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मजदूरों की रिहाई के लिए नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के सामने प्रदर्शन
ग्राउन्ड रिपोर्ट

अफगानिस्तान में अपहृत 7 मजदूरों पर चुप्पी साधे है झारखण्ड और केंद्र सरकार

संदीप जायसवाल

एक माह के बाद भी अपहृत मजदूरों का कोई पता नहीं, सरकार की बेरूखी से अपहृत मजदूरों के परिजन परेशान

मजदूरों की रिहाई के लिए बगोदर, रांची से लेकर दिल्ली तक भाकपा माले का  प्रदर्शन

गिरिडीह (झारखंड) , 9 जून. अफगानिस्तान में कम करने गए झारखण्ड, बिहार और केरल के सात मजदूरों के अपहरण के एक माह से अधिक बीत जाने के बाद भी उनका कुछ पता नहीं चल सका है. झारखण्ड और केंद्र सरकार मजदूरों का पता लगाने में कोई रूचि नहीं ले रही है जबकि इसके लिए रांची से लेकर दिल्ली तक आन्दोलन हो रहा है.  अपहृत मजदूरों की क्या स्थिति है, उनका अपहरण किन लोगों ने किया, किस वजह से  किया ,उनकी रिहाई कब तक होगी और उनकी रिहाई की क्या क्या राजनीतिक-कूटनीतिक प्रयास किये जा रहे है-इस संबंध में कोई आधिकारिक सूचना परिजनों को नही मिल रही है।

इन सात मजदूरों में कि 4 झारखंडी मजदूरों के अलावा 1 मजदूर बिहार और 2 मजदूर केरल के रहने वाले हैं।

पांच जून को गिरिडीह में प्रदर्शन

6 मई को झारखंड के गिरिडीह जिला के बगोदर थाना अंतर्गत घाघरा गांव निवासी प्रसादी महतो व प्रकाश महतो, महुरी गांव निवासी हुलास महतो और हजारीबाग जिला के टाटीझरिया थाना अंतर्गत बेडम गाँव निवासी काली महतो सहित 7 मजदूरों को अज्ञात लोगों ने अफगानिस्तान में उस वक्त अपहरण कर लिया जब वे केईसी ट्रांसमिशन कंपनी में बतौर मजदूर काम कर रहे थे। उक्त मजदूरों के अपहरण की सूचना संबंधित कंपनी के अधिकारियों ने परिजनों को नही दिया। साथ मे काम करनेवाले अन्य मजदूरों ने फ़ोन से संबंधित परिजनों के अपहरण की सूचना दी।

झारखण्ड के मजदूरों का अफगानिस्तान में अपहरण की जानकारी मिलने पर बगोदर के पूर्व विधायक व भाकपा माले केंद्रीय कमिटी के सदस्य विनोद कुमार सिंह, जिला पंचायत सदस्य पूनम महतो व सरिता महतो, माले प्रखंड सचिव पवन महतो, इंकलाबी नौजवान सभा के संदीप जायसवाल, संबंधित गांव के मुखिया संतोष रजक व लक्ष्मण महतो ने घाघरा और माहुरी गांव का दौरा किया और संबंधित परिजनों से मिलकर पूरी जानकारी हासिल की.

एक सप्ताह बाद मजदूरों के परिजनों को लेकर माले नेता जरमुने पश्चिमी मुखिया संतोष रजक के नेतृत्व में माहुरी गांव के हज़ारों ग्रामीणों ने राष्ट्रीय राजमार्ग -2 पर मार्च किया और बगोदर बस स्टैंड स्थित महेंद्र सिंह प्रतिमा स्थल पर महती सभा की। लोगो ने एक स्वर में अपहृत मजदूरों की अविलंब सकुशल रिहाई की मांग की।

25 मई को धनबाद में प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौपने जाते माले कार्यकर्ता

पूर्व विधायक विनोद सिंह ने 16 मई को झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलकर घटनाक्रम की जानकारी दी और अपहृत मजदूरों के लिए सकुशल वापसी के लिए राजनीतिक-कूटनयिक प्रयास तेज करने की मांग की।

भाजपा के स्थानीय विधायक व सांसद ने विदेश मंत्री को मात्र चिट्ठी लिख अपना पल्ला झाड़ लिया.  हास्यापद बात यह रही कि केंद्र-राज्य में अपनी ही सरकार पर दबाब बढ़ाने के जगह बगोदर के हरिहरधाम में मजदूरों के रिहाई के लिए हवन किया गया.

मजदूरों की रिहाई के मसले पर सरकार की कोई गंभीरता न देखते हुए भाकपा माले बगोदर कमिटी ने राजधानी रांची में राजभवन के समक्ष धरना आयोजित किया और बंधक मजदूरों की अविलंब रिहाई की कोशिशों को तेज करने संबंधी मांग- पत्र झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंपा। उपरोक्त धरने को पूर्व विधायक विनोद कुमार सिंह,एक्टू नेता शुभेन्दु सेन समेत कई अन्य ने संबोधित किया।

मजदूरों की रिहाई के लिए केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 25 मई को धनबाद आगमन पर पार्टी ने परिजनों को लेकर एक मांग -पत्र सौपने का निर्णय लिया। इसी बाबत 25 मई के अहले सुबह 300 से अधिक मोटर साईकल में सवार माले कार्यकर्ता बगोदर से धनबाद (तकरीबन 90 किलोमीटर) के लिए पूर्व विधायक विनोद कुमार के साथ रवाना हुए।

