2 अक्टूबर 1949 को दिल्ली में जन्मे बहुजन साहित्य के मिशनरी प्रकाशक और प्रचारक शांति स्वरूप बौद्ध का शनिवार को कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया। वे साहित्यकार, कलाकार के साथ-साथ गंभीर शोध कर्ता भी थे।
सांस्कृतिक बौद्धिक जगत में उन्होंने साहित्य, शोध और प्रकाशन के माध्यम से वंचित समाज को एक मजबूत बौद्धिक आधार दिया। उनके निधन से संपूर्ण बौद्धिक और साहित्यिक समाज स्तब्ध है। समाज को उन्होंने जो योगदान दिया था उसके कारण लोग उनको चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञाशु और अछूतानंद हरिहर की परंपरा के व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करते हैं।
उनके द्वारा स्थापित सम्यक प्रकाशन ने हिंदी की दलित पत्रकारिता और साहित्य में गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों ही स्तरों पर महत्वपूर्ण काम किया है। किसी भी सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम में सम्यक प्रकाशन की पुस्तकें उत्सव का माहौल पैदा करने के लिए काफी होती हैं। दलित वंचित समाज के बौद्धिक बोध का निर्माण करने इस प्रकाशन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे खुद भी एक शानदार वक्त्ता और सुलझे हुए व्यक्तित्व थे। वे न सिर्फ बौद्ध धर्म के अनुयायी थे बल्कि जीवन के हर क्षेत्र से हिंसा को ख़त्म करने के हिमायती थे।
उनके अवदान को याद करते हुए समाजशास्त्री डॉ अजय कुमार ने लिखा, ‘ हिंदी में दलित प्रिंट के लिए प्रसिद्ध सम्यक प्रकाशन के संस्थापक शांति स्वरूप बौद्ध जी का परिनिर्वाण हो गया है। शान्ति स्वरूप बौद्ध जी ने सम्यक प्रकाशन के माध्यम से हिंदी पट्टी में दलित और बौद्ध साहित्य छापकर वही काम किया जो कभी स्वामी अछूतानंद हरिहर और चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु ने किया था। आपने सम्यक प्रकाशन के माध्यम से सस्ते और बहुमूल्य दलित और बौद्ध साहित्य को हिंदी के आम पाठक को उपलब्ध कराया।
प्रकाशन के क्षेत्र में भी सम्यक प्रकाशन ने एक अलग पहचान बनाई है। देश के हर पुस्तक मेले में सम्यक प्रकाशन का स्टाल मिल जाएगा। प्रकाशन के क्षेत्र में सम्यक प्रकाशन ने चालू आ रही मोनोपोली को भी एक चुनौती दी है। नए-नए आंगिक बुद्धिजीवियों और लेखकों की रचनाएं और उनके लिखित साहित्य को प्रकाशित किया है। यह सब हिंदी दलित प्रिंट के लिए 21वीं सदी में एक बड़ी उपलब्धि है। यह सब प्रयास ही दलित आंदोलन की निर्मिति करते हैं, उसे बनाते है।’
उन्होंने 50 से अधिक सचित्र जीवनियां लिखीं। ‘वीर योद्धा मातादीन’ पुस्तक को घर-घर तक पहुँचाया।
वे कहते थे कि बौद्ध धर्म की गौरवशाली परंपरा हमें अहिंसा का संदेश देती है। ऐसे व्यक्तित्व का असमय हमारे बीच से चले जाना बेहद दुःखद है और वंचित समाज और बौद्धिक सांस्कृतिक दुनिया से जुड़े हुए लोगों के लिए अपूरणीय क्षति है।