आगरा. सरदार भगत सिंह शहीद स्मारक समिति और राधामोहन गोकुल स्मारक समिति के तत्त्वाधान में चंद्रशेखर आजाद के 87वें शहीदी दिवस पर आज ‘क्रांतिकारियों की यादें’ विषयक संगोष्ठी तथा काव्य गोष्ठी आयोजित की गई .
संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए क्रांतिकारी साहित्य के विशेषज्ञ सुधीर विद्यार्थी ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद भारत के क्रांतिकारियों को संगठित करने वाले महान संगठन कर्ता थे. क्रांतिकारियों के बारे में यह दुष्प्रचार है कि वे हिंसा के समर्थक थे जबकि वे स्वाधीनता के समर्थक थे. आज पूरी दुनिया में जबकि नए किस्म की औपनिवेशिकता जबरन थोपी जा रही है हमारे क्रांतिकारियों की विरासत उसके खिलाफ संघर्ष की प्ररणा देती है. आजादी के बाद भी हिंदुस्तान में क्रांतिकारियों की पर्याप्त उपेक्षा हुई है. उनके सपनों का हिंदुस्तान बनना अभी बाकी है. इसकी जिम्मेदारी युवाओं को लेनी ही होगी.
संगोष्ठी में दिल्ली से आये वरिष्ठ ग़ज़लकार रामकुमार कृषक ने सुनाया कि- जो कुर्सियों के लोग उन्हीं का निज़ाम है/इस मुल्क की हालात पर मेरे दोस्त जरा सोच/जबसे हुआ आज़ाद तभी से गुलाम है.
संगोष्ठी को रेलवे सुरक्षा आयुक्त शादान ज़ैब खान ने भी संबोधित किया और आज़ाद को कमांडो की उपमा दी। उन्होंने कहा कि हमें जगह-जगह अपने क्रांतिकारियों के याद में मेले और सांस्कृतिक आयोजनों की बड़ी श्रृंखला खड़ी करनी चाहिए।
क्रांतिकारी साहित्य के अध्येता राजीव कुमार पाल ने अच्छे दिनों के बरक्स उजले दिनों की शिनाख्त करते हुए वीरेन डंगवाल की काव्य पंक्तियां सुनाई कि ‘मैं नहीं तसल्ली झूठ मूठ की देता हूँ/हर सपने के पीछे सच्चाई होती है/ हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है / हर दौर कभी तो खत्म हुआ ही करता है/आएंगे उजले दिन जरूर आएँगे.
कार्यक्रम की शुरुआत इप्टा के जनगीत से हुई । अंत में राजेंद्र मिलन ने काव्य पाठ किया. संगोष्ठी को मेरठ से आए वरिष्ठ साहित्यकार धर्मपाल आर्य ने भी संबोधित किया. अध्यक्षता रमेश चंद्र शर्मा ने की। अतिथियों का स्वागत राजवीर सिंह राठौर ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रकाशचंद्र अग्रवाल ने किया और संचालन डॉ. प्रेम शंकर सिंह ने किया. कार्यक्रम में रानी सरोज गौरिहार, शशि तिवारी, चौधरी बदन सिंह, अनुराग शुक्ला, विजय शर्मा, शशिकांत पांडे, उमाकांत चौबे सहित सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहे।
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