नई दिल्ली में ‘ देशप्रेम के मायने : संदर्भ आंबेडकर और भगत सिंह ’
नई दिल्ली. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहादत दिवस की पूर्व संध्या और डॉ. अम्बेडकर के महाड़ सत्याग्रह को याद करते हुए चार प्रमुख लेखक-संगठनों- जलेस, दलेस, प्रलेस और जसम ने मिलकर ‘ देशप्रेम के मायने : संदर्भ आंबेडकर और भगत सिंह ’ का आयोजन 22 मार्च को गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली में किया।
अध्यक्ष मंडल की तरफ से बोलते हुए चंचल चौहान ने कहा कि भगत सिंह और आंबेडकर जैसे आंदोलनकर्ता जिन दिनों भारत की राजनीतिक तथा सामाजिक स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहे थे उस समय हिन्दुत्ववादी नाज़ीवादी प्रशिक्षण ले रहे थे। इस हिंदुत्व का हिन्दू धर्म से भी कोई लेना देना नहीं है।
अली जावेद ने जनता की पीड़ा और गहराते संकट को समझने के लिए बाबा साहेब तथा भगत सिंह के विचारों और संघर्षों से जुड़ने की जरूरत बताई।
हीरालाल राजस्थानी ने समान सरोकारों वाले संगठनों के एकजुट रहकर मनुवादी ताकतों को शिकस्त देने का आह्वान किया।
प्रमुख वक्ताओं में रमणिका गुप्ता ने भगत सिंह के इंकलाबी जज्बे को नए सिरे से समझने पर बल दिया। उन्होंने आंबेडकर और भगत सिंह के विचारों को साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा हजम करने की कोशिशों से सावधान रहने की ज़रूरत बताई।
चमनलाल ने आंबेडकर और भगत सिंह के विचारों में समानता के बिन्दु रेखांकित किए।
अभय कुमार दुबे ने उस प्रक्रिया को समझना चाहा जिसके चलते राष्ट्रवाद ने देशभक्ति को कम्रशः हड़प लिया। उन्होंने हिन्दू बहुसंख्यकवाद के निर्माण पर भी रोशनी डाली।
सुबोध कुमार मालाकार ने जनविरोधी ताकतों द्वारा आंबेडकर, फुले, पेरियार और भगत सिंह के मध्य दरार डालने की कुचेष्टाओं को समय रहते समझने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि समकालीन वैश्विक बहसों से परिचित हुए बिना नई राह नहीं बनाई जा सकती।
आशुतोष कुमार ने जाति उन्मूलन के लिए वैज्ञानिक शिक्षा दिए जाने की अनिवार्यता रेखांकित की और कहा कि आज विश्वविद्यालयों को इसीलिए नष्ट किया जा रहा है जिससे वंचित वर्ग के लोग आगे न बढ़ पाएं। उन्होंने कहा कि वामपंथियों ने जाति व्यवस्था को आधार और अधिरचना की बहस से निकाल कर अच्छा किया है।
दिलीप कठेरिया ने भगतसिंह तथा आंबेडकर में संवाद के दस्तावेज़ साझा किए और कहा कि जाति प्रथा से उपजी गुलामी को राजनीतिक गुलामी से कम करके न आंकना भगत सिंह की दूरदृष्टि का सबूत है।
विचार गोष्ठी के आरंभ में केदारनाथ सिंह तथा सुशील सिद्धार्थ को श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन कर्मशील भारती ने किया। कार्यक्रम का संचालन बजरंग बिहारी तिवारी ने किया।