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एसएससी परीक्षा स्कैम में सरकार किसको बचाना चाहती है ?

नई दिल्ली. हजारों छात्रों के छह दिन से धरना -प्रदर्शन के बावजूद एसएससी (स्टाफ सलेक्शन कमीशन) परीक्षा के पेपर लीक होने और भ्रष्टाचार के मामले की जांच कराने से बचने के केंद्र सरकार की कोशिश से यह सवाल उठने लगा है कि आखिर सरकार इस मामले में किसको बचाना चाहती है ?

छात्रों के आन्दोलन का आज छठा दिन था लेकिन सरकार की तरफ से  जाँच कराने का आश्वासन  नहीं दिया गया. छात्रों के बीच पहुंचे दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी और सांसद मीनाक्षी लेखी मौखिक रूप से यह तो कहते रहे कि सरकार इस मामले की जाँच करने जा रही है लेकिन जब छात्रों ने इसे लिखित रूप से देने को कहा तो वे निरुत्तर हो गए. यही नहीं, मीनाक्षी लेखी तो चिढ़ कर यह बोलीं कि आज रविवार के दिन कितना काम करवाओगे.

एसएससी सीजीएल (कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल) टियर 2 की 17 से 22 फ़रवरी 2018 तक चली परीक्षा में पेपर लीक और भ्रष्टाचार मामले के विरोध में हजारों छात्र-छात्राओं का एसएससी मुख्यालय पर रविवार को छठवें दिन भी प्रदर्शन जारी रहा. एसएससी  परीक्षा जब चल ही रही थी उसी समय परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के जवाब सोशल मीडिया पर आ गए जिसके कारण एसएससी को 17 तारीख़ को ही कुछ समय के लिए परीक्षाएं रोक देनी पड़ीं. इतना होने पर भी अभी तक न तो केंद्र सरकार द्वारा और न ही एसएससी अथॉरिटी द्वारा इस मामले में जाँच के कोई निर्देश दिए गए हैं.

एसएससी  की ज़्यादातर परीक्षाएँ सिफ़ी (Sify) सॉफ्टवेयर के द्वारा करवाई जाती हैं, जो परीक्षा के लिए लैब और सिस्टम देने वाला वेंडर (विक्रेता) भी है.

एसएससी अधिकारियों और सिफ़ी के अधिकारियों की मिलीभगत से इसकी परीक्षाओं में खुलेआम धाँधली, भ्रष्टाचार और पेपर लीक की घटनाएँ हो रही हैं। इन संस्थानों के अधिकारियों की सहायता से परीक्षाओं का रिमोट एक्सेस संभव हो जाता है। अर्थात कोई घर बैठे सवालों को देख सकता है और फिर उत्तरों पर निशान लगाकर उसे सबमिट कर सकता है। इस धाँधली में पूरा का पूरा विभाग शामिल है।

27 फरवरी को इन धांधलियों और छात्रों के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ हज़ारों की संख्या में छात्रों ने  सीजीओ कॉम्प्लेक्स (जेएनएल मेट्रो के पास) के बाहर परीक्षार्थियों के समर्थन में प्रदर्शन किया ।

दूसरी ओर एसएससी इस बात को स्वीकार न करके इसे सिर्फ तकनीकी गलती कह रहा है जबकि 17-22 फरवरी 2018 के बीच हुई इन परीक्षाओं के सवाल सार्वजनिक हैं। यह भी तब जबकि किसी को परीक्षा भवन में मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति नहीं होती है. इसके अलावा भी प्रश्नपत्र लीक होने के कई सुबूत छात्रों के पास हैं.

यह स्पष्ट है कि इस पूरे मामले में एसएससी अथॉरिटी और परीक्षा आयोजित कर रही एक निजी कंपनी के मध्य अपने निजी हितों को लेकर कोई सांठ-गाँठ हो चुकी है. एसएससी,  केंद्र सरकार के मातहत है, इसलिए ये सरकार कि ज़िम्मेदारी है कि वह इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करे पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार युवाओं को अपनी पारदर्शिता और सुशासन पर यकीन दिलाने के बजाए मौन साधे हुए है.

विरोध प्रदर्शन के चार दिन होने पर दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी प्रदर्शनकारियों से मिलने पहुँचे. एसएससी अथॉरिटी के भ्रष्टाचार के तमाम सबूतों के साथ परीक्षार्थी अपना ज्ञापन पहले ही सौंप चुके थे फिर भी वह कोई ठोस आश्वासन न दे सके. यह सवाल उठ रहा है कि यदि मनोज तिवारी वाकई छात्रों से हमदर्दी रखते हैं तो उन्हें कौन सी चीज़ रोक रही है कि वह छात्रों को कोई ठोस आश्वासन नहीं दे पा रहे हैं ?

हर साल दो करोड़ युवाओं को रोज़गार देने का दावा करने वाली मोदी सरकार नौकरियाँ देने के आपने वायदों में नाकाम होने पर  फिलवक्त स्व-रोज़गार के आकड़ों को गिनने-गिनाने में लगी हुई है. सरकारी विभागों में वर्षों से नौकरियों की प्रक्रिया रुकी हुई है. केंद्र सरकार के एक मंत्री ने स्वयं ही यह बात कही है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से केंद्र सरकार की नौकरियों में 89% की गिरावट दर्ज की गयी है. और जब भी कोई भर्ती प्रक्रिया शुरू होती भी है तो, इस तरह के भ्रष्टाचार का होना आम बात हो गयी है. अब तो एसएससी स्कैम की तुलना भाजपा शासित मध्यप्रदेश में हुए व्यापम घोटाले से की जाने लगी है.

छात्र संगठन आइसा समेत देश के तमाम छात्र नौजवान इस समय एक स्वर में यही मांग कर रहें हैं कि एसएससी स्कैम को उजागर करने के लिए सरकार को अविलम्ब एक उच्च स्तरीय जाँच कमिटी का गठन करना चाहिए. जब तक कि पेपर लीक और भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त लोगों को सज़ा न मिल जाये और एसएससी अधिकारियों और सिफ़ी की मिलीभगत की पोल न खुल जाये, भविष्य में इन परीक्षाओं की प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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