〈 तादयूश रुज़ेविच (9 अक्टूबर 1921-24 अप्रैल 2014) पोलैंड के कवि, नाटककार और अनुवादक थे। उनकी कविताओं के बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। उनका शुमार दुनिया के सबसे बहुमुखी और सर्जनात्मक कवियों में किया जाता है। नोबेल पुरस्कार के लिए कई बार उन्हें नामित किया गया। सन 2000 में उनकी किताब ‘मदर इज लीविंग’ के लिए उन्हें पोलैंड का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘नाईक पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
रुज़ेविच की कविताओं में द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका साफ़ दिखाई देती है और उसे व्यक्त करते समय कवियों की असहाय स्थिति भी साफ देखी जा सकती है। उनकी कविताओं में एक पीड़ा एक शोक गहराई तक समाया रहता है और इसी के चलते 1966 में उन्होंने यह घोषणा की कि कविता लिखने का सारा प्रयोजन मर चुका है और उनके खुद के साहित्यक प्रयास इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसके पुनर्जीवित होने के लिए उनका मानना था कि इसका मरना जरूरी था। दुनिया में हो रही हिंसा को देखते हुए उन्होंने महसूस किया कि कविताओं को भी कागज पर आकर मर जाना चाहिए।
उनकी तमाम कविताओं में ऐसा होता हुआ दिखता है। यहाँ जिन कविताओं को मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ उनमें पहली कविता ‘सूअर की पूँछ’ पढ़ने के बाद ही आपको महसूस होगा कि दुनिया को बचाने के लिए कविता कितना छोटा और नाकाफ़ी प्रयास है। उन घटनाओं से गुजरना उन सच्चाइयों को स्वीकार करना भी मानवीय सभ्यता के लिए किसी शर्म से कम नहीं। ये घटनाएँ हुईं और आज भी जारी हैं यह कविता की ज़रूरत पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देता है। हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा। साम्राज्यवाद और सैन्यीकरण ने अपने लालच के लिए पूरी दुनिया को लूट कर खोखला कर दिया है। इसके बावजूद कवि हताश नहीं होता सपने देखना नहीं छोड़ता बल्कि नए कवियों को सपने देखने और उन्हें लिखने के लिए प्रेरित करता है।
उम्मीद है कि कविताएँ आपको पसंद आएंगी और इनका नयापन आपको ज़रूर चौंकाएगा।- संजीव कौशल 〉
तादयूश रुज़ेविच की कविताएँ-
- सूअर की पूँछ
ट्रांसपोर्ट में आई सभी औरतों के सर
जब मूंड़ दिए गए
तब चार काम वालों ने भुर्ज की टहनियों से बनी झाड़ुओं से बालों को झाड़ कर इकट्ठा कर दिया
गैस चैंबरों में जिनका दम घोंट दिया गया
साफ़ -सुथरे शीशे के पीछे
उनके बाल अकड़े पड़े हैं
इन बालों में पिन और कंघी लगे हैं
इन बालों में कोई रोशनी नहीं दमकती
न हीं हवा खेलती है इनके साथ
न कोई हाथ इन्हें छूता है
न हीं बारिश न हीं होंठ
जिनका दम घोंट दिया गया
उनके सूखे बालों के बादल
भरे हैं बड़े-बड़े संदूकों में
और एक मुरझाई लट भी है
एक रिबन बंधी चुटिया भी
जिसे शैतान लड़के
स्कूल में खींचा करते थे
- अखरोट का पेड़
सबसे दुखद है
पतझड़ की सुबह घर छोड़ना
जब जल्दी वापसी की कोई उम्मीद न हो
अखरोट का पेड़ जिसे पिता ने
घर के सामने लगाया था
हमारी आँखों में बढ़ता है
