यह 1998 का साल था. उस साल उच्चतम न्यायालय ने 02 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड आंदोलन के दौरान गठित मुजफ्फरनगर कांड के संदर्भ में 1996 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले को खारिज कर दिया था.मुजफ्फरनगर कांड के मुख्य अभियुक्तों में से एक अनंत कुमार सिंह ने उच्चतम न्यायालय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी और उच्चतम न्यायालय ने उनके हक में फैसला दिया.
इस फैसले को लेकर उत्तराखंड में काफी गुस्सा था. इसी फैसले की प्रतियाँ ले कर दिल्ली के कुछ युवाओं के साथ त्रेपन चौहान, श्रीनगर(गढ़वाल) आए. त्रेपन भाई आइसा के नेताओं कॉमरेड योगेश पांडेय, कॉमरेड कैलाश पांडेय, कॉमरेड अतुल सती आदि से मिले और उन्होंने प्रस्ताव रखा कि मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को बरी करने के फैसले की प्रतियां जलायी जानी चाहिए. वे इस फैसले से इस कदर उद्वेलित थे कि उत्तराखंड में सब जगह घूम-घूम कर आंदोलनकारियों से इस फैसले की प्रतियां जलाने को कह रहे थे. लेकिन अधिकांश जगह पर लोगों ने कदम पीछे खींच लिए.
श्रीनगर(गढ़वाल) के हमारे साथियों ने त्रेपन भाई को सहर्ष स्वीकार किया. उस शाम श्रीनगर के गोला बाजार में उस फैसले की प्रतियां जलाई गयी. यह खुसर-फुसर होती रही कि ये दाढ़ी वाले लड़के इस करनामें के लिए जेल जाएँगे ! प्रतिवाद का यह कार्यक्रम वे हम तक लेकर आए और इस तरह त्रेपन चौहान से पहली मुलाक़ात हुई.
उसके बाद बात,मुलाकतों का सिलसिला मीटिंगों,गोष्ठियों,प्रदर्शनों के बीच चलता रहा. राज्य बनने के साथ ही उत्तराखंड में थोक के भाव, बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं बनाने का सिलसिला भी शुरू हुआ. इस छोटे से राज्य में 500 से अधिक परियोजनाएं बनाने का ऐलान हुआ. उस सिलसिले की रफ्तार 2013 की आपदा के बाद आए उच्चतम न्यायालय के फैसले से ही कुछ थमी. त्रेपन चौहान आंदोलनकारियों के उस हिस्से में शामिल थे जो यह मानते थे कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं स्थानीय लोगों के लिए विनाशकारी हैं.इनके खिलाफ अभियान में वे सक्रियता पूर्वक जुटे रहे.
उनके गृह क्षेत्र घनसाली के फलेंडा में जब ऐसी ही परियोजना निर्माण की कोशिश हुई तो इसके खिलाफ वे आंदोलन में उतर पड़े. स्थानीय ग्रामीणों को उन्होंने संगठित किया और प्रदेश व देश के तमाम आंदोलनकारियों का जमावड़ा त्रेपन भाई की पहल पर इस इलाके में हो गया. वर्ष 2004 में जब पुराना टिहरी डूब रहा था तो उस पर अध्ययन रिपोर्ट के लिए हमारी पार्टी-भाकपा(माले) की ओर से पार्टी के राज्य कमेटी सदस्य कॉमरेड अतुल सती और मैं वहाँ गए. उस दौरान फलेंडा आंदोलन के सिलसिले में कुछ ग्रामीण महिला-पुरुष,नई टिहरी जेल में बंद थे. हमने उनसे मुलाक़ात की.
