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मुकेश मानस का जाना साहित्यिक समाज के लिए बड़ी क्षति -जन संस्कृति मंच

प्रगतिशील दलित साहित्यकार, जनसंघर्षों में हम सबके साथी मुकेश मानस नही रहे। वे सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के एसोसिएट प्रोफेसर थे। जब भी उनसे बात होती तो बहुत आत्मीयता से बात होती। अभी पिछले महीने ही लगभग 40 मिनट तक फोन पर बात हुई थी। वे लिवर संबंधी समस्या से जूझ रहे थे।उनका पीलिया बहुत ज्यादा बढ़ गया था 10 दिनों तक एडमिट रहे और इलाज के लिए उन्हें 4 दिन से महरौली के लीवर एंड बायनरी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था लेकिन लिवर फेल होने से आज दोपहर 2:02 बजे वे हमारे बीच नही रहे। यह हिंदी साहित्य और समाज के लिए आघातकारी है ।

मुकेश मानस हिंदी साहित्य को अपनी सृजनात्मक ऊर्जा से समृद्ध कर रहे थे। कला के विविध रूपों में रुचि रखने वाले मुकेश मानस उम्दा अनुवादक और साहित्यकार थे। ‘ हिंदी कविता की तीसरी धारा’ उनकी चर्चित पुस्तक है। वे ‘मगहर’ नामक पत्रिका के प्रकाशक, संस्थापक व संपादक थे। यही नहीं उन्होंने आरोही नाम से एक प्रकाशन की स्थापना की भी थी। उनके दो कविता संग्रह- पतंग और चरखड़ी (2001), कागज़ एक पेड़ है (2010), दो कहानी संग्रह- उन्नीस सौ चौरासी (2005), पंडित जी का मंदिर और अन्य कहानियां, जिसमें उन्नीस सौ चौरासी, अभिशप्त प्रेम, समाजवादी जी उर्फ प्यारेलाल भारतीय, कल्पतृष्णा, बड़े होने पर, दुलारी, औरत, टूटा हुआ विश्वास, शराबी का बेटा आदि कहानियां प्रसिद्ध हैं. कुछ आलोचना पुस्तकें- हिंदी कविता की तीसरी धारा, पत्रकारिता मीडिया लेखन सिद्धांत और प्रयोग, सावित्री बाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका, अम्बेडकर का सपना, भगत सिंह और अनुवाद- व्हाई आई एम नॉट ए हिंदू (कांचा इलैया), इंडिया इन ट्रांजिशन (एम. एन. राय) और कुछ लेख, हिन्दी कविता की तीसरी धारा, दुष्यत कुमार की गज़ल, अछूत दलित जीवन का अंतर्पाथ, दलित साहित्य आंदोलन के पक्ष में, हिन्दी दलित साहित्य आंदोलन: कुछ सवाल, कुछ विचार, अम्बेडकर का सपना, दलित समस्या और भगत सिंह, प्रेम, मीडिया की जाति, सांस्कृतिक कर्म, रेल कभी गुजरात ना जाये, नौजवान का रास्ता, भगत सिंह को क्यों याद करें, फासीवाद, साम्प्रदायिकता और दलितजन, समाजवाद मांगेंगे, पूँजीवाद नहीं आदि हिंदी अकादमिक जगत में चर्चित हैं। वे दलितों की प्रगतिशील परंपरा के संवाहक थे। कास्ट,क्लास, जेंडर की तिहरी लड़ाई के समर्थक थे। उनका जाना दलितों की प्रगतिशील धारा के साथ साथ व्यापक साहित्यिक समाज के लिए एक बड़ी क्षति है. जन संस्कृति मंच की ओर से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

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