मां नन्ही मुन्नी सी है
जिसे अपनी बाँहों में बिठा घूम सकते हैं
अलमारी पर रखे
अचारों से भरे मर्तबान
मीठे होठों वाली देवियों से हैं
जिनके शाश्वत यौवन की महक
अभी भी ताज़ा है
दराज़ के पीछे खड़े सैनिक
दुनिया के अंत तक ऐसे ही खड़े रहेंगे
जबकि सर्वशक्तिमान भगवान
जिन्होंने मिठास में कड़वाहट घोली
दीवार पर असहाय लटके हैं
और बुरी तरह पुते हुए हैं
बचपन
सोने के किसी सिक्के के घिसे हुए चेहरे की तरह है
जिसकी खनक सच्ची है
- बहुत से कामों में उलझा हुआ
मैं इतने ज़रूरी कामों में उलझा था
कि भूल ही गया
कि हमें
मरना भी है
लापरवाह
मैं लगातार उस फर्ज़ को नजरअंदाज करता रहा
या किया भी तो
लापरवाही से
मगर कल से
सब बदल जाएगा
मैं मरना शुरू करूंगा
बारीकी से
समझदारी से उम्मीद से
बिना कोई वक्त गँवाएँ
- बगैर
आदमी के जीवन में
सबसे बड़ी घटनाएँ हैं
भगवान का जन्म और मृत्यु
पिता हमारे परम पिता
क्यों
किसी बुरे पिता की तरह
रात में किसी चोर की तरह
बिना किसी निशान किसी सुराग
किसी शब्द के बिना
क्यों छोड़ दिया तुमने मुझे
क्यों छोड़ दिया मैंने तुम्हें
जीवन संभव है भगवान के बगैर
जीवन असंभव है भगवान के बगैर
बचपन में तुम ही थे
मेरा भोजन
मैंने मांस खाया
खून पिया
शायद तुमने मुझे त्याग दिया
जब मैंने कोशिश की
अपनी बाँहें खोलने की
जिंदगी को गले लगाने की
मैं कितना लापरवाह था
मैंने बाँहें फैलायीं
और तुम्हें जाने दिया
शायद तुम भाग गए
सह नहीं सके
मेरी हँसी
तुम तो हँसते ही नहीं हो
या शायद तुमने मुझे दंड दिया
थोड़ा मेरी ज़िद के लिए
थोड़ा हेकड़ी के लिए
और थोड़ा मेरी कोशिश के लिए
एक नए आदमी
नई कविता
नई भाषा बनाने की कोशिश के लिए
तुम छोड़ गए मुझे
बिना कोई पंख फड़फड़ाए
बिना कोई बिजली चमकाए
खेत के चूहे की तरह
रेत में बहे पानी की तरह
मैं व्यस्त था
नहीं देख पाया तुम्हारा भागना
तुम्हारी गैरहाज़िरी
अपनी ज़िन्दगी में
जीवन संभव है भगवान के बग़ैर
जीवन असंभव है भगवान के बग़ैर
- घास
मैं उगती हूँ
दीवारों के संबंधों में
जहाँ वे
जोड़ी जाती हैं
वहाँ जहाँ वे मिलती हैं
वहाँ जहाँ शुरू होते हैं मेहराब
वही बेध देती हूँ मैं
एक बेपरवाह बीज
हवा का बिखेरा हुआ
मैं इत्मिनान से फैलती हूँ
खामोशी की दरारों में
मैं करती हूँ इंतजार
दीवारों के गिरने का
और जमीन पर वापस लौटने का
मैं ढक लूंगी तब
नामों और चेहरों को
- पुनर्शिक्षा
एक ही भाषा
बोलता है कवि
बच्चे से
क्रांतिकारी से
पुजारी से
राजनीतिज्ञ से
पुलिस वाले से
बच्चा मुस्कुराता है
क्रांतिकारी उसे अपना उपहास समझता है
राजनीतिज्ञ अपमान
पुजारी धमकी
पुलिसवाला
(अपने कोट के बटन बंद कर लेता है)
मारने को तैयार हो जाता है
परेशान कवि
माफी मांगता है
और
अपनी गलती
दोहराता है।
- एक आवाज़
वे एक दूसरे को विकृत करते हैं
यातना देते हैं
खामोशियों से शब्दों से
जैसे उनके पास
एक दूसरा जीवन हो जीने के लिए
वे ऐसा इसलिए करते हैं
मानो वे यह भूल गए हों
कि उनके शरीर मृत्यु के इच्छुक हैं
कि औरतों आदमियों के भीतर जो भी है
आसानी से टूट जाता है
एक दूसरे के प्रति निष्ठुर
वे पौधों और जानवरों से भी
कमजोर हैं
उन्हें एक शब्द
