फाउन्डेशन फाॅर इंडियन कन्टेम्पररी आर्ट (फीका) ने ‘2018-19 का इमर्जिंग आर्टिस्ट पुरस्कार (उभरते कलाकार पुरस्कार) चित्रकार अनुपम राॅय देने की घोषणा की है. भारत में अध्ययनरत, अभ्यासरत और दृश्य कला के लिये समर्पित और असाधारण क्षमता का प्रदर्शन करनेवाले युवा कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिये स्विटजरलैण्ड की कला परिषद- प्रो हेल्वेशिया के सहयोग से प्रतिवर्ष फीका उभरते कलाकार पुरस्कार प्रदान करती है. इस वर्ष के उभरते कलाकार पुरस्कार के निर्णायक मण्डल में कलाकार मनीषा पारेख, कलाकार और शिक्षाविद राखी पेशवानी, कला-संरक्षक एवं इतिहासकार लतिका गुप्ता और ईरानी-स्विस कलाकार शिराना शाहबाजी शामिल थे.
व्यापक विचार-विमर्श और प्रतिभागियों की अन्तिम सूची के सावधानीपूर्वक सघन परीक्षण के बाद अनुपम राॅय को यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया. इस वर्ष 300 से अधिक आवेदनपत्र प्राप्त हुये थे और प्रारम्भिक छँटाई के बाद उन्हें पुनरीक्षण हेतु निर्णायक मण्डल के सदस्यों के पास भेज दिया गया. इस वर्ष पूरी दमदारी के साथ दावा करनेवाले आवेदनपत्रों पर निर्णायक मण्डल ने सर्वसम्मत राय रखी और उन्हें मतवैभिन्य और गहन पूछताछ के कई परीक्षणों से भी गुजरना पड़ा.
निर्णायक अनुपम के आधारभूत राजनीति से लम्बे जुड़ाव से उत्पन्न राजनीति से ओतप्रोत अभ्यास से अत्यंत प्रभावित हुये. उन्हें लगा कि उनके काम और 1970-80 के दशक की राजनीतिक चित्रकारी में काफी-कुछ समानता है. उन चित्रों में भाषा की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रबल है और साथ ही वह कला और सक्रियता के इर्दगिर्द वर्तमान राजनीतिक प्रश्नों और विमर्शाें पर भी बहुत कुछ कहती हैै. वे देशज विषयों और लेखों के साथ उनके जुड़ाव और विभिन्न संदर्भों में किये गये कार्यों से झलकती उनकी प्रबल कल्पनाशीलता से अत्यधिक प्रभावित हुये. उन्होंने उनके कार्यों की समावेशी प्रवृत्ति और कलादीर्घाओं की चहारदीवारी से बाहर उनके प्रसार का भी संज्ञान लिया.
उन्होंने अनुभव किया कि अनुपम के कार्यों का अन्तर्राष्ट्रीय प्रसार करना और उसके प्रदर्शन हेतु समुचित मंच उपलब्ध कराना उनके कला और उसके समावेशी विकास को और अधिक प्रोत्साहित करेगा. भारत में वर्तमान में चल रहे सामाजिक-आर्थिक आन्दोलनों से गहरे जुड़ाव के कारण अनुपम का पूरा जोर ‘विटनेस’ की स्थिति को ‘विथ नेस’ की तरह समझने पर रहता है अर्थात, प्रोत्साहन कर्ता की आरामदेह निष्क्रियता से सक्रिय संलयन और ‘वास्तविक’ की समझ की ओर यात्रा की राजनीतिक रणनीति पर. उनके पिछले कार्यों में, जहाँ वह प्रतिरोध के लिये जगह बनाने में सहयोग के महत्व को रेखांकित करते हैं वहाँ सामूहिक सक्रियता और कार्यों पर बल दिया गया है. उनके कार्याें में पूरे विमर्श और कूटयुक्त ज्ञान पद्धति के पूर्ण अस्वीकार के माध्यमसे असम्भाव्यता और अपूर्णता को मेल और विछोह के मूल औजारों के रूप में अंगीकार किया गया है.
उभरते कलाकार पुरस्कार 2018 के भागीदार के रूप में उन्हें स्विटजरलैण्ड की कला परिषद- प्रो हेल्वेशिया के सहयोग से 2019 में स्विटजरलैण्ड में नब्बे दिन के प्रवास का अवसर मिलेगा। इसके अलावा आनेवाले सालों में उन्हें दूसरे लाभार्थियों के साथ ही फीका होमपेज मंच पर अपने कार्याें के प्रदर्शन का अवसर भी मिलेगा।
1985 में जन्मे अनुपम राय दिल्ली निवासी कलाकार हैं. उन्होंने बंगाल फाइन आर्ट्स काॅलेज पश्चिम बंगाल से बी.एफ.ए. और स्कूल आॅफ कल्चर्स एण्ड क्रियेटिव एक्सप्रेशन, अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली से दृश्यकला में एम.ए. की डिग्री हासिल की. अनुपम ने बी0सी0 गैलरी, फोर्ट कोच्चि में लेबिरिन्थः रिफ्लेक्शन्स आॅन ट्वेंटीफर्स्टसेन्चुरी पाॅलिटिक्स (2017) और दिल्ली विश्वविद्यालय के टैगोर हाल और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल आॅफ फाइन आर्ट्स और एस0आई0एस0 भवन में माइग्रेटरी बर्ड की एकल प्रस्तुति दी है.
उनकी ताजातरीन सामूहिक प्रस्तुति में गैरी कैरियन-मुरायरी और एलेक्स गार्टेनफील्ड द्वारा संयोजित सांग्स फाॅर सबोटेज, न्यू म्यूजियम ट्राईएनियेल (2018); काॅफ्लिक्टोरियम, अहमदाबाद में अवनि सेठी और वी0 दिवाकर द्वार संयोजित इमैजिनिंग फाॅरेस्ट (2018); वंेकटप्पा आर्ट गैलरी, बंगलोर में बेवारू/ इन स्वेट एण्ड थाॅट (2018); रेड वेज द्वारा मांट्रियाल में आयोजित और आदम तुर्ल द्वारा संयोजित हिस्टाॅरिकल मैटेरियलिज्म (2018); हालीसहर, नाॅर्थ 24 परगना पश्चिम बंगाल में सांस्कृतिक संस्था (2012-13); सैनिक फार्म नई दिल्ली में आर्ट एण्ड यू (2011); गुड़गाँव की वाइब्रैंट गैलरी (2011); विजुअल आर्ट गैलरी, इंडिया हैबिटाट सेन्टर, नई दिल्ली में बंगाल आर्ट शो (2011); इंडियन फाइन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स सोसाइटी, नई दिल्ली में फेथ एण्ड फैंटेसी-।।(2010); नैनीताल, उत्तराखंड में जसम प्रतिरोध का सिनेमा (2009) शामिल हैं।