंड संहिता की धाराओं की बौछार भी खूब की गई है – 147, 148, 149, 332, 353, 307, 427, 336 और धारा 3 पी डी पी पी ( प्रिवेंशन ऑफ़ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट ).
नीमराणा पुलिस थाने में दर्ज एफ.आई.आर. संख्या 21 में ‘एटेम्पट टू मर्डर’ यानि भारतीय दंड संहिता की धारा 307 समेत अन्य धाराएं, सत्रह नामजद लोगों व 600-700 बेनामी मजदूरों पर लगाई गई हैं.
गौरतलब है कि जिन मजदूरों को रात में घुसकर पुलिस ने घरों से उठाया है, उनमें से किसी का भी नाम इस एफ.आई.आर. में नहीं है. इससे साफ़ जाहिर होता है कि ऐसी कार्रवाई मजदूरों को कंपनी के इशारे पर डराने व यूनियन को ख़त्म करने के लिए की जा रही है.
अपना हक मांगने पर जेल – ये गुलामी नहीं तो और क्या है ?
कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनने और केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद, वह राज्य जिनमें श्रम कानूनों में संशोधन सबसे पहले हुआ – वो राजस्थान और हरियाणा ही थे. उद्योगों और निवेश को प्रोत्साहन देने के नाम पर ही आज तक मारुति और प्रिकॉल के मजदूरों को सलाखों के पीछे बंद करके रखा गया है. दमनकारी नीतियों से डर पैदा कर यूनियन बनाने के अधिकार को पूरी तरीके से छीनने की कवायद राजस्थान में सरकार बदलने के बावजूद भी बदस्तूर जारी है. यदि मजदूर यूनियन नहीं बनाएगा, संगठित नहीं होगा, तो अपने अधिकार कैसे पाएगा ? अगर मजदूर सही वेतन, सम्मानजनक पक्का रोज़गार, सुरक्षित कार्यस्थल की मांग नहीं करेगा, तो क्या करेगा ? यदि श्रमिक अपने फैक्ट्री गेट पर यूनियन का झंडा नहीं लगाएंगे तो कहाँ लगाएंगे ?
क्या इस देश के मेहनतकश ‘जापानी जोन’ में जाते ही इंसान नहीं रह जाते, क्या उनके सारे अधिकार ख़त्म हो जाते हैं ? ऐक्टू ने जब पीड़ित श्रमिकों के परिवारों समेत औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों/यूनियन कार्यकर्ताओं से बात कि तो निम्नलिखित बातें सामने आईं :-
1. यह पूरा प्रकरण पुलिस द्वारा कंपनी के इशारे पर यूनियन तोड़ने व मजदूरों को प्रताड़ित करने के लिए अंजाम दिया गया है. कंपनी गेट पर यूनियन का झंडा लगाना काफी समय से औद्योगिक क्षेत्रों और संस्थानों में प्रचलन में है, ऐसे में इस मामले में पुलिस हस्तक्षेप कानून व्यवस्था बनाने के लिए नहीं, बल्कि बिगाड़ने के लिए उठाया गया कदम है.
2. कंपनी को पंजीकृत यूनियन को मान्यता दे उससे सार्थक बातचीत की कोशिश करनी चाहिए, न की ‘गुंडे/ बाउंसर’ बुलाकर मजदूरों पर हमला करने की. अगर डाईकिन प्रबंधन औद्योगिक शान्ति बनाये रखना चाहता है तो फिर यूनियन पर हमला क्यों करवा रहा है ? यूनियन का झंडा क्यों नहीं लगने दे रहा ?
3. यूनियन के नेताओं को खासकर निशाना बनाना, निश्चित तौर पर प्रबंधन की गलत नीयत और बदले की कार्यवाही से किये गए कार्य हैं. एफ.आई.आर में 600-700 बेनामी लोगों का ज़िक्र भविष्य में इस दमन को और तेज़ करने के रास्ते खोलता है.
4. यह कि न्यायिक प्रक्रियाओं में होने वाली देरी और पुलिस/प्रशासन/सरकार का कॉर्पोरेट के प्रति पूर्णतया समर्पित होने के कारण कई बार मजदूरों को झूठे मुकदमों में सालों जेल काटना पड़ता है. इस तरह की व्यवस्था, सम्बद्ध कंपनी प्रबंधन के हाथों में यूनियन बनाने वाले मजदूरों के खिलाफ एक हथियार का काम करती हैं. ( रिपोर्ट लिखे जाने तक सेशंस कोर्ट, बेहरोड़ द्वारा 14 मजदूरों की ज़मानत एक बार खारिज की जा चुकी है )
5. 2013 से लेकर आजतक यूनियन बनाने के संघर्ष के दौरान लगातार मैनेजमेंट मजदूरों की छटनी/ ट्रान्सफर इत्यादि से मजदूरों को डराने की कोशिश में लगा हुआ है, जिसका प्रतिरोध मजदूरों ने हमेशा किया है. ये लाठीचार्ज और केस मजदूरों से बदला लेने के लिए किया गया है.
6. यह कि निवेश और उद्योगों को बढ़ावे के नाम पर न केवल श्रम कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है बल्कि मानवाधिकारों का हनन भी धड़ल्ले से जारी है. इसमें कंपनी प्रबंधन और पूरे सरकारी तंत्र की सक्रीय भूमिका साफ़ दिखाई देती है.
ऐक्टू उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ये मांग करती है कि औद्योगिक क्षेत्र में कंपनियों के अन्दर मजदूर-अधिकारों का हनन तुरंत बंद होना चाहिए.
सभी गिरफ्तार मजदूरों को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए व कंपनी के इशारे पर मजदूरों पर हमला करनेवाले पुलिसवालों व गुंडों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. राज्य व केंद्र सरकारों को यूनियन बनाने के अधिकार को सर्व सुलभ बनाने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने चाहिए.
डाईकिन प्रबंधन को यूनियन को मान्यता देकर, निकाले गए सभी मजदूरों को काम पर वापस लेना चाहिए व मजदूरों को नियमित करने के साथ-साथ अन्य मांगों पर जल्द वार्ता शुरू करनी चाहिए.
ऐक्टू का ये मानना है कि हाल ही में हुए चुनावों में भाजपा को मिली हार से तत्कालीन कांग्रेस सरकार को सीख लेना चाहिए और मजदूरों के ऊपर हो रहे दमन पर तुरंत रोक लगाना चाहिए.
✊ *यूनियन बनाने के अधिकार पर हमला नही चलेगा
✊ सभी गिरफ्तार साथियों को रिहा करो
– राहुल चौधरी (ऐक्टू राजस्थान)
– सूर्यप्रकाश (ऐक्टू दिल्ली)
(अभिषेक कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और इस समय ट्रेड यूनियन AICCTU दिल्ली के महासचिव हैं)