मधु झुनझुनवाला, विमल भाई, वर्षा वर्मा, देबादित्यो सिन्हा
मातृ सदन हरिद्वार में 26 वर्षीय उपवासरत आत्मबोधानंद जी का आज 128वां दिन है। देशभर में प्रदर्शनों, समर्थन में भेजे जा रहे पत्रों के बावजूद भी सरकार गंभीर नहीं नजर आती। हमारी जानकारी में आया है की सरकार ने सात निर्माणाधीन बांधो की ताजा स्थिति जानने के लिए एक समिति भेजी है। समिति में ऊर्जा मंत्रालय, जल संसाधन एवं गंगा पुनुरूजीवन मंत्रालय और वन एवम जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञ गए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार इसमें कोई स्वतंत्र विशेष के नहीं है।
1-मध्यमेश्वर व 2-कालीमठ यह दोनों ही 10 मेगावाट से कम की परियोजनाएं हैं जो की मंदाकिनी की सहायक नदी पर है। 3- फाटा बयोंग (76 मेगावाट) और 4-सिंगोली भटवारी (99 मेगावाट) मंदाकिनी नदी पर है 5-तपोवन-विष्णुगाड परियोजना (520 मेगावाट) का बैराज धौलीगंगा और पावर हाउस अलकनंदा पर निर्माणाधीन है। इससे विष्णुप्रयाग समाप्त हो रहा है। विश्व बैंक के पैसे से बन रही 6- विष्णुगाड- पीपलकोटी परियोजना (444 मेगावाट) अलकनंदा पर स्थित है। 7-टिहरी पंप स्टोरेज (1000 मेगा वाट) टिहरी और कोटेश्वर बांध के बीच पानी का पुनः इस्तेमाल करने के लिए।
यदि सरकार गंगा के गंगत्व को पुनः स्थापित करना चाहती है तो वह खास करके क्रमशः 4, 5 और 6 नम्बर की परियोजनाओं को तुरंत रोके। फिलहाल है यही तीनों परियोजना अभी निर्माणाधीन है। पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह जी की सरकार ने भागीरथीगंगा पर 4 निर्माणाधीन परियोजना रोकी थी। तब गंगा के लिए अपने आप को समर्पित कहने वाली सरकार इन परियोजनाओं को क्यों नहीं रोक रही? जबकि केंद्र राज्य को होने वाली प्रतिवर्ष होने वाली 12% मुफ्त बिजली के नुकसान को ग्रीन बोनस के रूप में दे सकती है जोकि 200 करोड़ से भी कम होगा।
हम गंगा पर राजनीति और उसके आर्थिक दोहन को स्वीकार नहीं करते बल्कि उत्तराखंड के समुचित और सच्चे विकास और गंगा के गंगत्व के हिमायती हैं।
हजारों करोड़ों गंगा की सफाई अविरलता व निर्मलता के लिए खर्च किया गया है। खुद प्रधानमंत्री अर्धकुंभ नहा कर लौटे हैं। सरकार इस बात से खुश नजर आती है कि उसने गंगा में कुंभ के समय स्वच्छ पानी दिया है जो कि पिछली सरकारों ने नहीं दिया। हम इस बात का साधुवाद देते हैं। किंतु गंगा जी मे पानी लगातार और साफ बहता रहे। मगर प्रश्न यह है कि क्या गंगोत्री और बद्रीनाथ के पास से भागीरथी गंगा और विष्णुपदी अलकनंदा गंगा अपनी सहायक नदियों के साथ जब देवप्रयाग में मिलकर गंगा का बृहत रूप लेकर आगे बढ़ती है तो क्या वह जल गंगासागर तक पहुंच पाता है ? गंगा की अविरलता क्या बांधों के चलते संभव है ? पर्यावरण आंदोलनों ने, सुंदरलाल बहुगुणा जी से लेकर स्वामी सानंद जी के लंबे उपवासो के बाद उसी संकल्प के साथ बैठे आत्मबोधानंद जी के 128 से दिन अनशन के बाद भी सरकार गंगत्व की गम्भीरता क्यो नही समझ रही ?
संत आत्मबोधानंद जी किसी ज़िद पर नहीं बैठे हैं। सत्य अकेला भी खड़ा होता है तो वहां सत्य ही रहता है। सरकार को यह बात मान माननी ही होगी।
हमारी प्रधानमंत्री से अपील है कि वे अपने कार्यकाल के अंतिम समय में गंगा गंगत्व के लिए इन बांधों को निरस्त करें। भविष्य में बांध न बने इसके लिए तुरंत सक्षम कदम उठाए और कम से कम गंगा की कुंभ क्षेत्र के खनन और स्टोन क्रेशर पर तुरंत रोक लगाई जाए।
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