जन संस्कृति मंच का आगरा और दरभंगा में फ़ैज़ अहमद फैज़ की जयंती पर ‘जश्न-ए-फ़ैज़ ’ का आयोजन
इंकलाबी शायर फ़ैज़ अहमद फैज़ की 107वीं जयंती के अवसर पर 14 फरवरी को आगरा के सूर सदन प्रेक्षागृह में जन संस्कृति मंच और रंग लीला की ओर से ‘जश्न-ए-फ़ैज़ ’ का आयोजन किया गया.
पहले सत्र में ‘ फ़ैज़ : मोहब्बत और जम्हूरियत ’ विषय पर संगोष्ठी हुई. इसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू के प्रोफ़ेसर अली अहमद फ़ातमी ने कहा कि फ़ैज़ बचपन से ही बराबरी के पैरोकार थे. इसलिए उन्होंने स्कूल में सफ़ेद चादर की जगह सामान्य बच्चों के साथ बैठना पसंद किया. फ़ैज़ इंकलाबी शायर थे, लेकिन उन्होंने रूमानियत को कभी नहीं छोड़ा, यही बात उन्हें बाकी शायरों से अलग खड़ा करती है .
प्रो. प्रणय कृष्ण ने फ़ैज़ की शायरी को मन्त्र की तरह बताया, क्योंकि इससे मानवता निकलती है. उनकी शायरी का कोई श्रोता निष्क्रिय नहीं हो सकता, इसलिए उनकी शायरी विलक्षण है. उनकी शायरी से शोकाकुल राष्ट्रवाद के स्वर उभर कर सामने आते हैं. वह हिन्दुस्तान को एक सभ्यता मानते थे, राष्ट्र नहीं | वे देश की आज़ादी के बाद पाकिस्तान में बस गए, लेकिन उनके बगावती तेवर बरक़रार रहे, जिसके चलते उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी और देश निकाला भी झेलना पड़ा .
उद्घाटनकर्ता प्रो. अली जावेद ने बताया कि फ़ैज़ को हिन्दुस्तान से बेपनाह मुहब्बत थी. जब गांधी जी कि हत्या हुई तब फैज़ गुपचुप तरीके से पकिस्तान से दिल्ली आए और उनकी अंत्येष्टि में शामिल हुए. संगोष्ठी का संचालन डॉ. नसरीन बेग़म और अमीर अहमद जाफरी ने किया तथा अध्यक्षता अरुण डंग ने की .
दूसरा सत्र गजलों के नाम रहा जिसमें लखनऊ से आए गज़लकार और गायक हरिओम अपनी जादुई आवाज़ से ‘ रंग पैराहन का खुशबू ज़ुल्फ़ बिखराने का नाम’, ‘तुम आए हो न शबे इंतजार गुजरी है ’, ‘ दिल में अब यूं तेरे भूले हुए ग़म आते हैं ’ जैसी मशहूर गजलों से श्रोताओं को फ़ैज़ की शायरी की दुनिया में ले गए.
फैज़ की बेटी ने दिया वीडिओ पर सन्देश
इस कार्यक्रम में लाहौर से फ़ैज़ अहमद फैज़ की बेटी सलीमा हाशमी को शामिल होना था, जो वीजा न मिल पाने के कारण नहीं आ सकीं | उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए एक वीडिओ सन्देश भेजा जिसे सभागार में दिखाया गया |
दरभंगा में जसम का ‘आज के नाम और आज के ग़म के नाम फ़ैज़ के पैगाम ’ का आयोजन
जश्न-ए-फैज़ कार्यक्रमों की श्रृंखला में एशिया के महान इंकलाबी शायर फैज़ अहमद फैज़ को जन संस्कृति मंच, दरभंगा की ओर से ‘आज के नाम और आज के ग़म के नाम फ़ैज़ के पैगाम ’ कार्यक्रम में याद किया गया.
कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने कहा कि फ़ैज़ मुक़म्मल हिन्दुस्तान के इंकलाबी शायर हैं. उनकी शायरी में हिन्दुस्तान के विभाजन एवं शोषित-पीड़ित, मजलूमों तथा बेकसों के दर्द की गहरी अभिव्यक्ति हुई है. उन्होंने तमाम भाषाई दीवारों को ढहाकर सर्वहारा की वास्तविक मुक्ति के लिए पूरी दुनिया में इंकलाब का आगाज़ किया. सामंतवाद, पूँजीवाद, साम्राज्यवाद और साम्प्रदायिक फासीवाद को ध्वस्त कर अमन तथा समतामूलक समाज के सपनों के शायर हैं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ .
डॉ. कल्याण भारती ने फ़ैज़ को याद करते हुए कहा कि आज का ग़म सिर्फ फैज़ के ज़माने का ग़म नहीं, बल्कि मौज़ूदा दौर में भी हिन्दुस्तान सहित पूरी दुनिया के शोषित-पीड़ितों का ग़म है जिसकी मुक्ति का पैगाम है फैज़ का जीवन संघर्ष और उनकी शायरी.
कार्यक्रम का संचालन जसम के जिला सचिव डॉ. राम बाबू आर्य ने तथा अध्यक्षता जसम जिलाध्यक्ष प्रो. अवधेश कुमार सिंह ने की. इस अवसर पर वैद्यनाथ यादव, रोहित कुमार, प्रभास कुमार, राकेश कुमार, राम बालक यादव, आर. एस. ठाकुर तथा धर्मेन्द्र यादव ने अपने विचार रखे . संस्कृतिकर्मी उमेश कुमार, अजय कुमार तथा भोला जी ने फ़ैज़ के कुछ महत्वपूर्ण तरानों एवं गीतों की प्रस्तुति दी |
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