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राजीव प्रकाश साहिर की कहानी में दिखता है विकास का संवेदनहीन खौफनाक चेहरा

लखनऊ। जन संस्कृति मंच की ओर से ‘लेखक के घर चलो’ की श्रृंखला के तहत 18 जनवरी को उर्दू के अफसाना निगार राजीव प्रकाश साहिर के इंदिरा नगर स्थित आवास पर साहित्यकारों का जुटान हुआ।

राजीव प्रकाश साहिर उर्दू में कहानियां लिखते हैं। उन्होंने शायरी भी की है। दोनों विधाओं में उनकी कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका नया कथा संग्रह ‘पीत्त ऋतु की वेदना’ हाल में आया है। इस मौके पर उन्होंने इसी संग्रह से एक कहानी ‘अंधाधुंध धुंध ही धुंध’ सुनाई। यह कहानी दृश्यों के माध्यम से एक महानगर की त्रासदी को उकेरती है।

कहानी पाठ के बाद इस पर अच्छी चर्चा हुई। इसकी शुरुआत प्रतुल जोशी ने की। उनका कहना था कि हमें ऐसी कहानियों के पढ़ने की आदत है जिनमें कथानक, संवाद आदि होते हैं। यह उससे अलग हटकर है। इसमें परिवेश, वातावरण के साथ कई घटनाएं हैं जो दृश्य के रूप में हमारे सामने उपस्थित होती हैं। कहिए तो यह कथा दृश्यों का कोलाज है। चर्चा का समापन कवि-आलोचक चंद्रेश्वर ने की। इस अवसर पर भगवान स्वरूप कटियार, वीरेन्द्र सारंग, आशीष सिंह, विमल किशोर आदि ने भी अपने विचार रखे।

कहानी पर चर्चा के दौरान यह विचार उभरा कि पूंजी और सत्ता के गठजोड़ द्वारा विकृत और अमानवीयकृत विकास देश और समाज के विध्वंस का कारण है जिसमें पूंजी के मुनाफे और जनविरोधी सत्ता के विस्तार के हित शामिल हैं। यह कहानी विकास का संवेदनहीन खौफनाक चेहरा पेश करती है। कहानी में घटनाओं और पात्रों के संवादों का भले अभाव हो पर साहिर जो परिदृश्य रचते हैं उसमें एबस्ट्रैक्ट रूप में एक विराट कथन छिपा है जिसे पाठक को अपने एहसास की गहराई से महसूस करना है। कहानी में चांद के दो बिम्ब उभरते हैं, एक पारम्परिक और एक प्रगतिशील। कथाकार राजीव प्रकाश साहिर का मत था की कहानी जितना कहती है, उतना ही उसमें अनकहा रह जाता है जो पाठकों के लिए होता है। इसमें दृश्य अपने आप में यथार्थ को व्यक्त करते हैं। मुझे इससे अधिक कहने की जरूरत नहीं है।

कहानी पाठ के बाद साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं सुनाईं। चंद्रेश्वर ने ‘पहली बार’ कविता का पाठ किया तो विमल किशोर ने ‘युद्ध के विरुद्ध’। असगर मेहदी ने एक रचना सुनाई। उर्दू शायर अशर अलीग, राजीव प्रकाश साहिर और अनिल कुमार श्रीवास्तव ने गजलों से वाहवाही लूटी। वहीं, वीरेंद्र सारंग ने भोजपुरी के दो गीत सुनाए। भगवान स्वरूप कटियार ने प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा पर लिखी कविता सुनाई तो आशीष सिंह ने नरेंद्र जैन की एक ताजा रचना, जो आज के यथार्थ को व्यक्त करती है, का पाठ किया। प्रतुल जोशी ने अपनी कविता ‘दिलदारनगर’ का पाठ किया तो फ़रज़ाना महदी ने एक लघुकथा सुनाई। गोष्ठी का समापन कौशल किशोर की कविता ‘तारीख तवारीख’ से हुआ।

इस मौके पर ‘प्रेरणा अंशु’ का जनवरी 2024 का अंक भी जारी किया गया। कार्यक्रम का संचालन जसम लखनऊ के सचिव फरजाना महदी ने किया और सहसचिव राकेश सैनी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह आयोजन ठंड में ऊष्मा प्रदान करने वाला है। ऐसी घर गोष्ठियों की बहुत जरूरत है जिसमें लेखक के बारे में आत्मीय तरीके से हमें जानने को मिलता है।

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