रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की याद में उनके गाँव अहिरी फीरोजपुर में बिरहा का आयोजन
10 मार्च, अहिरी फीरोजपुर, सुलतानपुर. रबी के मौसम के फसलों की रंगबिरंगी छटा और नर्म धूप के बीच रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ के गाँव की प्राथमिक पाठशाला में बिरहा आयोजन के लिए मंच तैयार था. जब हम वहाँ पहुंचे तो बिरहा गायन की टीम मंच पर अपने साज के साथ तैयार थी.
यह पूरा आयोजन डॉ. बृजेश यादव की अगुवाई में उनके साथियों के साथ किया जा रहा था. यह अपने तरह का अनूठा प्रयोग था, जिसमें लोक कलाओं को प्रगतिशील सन्दर्भों में गाँव के मजदूर, किसानों के बीच ले जाना था. इसकी तैयारी और प्रचार-प्रसार भी उसी पारम्परिक तरीके से की गई, जिसकी गाँव की जनता अभ्यस्त रही है. आस-पास के करीब दो दर्जन से अधिक गाँव-बाजारों में कार्यक्रम की सूचना संबंधी पोस्टर लगाए गए थे, रिक्शा भोंपू के माध्यम से भी कार्यक्रम की सूचना का प्रसार किया गया था. इस तरह तैयारियों में बृजेश और उनके साथी लगातार लगे रहे, जिसका परिणाम कार्यक्रम स्थल पर जनता के हुजूम के रूप में दिख रहा था.
सैकड़ों उत्सुक निगाहें मंच की ओर टकटकी बांधे सुर-साज से महफ़िल के आगाज़ के इंतजार में थीं. और आगाज़ किया विद्रोही जी के जे.एन.यू. के साथी डॉ. बृजेश यादव ने. डॉ. बृजेश ने विद्रोही को याद करते हुए बताया कि इस गाँव की धरती के लाल विद्रोही ने अपनी कविता, जनगीत और जनांदोलनों में सीधी भागीदारी से इस माटी का गौरव बढ़ाया. जिस विद्रोही को हमारे गाँव की जनता उनके जीवित रहते न पहचान पायी. वे हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की मेहनतकश जनता की आवाज़ बने. तैंतीस वर्ष जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में रहे और छात्रों, नौजवानों, श्रमशील, मेहनतकश, संघर्षशील जनता के संघर्षों के वे हमेशा सच्चे साथी रहे. यहाँ तक कि विद्रोही जी ने छात्रों के यू.जी.सी. के खिलाफ चल रहे ऐसे ही एक आन्दोलन में संघर्षरत आखिरी साँस ली.
विद्रोही जी के कविता संग्रह ‘ नई खेती’ का नया संस्करण डॉ. बृजेश के सम्पादन में नवारुण प्रकाशन से छप रहा है. बृजेश ने यह भी बताया कि इस किताब का लोकार्पण इसी कार्यक्रम में होना था, लेकिन फसलें पकने को हैं और किसानों के काम धाम में लग जाने को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम को और नहीं टाला जा सकता था. इस तरह के अगले आयोजन में यह किताब अवश्य उपलब्ध रहेगी.
और फिर शुरू हुआ प्रगतिशील चेतना संपन्न बिरहा और कविताओं का सफर: बृजेश ने माइक संभाला और टीम ने साज. नगाड़े की थाप पर शुरू हुआ बिरहा- ‘कब आएँगे आने वाले’, उहै चिरई दोखहिया मरकहिया’, ‘ कंकरिया जमीं, जनि जनिहा मनइया मजूर मांगत आ, कलजुगहा मजूर पूरी सीर मांगत आ ’ से होते हुए ‘बारा बलमू, बतिया बारा बलमू/झारा अन्हरा के औकतिया बतिया बारा बलमू’ तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर रहा था. बृजेश की ख़ास अदा और कहन से श्रोता जुड़ रहे थे और तालियों की खनक कही जा रही बात के सम्प्रेषण की गवाही दे रही थी.
उपस्थित जनसमूह को विद्रोही जी की कविताओं धरम, नई खेती, दुनिया मेरी भैंस, मोहनजोदड़ो, आदि की रेकॉर्डिंग भी सुनाई गई.
उ.प्र. किसान सभा के कोषाध्यक्ष कॉ. बाबूराम यादव ने उन दिनों को याद किया जब वे और विद्रोही जी सहपाठी थे. उन्होंने बताया कि विद्रोही जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे और दोस्तों के साथ समसामयिक विषयों पर लंबे-लंबे निबंध लिखने की प्रतियोगिता करते थे. कॉ. बाबूराम ने कहा कि देश की वर्तमान परिस्थितियों में जब तानाशाही ताकतें धार्मिक उन्माद, अफवाह और साम्प्रदायिकता को हथियार बना सत्ता पर काबिज हो गई हैं, विद्रोही का संघर्ष और उसकी विरासत और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. ऐसे में इस तरह के कार्यक्रमों की सबसे अधिक आवश्यकता किसानों-मजदूरों के बीच ही है.
सभा को संबोधित करते हुए कॉ. सत्यराम यादव ने विद्रोही जी की प्रगतिशील चेतना और जुझारू स्वभाव को याद किया. डॉ. बृजेश ने बताया कि आगामी वर्षों में इस कार्यक्रम को विस्तार दिया जाएगा तथा विद्रोही जी की याद में तीन दिन के लोक महोत्सव का आयोजन किया जाएगा.