एक मुस्कान
एक झलक
मार सकती है।
- वापसी
खिड़की अचानक खुलेगी
और माँ पुकारेगी
अंदर आ जाओ वक्त हो गया
दीवार टूटेगी
और मैं कीचड़ के जूते पहने स्वर्ग में दाखिल हो जाऊंगा
मैं मेज के पास आऊंगा
और अभद्रता से सवालों के जवाब दूंगा
मैं ठीक मुझे अकेला छोड़ दो
सर हाथ में लिए
मैं देर तक बैठा रहूंगा
आखिर मैं उन्हें
उस लंबे और पेचीदा रास्ते के बारे में
कैसे बता सकता हूँ
यहाँ स्वर्ग में माँएं
हरे स्कार्फ बुनती रहती हैं
मक्खियाँ भिनभिनाती हैं
पिता छह दिन की मेहनत के बाद
चूल्हे के पास ऊँघते रहते हैं
नहीं– मैं उन्हें कतई नहीं बता सकता
कि लोग एक दूसरे के
खून के प्यासे हैं।
- ज़िंदा बचा हुआ
मैं चौबीस साल का हूँ
मुझे कटने ले जाया गया
मैं बच गया
निम्नलिखित थोथे विलोम हैं:
आदमी और जानवर
प्यार और नफरत
दोस्त और दुश्मन
अंधेरा और उजाला
इंसानों और जानवरों के मारने का तरीका एक सा है
मैंने देखा है इसे
कटे हुए इंसानों से भरे ट्रक
जिन्हें बचाया नहीं जा सकेगा
विचार झूठे शब्द हैं:
सद्गुण और अपराध
सच और झूठ
सुंदरता और कुरूपता
हौसला और बुजदिली
सद्गुण और अपराध का वजन एक सा है
मैंने देखा है इसे:
एक आदमी जो
अपराधी और गुणी दोनों था
मुझे एक शिक्षक और एक गुरु की तलाश है
शायद वह मेरे देखने सुनने और बोलने की ताकत वापस दे दे
शायद वह चीजों और विचारों के दोबारा नाम रख दे
शायद वह अंधेरे को उजाले से अलग कर दे
मैं चौबीस साल का हूँ
मुझे कटने ले जाया गया
मैं जिंदा बच गया
- शुद्धिकरण
आँसुओं पर शर्मिंदा न हो
युवा कवियों आँसुओं पर शर्मिंदा न हो।
हैरत करो चांद पर
चांदनी रात पर
हैरत करो असली प्यार पर और बुलबुल के गीत पर।
स्वर्ग में जाने से न घबराओ
तारों तक पहुँचों
आँखों का तारों से मुकाबला करो।
प्रेरणा लो वसंती गुलाब से
नारंगी तितली से
उगते और डूबते सूरज से।
सीधे-साधे कबूतरों को दाना दो
कुत्तों इंजनों फूलों और गेंडों को
मुस्कुराकर देखो।
आदर्शों की बातें करो
नवयुवक को कविता सुनाओ
गुजरते अजनबी पर भरोसा करो।
भोले भाले तुम सौंदर्य में विश्वास करने लगोगे
द्रवित तुम आदमी में विश्वास करने लगोगे।
आँसुओं पर शर्मिंदा ना हो
युवा कवियों आँसुओं पर शर्मिंदा ना हो।
(कवि तादयूश रुज़ेविच यूरोप के महान कवियों में से हैं। उनकी गिनती शिम्बोर्स्का, चेस्लाव मिलोस्ज़ और जिबिग्न्यु हर्बर्ट के साथ की जाती है। सत्ताकेंद्रित राजनीति मे मौजूद किसी भी तरह की हिंसा को उन्होंने कभी भी स्वीकृति नहीं दी। उनके भाई की हत्या गेस्टापो ने कर दी थी। दूसरे विश्वयुद्ध के परिणामों को वे कभी सह नहीं पाए। नाज़ीवाद ने जब आश्वित्ज़ मे बर्बर जन-संहार किया तब सारी दुनिया में यह प्रश्न पूछा जाने लगा था कि क्या अब भी कविता लिखी जा सकती हैं? पोलिश कविता के नए रूप के आविष्कार के साथ रोज़विच ने कविता को संभव बनाया। कविता और नाटक दोनो विधाओं में उन्होंने पोलिश साहित्य में ऐतिहासिक फेरबदल किया है। अनुवादक संजीव कौशल समकालीन कविता का जाना माना हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं.)
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