वे ठेठ पहाड़ी महिला-पुरुष थे,जिनको त्रेपन भाई ने अपने संसाधनों की लड़ाई में उतार दिया था.लड़ाई के महत्व को वे समझ चुके थे,इसलिए कई दिनों की जेल के बावजूद उन सीधे-साधे पहाड़ी ग्रामीणों के हौसले पस्त नहीं थे. त्रेपन भाई मानते थे कि बड़ी परियोजनाओं के बजाय छोटी जल विद्युत परियोजनाएं बननी चाहिए,जिन्हें स्थानीय लोग सहकारिता के आधार पर संचालित करें. इस तरह के प्रयोग उन्होंने अपने इलाके में किए भी.
त्रेपन भाई वाम-जनवादी आंदोलनों के अनन्य सहयोगी थे और इन शक्तियों के हर तरह की मदद के लिए हर समय तैयार रहते थे. हमारी पार्टी-भाकपा(माले) के कार्यक्रमों में भी हर तरह से सहयोग करते रहते है. 2007 में जब कॉमरेड अतुल सती बद्रीनाथ विधानसभा से चुनाव लड़ रहे थे तो त्रेपन भाई चुनाव अभियान में सहयोग करने आए. उसी दौरान हमने देखा कि उनके पास एक चैलेंजर है. हमने उनसे वह मांग लिया और उन्होंने तत्काल ही अपने लिए खरीदा गया,वह नया चैलेंजर हमें दे दिया.
बीते कुछ सालों से देहारादून में त्रेपन भाई निर्माण मजदूरों को संगठित करके उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे. मजदूर बस्तियों में सक्रीयता पूर्वक संगठन निर्माण की प्रक्रिया में वे और उनके साथी शंकर गोपालकृष्णन लगे हुए थे.
निर्माण मजदूरों के बड़े सम्मेलन,जिसमें सैकड़ों की तादाद में मजदूरों की भागीदारी थी,त्रेपन भाई ने देहारादून में आयोजित किए.
कुछ वर्षों पहले घनसाली क्षेत्र में घसियारी प्रतियोगिता का आयोजन त्रेपन भाई ने किया. पहाड़ी महिलाओं के लिए यह घास काटने की प्रतियोगिता थी,जिसमें विजेता महिलाओं को चाँदी के मुकुट और नकद धनराशि इनाम में दी गयी थी. उत्तराखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि पर “यमुना” और “हे ब्वारी” जैसे उपन्यास भी त्रेपन भाई ने लिखे.
स्वास्थ्य के मोर्चे पर त्रेपन भाई निरंतर जूझते रहे. 2010 में वे पैनक्रियाटिक कैंसर के शिकार हो गया. लेकिन कुछ ही सालों में इससे जूझते हुए,कैंसर को हरा कर वे पुनः सक्रीय सामाजिक जीवन में उतर पड़े. निर्माण मजदूरों का संगठन,घसियारी प्रतियोगिता और “हे ब्वारी” व “भाग की फांस” जैसे उपन्यास इस बीमारी से निपटने के बाद उनकी सक्रियता की मिसाल हैं.
बीते कुछ सालों से वे “मोटर न्यूरोन्स” के रोग से ग्रसित थे. उनके साथी शंकर गोपालकृष्णन बताते हैं कि प्रति एक लाख लोगों में पांच या छह लोगों को यह रोग होता है.शंकर कहते हैं कि “त्रेपन और मैं आपस में मज़ाक करते थे कि असाधारण आदमी को बीमारी कैसे साधारण होती,इसलिए असाधारण रोग हुआ.”
इस रोग के चलते उनके शरीर के विभिन्न अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. लेकिन मस्तिष्क से वे पूरी तरह सक्रीय थे. उनकी जिजीविषा और जीवटता इस रोग के दौरान जबरदस्त तरीके से उभर कर आई. उनके साथी शंकर गोपालकृष्णन ने उनके लिए अमेरिका से एक आई ट्रेक यंत्र मंगवाया,जिसकी मदद से वे आँखों की पुतलियों से लिख सकते थे. इस यंत्र की मदद से वे अपना उपन्यास “ललावेद” लिख रहे थे. इसी यंत्र की मदद से वे फ़ेसबुक पर पोस्ट लिखते थे और व्हाट्स ऐप पर भी संदेशों का जवाब देते थे.
