वरिष्ठ समाजकर्मी, नागरिक समाज के संस्थापक सदस्य तथा पीयूसीएल के पूर्व उत्तर प्रदेश महासचिव ओमदत्त सिंह जो अपने सभी जानने वालों में ओ डी भाई के नाम से चर्चित थे, के निधन(24 दिसंबर 2023) पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा आज 29 दिसम्बर 2023 को नागरिक समाज, पीयूसीएल तथा स्वराज विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में स्वराज विद्यापीठ में संपन्न हुई।
इस श्रद्धांजलि सभा में शहर के समाजकर्मी तथा बुद्धिजिवियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया गया तथा ओ डी भाई के जीवन के विविध पहलुओं और संस्मरणों से लोगों ने उनको याद किया
सभा की शुरुआत करते हुए दिवंगत ओ डी सिंह के कॉलेज आईईआरटी के प्रोफेसर आरपी सिंह ने कहा कि वह कॉलेज में अगर नहीं पढ़ा रहे होते थे, तब लाइब्रेरी में रहते थे। उन्होंने जिन लोगों को इनपुट दिया वह आज समाज में काफी आगे हैं।
पीयूसीएल के पूर्व उत्तर प्रदेश सचिव उत्पला शुक्ला ने कहा कि पीयूसीएल की तकनीकी जानकारी समेत समस्त जानकारी मुझे ओ डी सिंह जी से ही मिली। वह हमेशा टू द पॉइंट बात करते थे। पीयूसीएल से उनका कंसर्न सांस लेने से ज्यादा था। उनसे मुझे कई तरीके की लिखित जानकारी मिली, लेकिन वह कभी अपने पास पेन कॉपी आदि नहीं रखते थे।
समाजकर्मी कवि अंशु मालवीय ने कहा कि ओडी भाई अंधेरे वक्त में चले गए। हो सकता है हम लोगों का नंबर भी उसी तरह आये। मेरा एक उधार चुकाए बिना चले गए और उसके लिए उन्होंने एक रोचक प्रसंग बताया। उन्होंने कहा कि विकास के वैकल्पित मॉडल, जिसमें पर्यावरण भी था, वह बहुत सारा काम करना चाहते थे, हालांकि वह काम पूरी तरह कभी शुरू नहीं हो पाया। उन्होंने विकास के पर्यावरण केंद्रित मॉडल को आगे बढ़ाने की बात कही।
समाजकर्मी राम धीरज जी ने कहा कि छोटी-छोटी चीजों पर वह बारीकी से ध्यान देते थे। बीमारी के दौर में भी उनके अंदर उतना ही उत्साह था। मिलने पर वह अपनी बीमारी के बारे में कम चर्चा कर समाज परिवर्तन की ही चर्चा करते थे।
आजादी बचाओ आंदोलन के संतोष मिश्रा ने कहा कि उनसे मेरा जुड़ाव 1988 में हुआ था। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। शिक्षक, समाज कर्मी और कार्यकर्ता के रूप में उनका समाज में जबरदस्त योगदान था। उन्होंने सभी विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व किया।
पीयूसीएल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एडवोकेट रविकिरन जैन ने कहा कि ओ डी भाई गांधीवादी थे। साइंटिफिक टेंपर के आदमी थे। मेजा तथा करछना एनटीपीसी के आंदोलन में उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कनहर डैम बांध के खिलाफ वह काफी सक्रिय थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में उस डैम के खिलाफ उन्होंने एक petition दायर की थी। वह सादा जीवन बिताने में यकीन करते थे।
आनंद मालवीय ने कहा कि 23-24 दिसंबर को कुछ ऐसा हुआ, जैसे परिवार में एक उत्सव हो रहा है और अचानक परिवार का एक बुजुर्ग आदमी चला गया। 24 तारीख को लोहिया विचार मंच और नागरिक समाज के द्वारा समता समागम चल रहा था और अचानक यह दुखद समाचार आया कि ओ डी भाई नहीं रहे। उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता की ट्रेनिंग मुझे उन्होंने ही दी। पर्यावरण को लेकर वह काफी व्यथित थे। उनका यह विचार मुझसे काफी मेल खाता था। मुझे पीयूसीएल में लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। पीयूसीएल में पर्यावरण विंग बनाने का काम उन्होंने हीं किया।
