पटना. महिलाओं पर बढ़ती हिंसा और सरकारी संरक्षण में रहने वाली लड़कियों के साथ बिहार के अनेक हिस्सों में बलात्कार की घटनाओं पर मुख्यमंत्री की चुप्पी के विरोध में 20 जुलाई को कई महिला संगठनों ने मिलकर काला दिवस मनाया और मुख्यमंत्री के समक्ष प्रदर्शन किया.
डाक बंगला चौराहे पर पहुंच कर मार्च एक सभा में तब्दील हो गया, जिसे अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की महासचिव मीना तिवारी, ऐपवा राज्य सचिव शशि यादव, सरोज चौबे , बिहार महिला समाज की सुशीला सहाय, निवेदिता और पल्लवी, नारी गुंजन की सुधा वर्गीज़, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की रामपरी, अनिता होड़, नीलम देवी, बिहार विमेंस नेटवर्क की नीलू, उर्मिला कर्ण, साझा मंच की सुष्मिता, अखिल भारतीय महिला सांस्कृतिक संगठन की साधना मिश्रा, अनामिका, डब्ल्यूएसएस की पूजा, बिहार मुस्लिम महिला मंच की अख्तरी बेगम, बेटी जिंदाबाद की शाहिदा बारी, नुजहत, लोक परिषद की इबराना और सना ने संबोधित किया.
सभा को संबोधित करते हुए महिला नेताओं ने कहा कि सरकारी संरक्षण में रहनेवाली लड़कियों को भोग की वस्तु समझकर उन पर बलात्कार और यौन हिंसा होगी, तो सार्वजनिक जगहों पर -सड़क पर, घर में महिलाओं पर होनेवाली हिंसा कैसे रुकेगी ? महिला नेताओं ने यह भी कहा कि बड़े अपराधियों को बचाने का काम करके अन्य अपराधियों को संकेत दिया जा रहा है कि महिलाओं पर अत्याचार करनेवालों को डरने की जरूरत नहीं है; क्योंकि सरकार अपराधिक व पितृसत्तात्मक सोच की रखवाली में मुस्तैद है .
महिला नेताओं ने कहा कि टीआईएसएस की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए और मुजफ्फरपुर समेत पूरे बिहार स्थित बाल गृहों व आश्रय गृहों की जांच हाइकोर्ट के न्यायाधीश की देख-रेख में की जाए. अखबारी सूचना के अनुसार इस कांड की जांच सीआईडी विभाग कर रहा है. सीआईडी विभाग की भूमिका स्कूल के भीतर मार डाली गई डीका के केस में पिछले वर्ष से ही हमलोग देख रहे हैं कि वह अपराधियों को बचाने का काम करती है. इसलिए तत्काल उसे जांच से मुक्त किया जाए. मुजफ्फरपुर बालिका गृह में रहने वाली लड़कियों को उनकी इच्छानुसार एक केंद्र में रखा जाए. वहां दौरा करने वालों की वीडियो रिकाॅर्डिंग की जाए और उन्हें मानसिक आघात से उबरने के लिए विशेषज्ञ मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिकों की सहायता प्रदान की जाए.
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