ज्ञापन देने जा रहे सभी लोगो को 60 किलोमीटर पहले जीटी रोड में निमियाघाट पुलिस थाने के समीप बैरकेडिंग लगाकर पुलिस ने रोक दिया। विरोधस्वरूप माले कार्यकर्ताओं ने जीटी रोड को लगभग डेढ़ घंटे से अधिक जाम कर दिया और सड़क पर सभा कर मजदूरों की रिहाई की मांग की और कहा कि जब तक मजदूर घर वापस नही आ जाते तक मजदूरों के वेतन बराबर खर्च सरकार संबंधित मजदूरों के परिवार को मुहैया कराए क्योंकि  बंधक मजदूरों के घर की माली हालत बेहद खराब है।

मजदूरों की रिहाई के लिए राजभवन के समक्ष आयोजित धरने को संबोधित करते पूर्व विधायक विनोद सिंह

मजदूरों के अपहरण के एक-दो बाद जिला उपायुक्त ने बगोदर के घाघरा और माहुरी गांव का दौरा जरूर किया लेकिन स्थानीय बीडीओ-सीओ ने भेंट करने की जरूरत अब तक नही समझी। उक्त दौरे के बाद भी कोई जरूरी कोशिशों को न देख भाकपा माले ने 5 जून को डीसी कार्यालय का घेराव किया और एक प्रतिनिधि मंडल ने डीसी मनोज कुमार से भेंट की, प्रतिनिधिमंडल में पूर्व विधायक विनोद कुमार सिंह, राजधनवार माले विधायक राजकुमार यादव शामिल थे.

इसके पहले 1 जून को सैकड़ो माले कार्यकर्ताओ ने बगोदर स्थित किसान भवन से समूचे बाजार तक मार्च निकाला और मजदूरों की रिहाई की मांग को बुलंद किया।
मजदूरों की रिहाई को लेकर बगोदर से लेकर जिला मुख्यालय गिरीडीह तक और फिर राजधानी रांची तक लगातार हो रहे आंदोलनों से बेखबर मोदी-रघुवर की भाजपा सरकारों की रहस्यमय चुप्पी के खिलाफ 7 जून  को दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय के समक्ष रोषपूर्ण प्रदर्शन किया गया जिसमें पूर्व विधायक विनोद कुमार सिंह, जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष गीता कुमारी, दिल्ली विवि छात्र नेता कंवलप्रीत कौर, दिल्ली पार्टी राज्य सचिव रवि रॉय, आइसा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज कुमार, इनौस राष्ट्रीय परिषद सदस्य संदीप जायसवाल ,बगोदर से आये हेमलाल महतो व पूरन कुमार महतो समेत बड़ी संख्या में दिल्ली के विभिन्न विवियो के छात्र-बुद्धिजीवी व एक्टू से जुड़े लोग शामिल रहे।

प्रदर्शन पश्चात विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने आगामी 9 जून को विदेश मंत्री से संबंधित मामले पर एक प्रतिनिधि मंडल को मिलाने का भरोसा दिलाया है।

पूर्व विधायक विनोद कुमार सिंह ने बताया कि झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद भी गरीबो-मजदूरों के हालात नही बदले।समूचे देश मे मनरेगा मजदूरों की मजदूरी सबसे कम झारखंड में दी जाती है और सरकार अगर मजदूरी बढ़ाने का निर्णय भी लेती है तो प्रतिदिन दैनिक मजदूरी की बढ़ोतरी 167 रु से 168 रु किया जाता है।

उन्होंने कहा कि झारखंड की उत्तरी छोटानागपुर के हजारीबाग,गिरिडीह ,कोडरमा जिलो के तकरीबन 70 प्रतिशत मजदूर अपने प्रदेश में काम के अभाव में न सिर्फ देश के भीतर मुम्बई-दिल्ली-कोलकाता जैसे अलग अलग महानगरों में भटकने को मजबूर है बल्कि पिछले 8 -10 सालों से सऊदी अरब,दुबई,मलेशिया,कुवैत,
मलावी,ओमान ,दक्षिण अफ्रीका,अफगानिस्तान,श्रीलंका जैसे सुदूर विदेशो-खाड़ी देशों में बड़ी संख्या में जा रहे है। प्रवासी मजदूरों की काम करने के दौरान मौत हो जाय या वे ठगी के शिकार हो जाये या उनके बकाया मजदूरी का मामला हो,सरकार या संबंधित कंपनिया कोई जिम्मेवारी नही लेती रही है। लंबे समय से भाकपा माले व अन्य संगठनों के व्यापक जन दबाब से पीड़ित प्रवासी मजदूरों के परिजनों को कमोबेश कुछेक लाभ /मुआवजा मिल पाता है जो नाकाफी है। हमारी शुरू से मांग रही है कि प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन की व्यस्था हो और मौत के मामले में कम से कम 2 लाख रु संबंधित परिजनों को मिले। सबसे बड़ी बात यह कि एक प्रभावी और कारगर प्रवासी मजदूरों की पक्ष में झारखंड सरकार को प्रवासी नीति बनानी चाहिए।

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