आरा। जनमित्र कार्यालय, पकड़ी में जन संस्कृति मंच की ओर से तीन नवंबर को जनगीतकार और कथाकार विजेंद्र अनिल के सत्रहवें स्मृति दिवस पर उनके साहित्यिक- वैचारिक योगदान को याद किया गया।
विजेंद्र अनिल की तस्वीर पर माल्यार्पण से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस मौके पर विजेंद्र अनिल के पुत्र सुनील श्रीवास्तव ने बताया कि अभी भी उनकी कई पुस्तकें अप्रकाशित हैं, जिनकी पांडुलिपि उन्हें मिली है। उन्होंने लगभग 60 कहानियाँ हिन्दी में और 30 कहानियाँ भोजपुरी में लिखीं। उनके लगभग 4 दर्जन आलोचनात्मक निबंध भी हैं, जिनके पुस्तकाकार प्रकाशन की योजना है।
उन्होंने 1965-67 में लिखे गये एक गीत-संग्रह ‘अंजुरी भर बात’ की पांडुलिपि से दो गीत भी सुनाए, जिसमें यह संकल्प व्यक्त हुआ था- ‘लालटेन की बाती बनकर मुझे रात भर जलना होगा।” सुनील श्रीवास्तव ने उनकी 400 कविताओं की जानकारी दी, जिनमें 200 कविताएँ अप्रकाशित हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें प्रायः रात को ही लिख पाने का समय मिल पाता था।
अध्यक्षता करते हुए जनवादी लेखक संघ बिहार के अध्यक्ष कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि विजेंद्र अनिल अपने समय में एक आइकन और स्टार की तरह थे। उन्होंने उनकी कहानी ‘दूसरा आदम’ की अपने एक लेख में चर्चा की थी। उस पीढ़ी ने ऐसे समाज का सपना देखा था, जहां जाति, लिंग और संप्रदाय के आधार पर भेदभाव न हो। राजनीतिक घटनाओं के साथ उनकी सामंतवादविरोधी- साम्राज्यवादविरोधी चेतना के विकास में साहित्य की अहम भूमिका थी।
जन संस्कृति मंच, बिहार के अध्यक्ष कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि विजेंद्र अनिल की वैचारिक संवेदना और यथार्थबोध पर गहराई से विचार करना चाहिए। इसी ने उन्हें जनता का लेखक बनाया। 70 के दशक की परिस्थितियों ने भी विजेंद्र अनिल सरीखे रचनाकारों को निर्मित किया।
कवि सिद्धार्थ वल्लम ने कहा कि किसी स्चनाकार का अपने पूर्ववर्ती साहित्यकारों की परंपरा से कैसा रिश्ता है, इस पर सोचना चाहिए। लालटेन की बाती बनकर जलने का संकल्प यूं ही पैदा नहीं होता।
सुधीर सुमन ने कहा कि सबसे वंचित-दलित और मेहनतकश जनता की परिवर्तनकारी क्रांतिकारी ताकत में यकीन का नाम है विजेंद्र अनिल। उन्होंने जनवादी समाज और जनता के राष्ट्र निर्माण के लिए लिखा। जनांदोलनों में आज भी उनके गीत गाए जाते हैं।
विजय मेहता ने कहा कि उनका गाँव विजेंद्र अनिल के गाँव के पास ही है। उन्होंने गरीब मेहनतकश जनता के संघर्ष को प्रत्यक्ष महसूस किया है। विजेंद्र अनिल की रचनाओं में वही संघर्ष मूर्त हुआ है।
संचालन सुमन कुमार सिंह ने किया। उन्होंने विजेंद्र अनिल रचित ‘ लिखने वालों को मेरा सलाम, पढ़ने वालो को मेरा सलाम’ और ‘ केकरा से करी अरजिया’ गीत को गाकर सुनाया।
इस मौके पर जनवादी कहानीकार और संपादक विजयकांत और जनलेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव महेंद्र नारायण पंकज को एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी।
कार्यक्रम में सुनील कुमार चौधरी, किशोर कुमार, संजय कुमार, विक्रांत, मधु कुमारी, शिखा रानी आदि मौजूद थे।