असरार अहमद नियाजी ने कहा कि उन्हें समाजवादी, गांधीवादी व वामपंथी सब कुछ बताना उनके बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है। उन्होंने एक प्रसंग के जरिए बताया कि किस तरह ओ डी भाई जैसे सामाजिक कार्यकर्ता किसी भी धार्मिक-आध्यात्मिक कार्यक्रम में भी हमारे साथ चलने को तैयार हो जाते थे। ऐसे मानवतावादी का जाना पूरे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।
दिशा छात्र संगठन के कामरेड अविनाश ने कहा कि अपने शोध को छोड़कर राजनीतिक सक्रियता में जुड़ने के लिए मैंने ओ डी भाई जी से ही राय ली। उन्होंने कहा कि इसके लिए ओ डी भाई ने ही मुझे इस बात के लिए प्रेरित किया कि सामाजिक सक्रियता के लिए एक भी दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए। उनकी यह बात सुनकर मैंने अपनी पीएचडी छोड़ दी। वह एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो शिक्षक के रूप में भी उतनी ही विशेषज्ञता हासिल कर ली थी, जितकी पकड़ राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्र में उनकी थी। मेरे विवाह में भी वह एक अभिभावक के तौर पर खड़े रहे। उनका जाना एक सूनापन छोड़ गया है।
अधिवक्ता मंच के राजवेंद्र सिंह ने कहा कि उनसे हमारी मुलाकात करछना में AIDSO कार्यकर्ता के रूप में हुई थी। अधिवक्ता मंच की स्थापना के समय वह काफी खुश थे। करछना की तोड़फोड़ की घटनाओं के बाद फैक्ट फाइंडिंग में उन्होंने मुझे भी शामिल किया था। बोले गए विचार को अपने जीवन में कैसे अमल में लाया जाए, इसे हम ओ डी भाई से सीख सकते हैं।
पीयूसीएल के सूबेदार सिंह ने ओ डी भाई के किए गए बालू आंदोलन के काम को लेकर याद किया। उन्होंने कहा कि यमुना पार के आंदोलन के कार्यकर्ताओं में ओडी सिंह ने मुझे जबर्दस्त प्रभावित किया। उनकी ओ डी सिंह से ओडी भाई बनने की कहानी काफी प्रेरणादायक है।
नागरिक समाज के संयोजक श्री विनोद कुमार तिवारी ने एक प्रसंग को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी कि किस तरह तबीयत खराब होने के बावजूद वह कार्यक्रम में उपस्थित रहने का हर संभव प्रयास करते थे। उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया की ओ डी भाई जैसे वरिष्ठ साथी अंतिम यात्रा पर जा रहे हैं लेकिन नई कतार के लोगों का आना कम हो रहा है। उन्होंने उनके बताए हुए रास्तों पर चलना तथा उनसे प्रेरणा लेने की बात की।
कामरेड हरिश्चंद्र द्विवेदी ने कहा कि उन्हें मैं 70 के दशक से तब से जानता हूं जब वह इलाहाबाद स्थित हनुमानगंज स्थित कालोनी में रहते थे। हालांकि उसके बाद स्वराज विद्यापीठ में आने जाने के दौरान मेरी उनसे लगातार प्रगाढ़ता बढ़ती गई। वह एक प्रतिबद्ध आंदोलनकारी थे और जनवा आंदोलन में हम लोगों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर काम किया।
आंदोलनकारी भीम लाल जी ने कहा कि गांव में जब ओ डी भाई के निधन की खबर पहुंची, तो साथी व्यथित हो गए। आज भी यमुना पार स्थित आंदोलन में उन्होंने जिस तरह काम किया, लोग उन्हें याद करते हैं। ओ डी भाई के लगातार गांव आने से एक उम्मीद रहती थी।
