समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

टेक्नोलॉजी का समग्र इस्तेमाल कर दिमाग की लड़ाई को सड़क की लड़ाई से जोड़ने की आवश्यकता

भारत की हिंदूवादी सांप्रदायिक सरकार ने देश को बेचने की तैयारी शुरू कर दी है. कश्मीर के वाशिंदों को नफरत की लड़ाई के मुहाने पर खड़ा कर देशभक्त/देशद्रोही का बड़ा खेल शुरू है. टीवी/मीडिया को नफरत उगलने के मिशन में एक स्टेप आगे बढ़ाना शुरू कर दिया गया है. क्रिकेट को भी मोहरा बना दिया गया है. इस खेल को 21वीं सदी के दूसरे दशक के आखिर में भी इस धर्मांध समाज में धर्म का तमगा देने की होड़ लगी है.

भाजपा ने 2024 चुनाव संबंधित तैयारियां भी शुरू कर दी है. उसे पता है कि अगले 5 सालों में यहां धर्मांधता और नफरत का आलम यही रहने वाला है. बहुत कुछ कैल्कुलेटेड है. नफरतों के कई परत हैं. एक साथ एक-दो परत ही खुलती है. कई और हैं जो 2024 तक तो देख ही लेंगे. मगर 2024 के बाद क्या ? चुनाव का क्या ? आरक्षण का क्या ? पर्यावरण का क्या ? समाज का क्या ? मनुष्यों का क्या? उन सारी परतों को एकसाथ खोलना जरूरी है. और सब इतने इंटरकनेक्टेड हैं कि इसे एक झटके से तोड़ना कठिन तो है पर नामुमकिन नहीं.

पाकिस्तान और मुसलमान के हालात पर नफरत/वीरता/शौर्य/दीवाली-पटाके/राष्ट्रभक्ति/देशद्रोह वगैरह अगले 5 सालों तक तो की ही जा सकती है. हिंदू-मुसलमान/मंदिर-मस्जिद में 2024 तक तो जनता को उलझाया ही जा सकता है. भाजपा ने टेक्नोलॉजी और वर्तमान सामाजिक/बौद्धिक ट्रेंड का सही आंकलन कर लिया है, इसे स्वीकार करना होगा.

फासिस्ट सत्ता टेक्नोलॉजी में तमाम राजनीतिक दलों/विपक्ष से मीलों आगे हैं. क्या इस फासले को 5 साल में पाटा जा सकता है ? बिल्कुल पाटा जा सकता है. विपक्ष को इसपर गंभीरता से विचार करना होगा. वर्तमान समय में जब टेक्नोलॉजी तेजी से मनुष्यों के दिमाग तक पर कब्जा कर रही है, उस टेक्नोलॉजी की कमान उनके हाथों में है. टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के तरीकों को बदलने पर भी जोर देना आवश्यक है. वर्तमान समाज में टेक्नोलॉजी के गहरे और विध्वंशक प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है. अगले दशक में यह प्रभाव और विध्वंश और बढ़ेगा. इस फासिस्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल और कमान को अपने पक्ष में करना आवश्यक है.

अगले दशक के अंत तक पर्यावरणीय स्थितियां इतनी गंभीर हो जाएंगी कि डैमेज कंट्रोल में होने वाले नुकसान से स्थितियां बिगड़ भी सकती है. यहां तमाम सीमित संसाधनों/टेक्नोलॉजी का समाज में सटीक सामंजस्य के साथ समग्र इस्तेमाल कर सड़क की लड़ाई से जोड़कर 2024 तक बहुत कुछ बदल सकता है.

सत्ता ने स्मार्टफोन/टेलीविजन और अन्य टेक्नोलॉजी के जरिये देश के करोड़ों मतदाताओं तक सीधे पहुंच बना ली है. इसका इस्तेमाल कर उनके दिमाग के साथ बड़े पैमाने पर गहरा छेड़छाड़ किया गया है जो तेजी से बढ़ रहा है. उनको रोकने के लिए उतना ही गहरा उतरना होगा. सड़क की लड़ाई को दिमाग की लड़ाई से जोड़ना होगा. उन तमाम रास्तों पर अपने हथियार तैनात करने होंगे. अपना एजेंडा सेट करना होगा और सत्ता को उस के तरीकों से भी घेरना होगा.

वर्तमान समाज में वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से घुसना बहुत जरुरी हो गया है. 2024 भारतीय लोकतंत्र का एक अति महत्वपूर्व पड़ाव है. इस पड़ाव पर हमें सत्ता से पहले पहुँचना होगा. बहुत कुछ दाँव पर है, बहुत कुछ बचाना आवश्यक है ताकि समाज बचा रह सके, मनुष्य बचा रह सके.

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