अस्पताल में भर्ती होने के कुछ महीने पहले उन्हों मुझे व्हाट्स ऐप पर संदेश भेजा, “अपने लेखों को संभाल कर रखना,फिर मैं बताऊंगा इनका क्या करना है.” शंकर ने बताया कि अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान जब एक दिन शंकर उनसे मिलने गए तो उन्होंने शंकर को मैसेज लिखा कि “तुम आज डाउन लग रहे हो,घबराओ नहीं सब ठीक हो जाएगा.” सोचिए क्या जीवट आदमी था. खुद चलने,फिरने,बोलने से लाचार लेकिन दूसरे के लिखे हुए की चिंता ; खुद अस्पताल में साथ छोड़ते शरीर के साथ आई.सी.यू में भर्ती लेकिन दूसरे को हतोत्साहित न होने के लिए दिलासा देता हुआ.
बीते अक्टूबर में भाकपा(माले) के राज्य सचिव कॉमरेड राजा बहुगुणा के साथ उनके घर गया.दो-एक बार अन्य साथियों के साथ भी उनके घर गया. राजा भाई से उन्होंने कहा कि आप लोग बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. डा. शमशेर सिंह बिष्ट के देहावसान के बाद उन पर छपी पुस्तक की चर्चा करते हुए फेसबुक पर त्रेपन भाई ने लिखा कि अपना जीवन संघर्षों में खफा देने वाले धूम सिंह नेगी,राजा बहुगुणा,राजीवलोचन साह,पी.सी.तिवारी,कमला पंत पर लिखा जाना चाहिए. इस मुलाक़ात में त्रेपन भाई और उनके परिवार के जज्बे को देख कर राजा भाई काफी खुश हुए. राजा भाई ने कहा कि वे “असली इंसान” हैं. “असली इंसान”(The Story of a Real Man) एक ऐसे रूसी फाइटर पायलट की कहानी है,जो युद्ध में अपनी दोनों टांगे गँवाने के बाद अपनी लगन और जिजीविषा के बल पर नकली टांगों से लड़ाकू विमान उड़ाता है. ऐसी ही अदम्य जिजीविषा तो त्रेपन भाई में.
04 अक्टूबर 1971 को टिहरी जिले के भिलंगना ब्लॉक के केपार्स गाँव में जन्में त्रेपन चौहान 13 अगस्त 2020 को ज़िंदगी का सफर पूरा करके चल दिये. उनकी पत्नी के अलावा एक बेटा और बेटी हैं. ऋषिकेश के पूर्णानंद घाट पर उनका अंतिम संस्कार करके लौटते हुए उनका बेटा अक्षत कई तरह से अपने पिता को याद कर रहा है.कई बार इस बच्चे की बात दिल को काटती हुई प्रतीत होती हैं. पिता द्वारा बीमारी के चलते वर्षों से झेले जा रहे कष्टों के बारे में जिक्र करते हुए 14 साल का अक्षत कहता है, “हमारे लिए तो अच्छा नहीं हुआ पर पापा के लिए अच्छा हो गया. जिस शरीर से वो इतनी तकलीफ में थे,उससे आजाद हो गए.” ज़हीन बाप का सयाना बेटा !
अपने पिता को याद करते हुए फिर अक्षत कह रहा है “पापा घाटा सहन कर लेते थे पर गलत काम नहीं करते थे. पापा ने मुझ से कहा कि कुछ और बनना, न बनना पर अच्छा आदमी जरूर बनना.” यही बनना बच्चे तू जो तेरे पिता थे,जो तुझे बनने को तेरे पिता कह गए. यह तेरे पिता की आकांक्षा और दुनिया की जरूरत है.
फिर मिलना तो होगा नहीं त्रेपन भाई पर आंदोलन-संघर्ष के मोर्चे पर खड़े हो कर हम आपको हमेशा याद रखेंगे.