समकालीन जनमत के संपादक के के पांडे कहा कि मैं उन्हें 80 के दशक से जानता था और मुझे गर्व है की ओ डी भाई हमारी पार्टी की विचारधारा से निकले इलाहाबाद के और समाज के सर्वोत्तम लोगों में थे। जब भाकपा माले ने खुली राजनीति के तहत आईपीएफ के गठन की प्रक्रिया शुरू की , तब समूचे उत्तर प्रदेश से साथी ओ डी सिंह जी भी उसके आयोजकों और राष्ट्रीय कमेटी में थे। उन्होंने उनके संगठन में रहते हुए विभिन्न कार्यों के कई रोचक प्रसंग बताएं। उन्होंने एनआरसी, जनवा तथा मेजा करछना में एनटीपीसी की आंदोलन तथा उसमें कुछ लोगों द्वारा सत्ता के साथ मिलीभगत के बाद उपजे हालत पर ओ डी सिंह सिंह की आंदोलन को आगे बढ़ाने की भूमिका की बात की। उन्होंने कहा कि अपनी वैचारिक जमीन पर खड़े रहकर विभिन्न विचारधाराओं को साथ लेकर चलना ओ डी भाई से सीखा जा सकता है। वह सभी के अपने थे। जन संगठन के साथ कितने तरह के रिश्ते हो सकते हैं, वह ओ डी भाई से सीखा जा सकता है। जिस दौर में सारे साथी चुप हो जाते हैं, वहां भी ओ डी भाई मुखर रहते थे। इस प्रसंग में उन्होंने सीमा आजाद-विश्व विजय की गिरफ्तारी और विनायक सेन की बात की। अंत में उन्होंने कहा कि पर्यावरण, विकास के विनाशकारी और नागरिक अधिकारों की जो उनकी चिंता थी, हमारी कोशिश होनी चाहिए कि पूरी सक्रियता से मिलकर उन समस्याओं का हल ढूंढा जाय। विभिन्न संघर्षों को एकजुट किया जाए।
डॉ आशीष मित्तल ने कहा कि आज उन्हें हम गर्व से याद कर सकते हैं। वह किस वाद के थे, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ न्यायपूर्ण शासन की उनकी चाहत पर हम आज विचार करें। उन्होंने कहा हमारा उनसे परिचय पत्रिका देने के दौरान हुआ। वह किसी भी आंदोलन के समर्थक न होकर उनका हिस्सा बनना चाहते थे। मेजा तथा करछना एनटीपीसी प्लांट के खिलाफ नींव रखने में उन्होंने ही स्वराज विद्यापीठ की मीटिंग में शुरूआत किया था। वह जनता के हर सवाल पर तत्पर रहते थे। पीयूसीएल की विभिन्न फैक्ट फाइंडिंग में टीम बनाने की उनकी भूमिका रही। नागरिक समाज को सक्रिय करने में उनकी भूमिका रही तथा हमेशा से उन्होंने उनकी मुख्य भूमिका निभाई। संगठन कर्ता के निर्माण में उनकी क्षमता अद्भुत थी।
अंत में स्वराज विद्यापीठ के कुलगुरु प्रोफेसर आरसी त्रिपाठी ने कहा कि ओ डी भाई जी से हमें एक महत्वपूर्ण सीख मिलती है। उन्होंने कहा कि पूर्व वक्ताओं ने जिस प्रकार कहा कि वह गांधीवादी, मार्क्सवादी और समाजवादी थे, बेहतर होगा कि हमें यह बात निकाल देना चाहिए कि वह कोई वादी थे। हमें लकीर खींचने से आगे जाना होगा। किसी भी कमजोर को देखकर उसकी मदद करना, यही ओ डी भाई जी की भूमिका थी। वह महा मानवतावादी थे। उनका कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं थे। उनसे यही सीख लेनी चाहिए कि दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर उसे दूर करें। अगर हम इसे आंदोलन के माध्यम से कर सकते हैं तो अवश्य करना चाहिए।
इस श्रद्धांजलि सभा का संचालन श्री अविनाश मिश्रा ने किया।
अपनी बात कहने वाले उपरोक्त वक्ताओं के अलावा इस श्रद्धांजलि सभा में सुरेंद्र राही, सुमन शर्मा, गायत्री गांगुली, प्रो, विवेक तिवारी, शहनाज, विश्वविजय जी, भीमलाल, अखिल विकल्प, विनोद सैलानी, सत्येंद्र सिंह, सुनील मौर्य, दिनेश यादव, सतपाल सिंह, पवन यादव , सुरेश चंद्र, विश्वेश राजारत्नम, शितांशु भूषण, मयंक श्रीवास्तव तथा मनीष सिन्हा सहित अन्य साथी उपस्थित थे।
(मनीष सिन्हा, सचिव पीयूसीएल, इलाहाबाद)